गुरु पूर्णिमा : ज्ञान और श्रद्धा का पावन पर्व


गुरु का स्थान हमारे जीवन में सबसे ऊँचा माना गया है। भारतीय संस्कृति में कहा गया है :-

“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”

आज गुरु पूर्णिमा का यह पावन अवसर उन सभी गुरुओं को समर्पित है, जिन्होंने हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर जीवन का सही मार्ग दिखाया।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। उन्होंने वेदों का विभाजन और महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना कर भारतीय ज्ञान को संरचित किया। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

🌿 गुरु का अद्वितीय स्थान

गुरु वह दीपक है जो ज्ञान की लौ से शिष्य के जीवन को आलोकित करता है। माता-पिता हमें जन्म देते हैं, पर सच्चा जीवन जीना गुरु सिखाता है। वह केवल विषयों का ज्ञान ही नहीं देता, बल्कि विचार, चरित्र और आत्मबल भी गढ़ता है।
गुरु बिना ज्ञान अधूरा है।

🌺 परंपरा और आयोजन

गुरु पूर्णिमा के दिन विद्यार्थी, साधक और श्रद्धालु प्रातः स्नान कर अपने गुरु के चरणों में पुष्प अर्पित करते हैं। कहीं-कहीं पादुका पूजन और व्यास पूजा की परंपरा होती है। विद्या-अध्ययन की नयी शुरुआत भी इसी दिन की जाती है।

💫 जीवन में गुरु का प्रभाव

कई महान विभूतियों ने अपने जीवन में गुरु की महिमा को सर्वोच्च माना। छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए समर्थ गुरु रामदास जी, विवेकानंद के लिए रामकृष्ण परमहंस, चंद्रगुप्त मौर्य के लिए आचार्य चाणक्य—इन संबंधों ने इतिहास रच दिया।

🕉️ गुरु को समर्पित

आज के दिन हम सबको यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने गुरुओं के आदर्शों का अनुसरण करेंगे, उनके दिखाए पथ पर चलकर समाज और राष्ट्र का गौरव बढ़ाएंगे।

“गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

ईश्वर से प्रार्थना है कि आपके जीवन में सदैव गुरु का प्रकाश बना रहे।”

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