बकरीद (ईद-उल-अजहा) पर विशेष लेख
परिचय : बकरीद, जिसे ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्याग, समर्पण और ईमान की मिसाल है। यह पर्व हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) द्वारा अपने बेटे की कुर्बानी देने की तत्परता की याद में मनाया जाता है, जिसे अल्लाह ने एक महान बलिदान में बदल दिया।
इतिहास और महत्व : इस्लामी मान्यता के अनुसार, हज़रत इब्राहीम ने अल्लाह के हुक्म पर अपने सबसे प्रिय बेटे हज़रत इस्माईल की कुर्बानी देने का निश्चय किया। उनकी सच्ची नीयत और ईमानदारी को देखकर अल्लाह ने उनके बेटे की जगह एक मेढ़ा भेज दिया। इसी ऐतिहासिक घटना की याद में हर साल बकरीद मनाई जाती है।
कुर्बानी का अर्थ : बकरीद का मुख्य उद्देश्य है "कुर्बानी" यानी त्याग। इस दिन मुसलमान अपनी सामर्थ्य के अनुसार जानवर (बकरा, भेड़, ऊँट आदि) की कुर्बानी देते हैं और उसका मांस तीन भागों में बाँटते हैं – एक हिस्सा गरीबों के लिए, एक रिश्तेदारों और पड़ोसियों के लिए, और एक हिस्सा अपने परिवार के लिए। यह भाईचारे, मदद और समानता का प्रतीक है।
अन्य परंपराएं :-
👉बकरीद की सुबह विशेष नमाज़ (ईद-उल-अजहा की नमाज़) अदा की जाती है।
👉लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक-दूसरे को गले मिलकर "ईद मुबारक" कहते हैं।
👉इस दिन विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जैसे बिरयानी, सिवइयाँ, कबाब आदि।
संदेश : बकरीद हमें यह सिखाता है कि हमें ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और समाज के प्रति सेवा की भावना रखनी चाहिए। यह त्यौहार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज में सहयोग, त्याग और मानवता की भावना को बढ़ावा देने का एक अवसर है।
निष्कर्ष : बकरीद एक पवित्र पर्व है जो हर साल हमें अपने भीतर झाँकने और अपने आत्मबलिदान की भावना को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें सच्ची भक्ति, निःस्वार्थ सेवा और परोपकार की राह पर चलने का संदेश देता है।
मो0 अहमद हुसैन "जमाल" ✍️
विशुनीपुर, बलिया (उ.प्र.)
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