बिजली संकट नहीं, शहरी कुप्रबंधन की आपदा है बलिया!



👉अंधेरे में डूबता बलिया : अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और बिजली संकट की त्रासदी

👉बिजली गई तो क्या हुआ, योजना तो पहले ही नहीं थी : बलिया की शहरी दुर्दशा

👉विकास या विनाश? अवैध कॉलोनियों में उलझा बलिया का भविष्य

👉बिना प्लान, बिना जवाबदेही : बलिया की रौशनी छीन रहा है अराजक शहरीकरण

👉बलिया का बिजली संकट : एक चेतावनी, एक चुनौती

🔹अजय कुमार सिंह द्वारा :-🔹

बलिया। हर साल गर्मी के आते ही बलिया और उसके आस-पास के इलाकों में बिजली संकट एक नियमित समस्या बन चुकी है, लेकिन इस बार हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं। बलिया नगरपालिका क्षेत्र से लेकर बाहरी ग्रामीण क्षेत्रों तक बिजली की आंख-मिचौली और वोल्टेज की अनियमितता ने जनजीवन को बेहाल कर दिया है। न दिन में बिजली रहती है, न रात में चैन। सबसे ज्यादा असर स्कूलों, अस्पतालों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और वृद्धजन पर पड़ रहा है।

बिजली संकट की असली जड़ : बेतरतीब शहरीकरण और अवैध कॉलोनियों का जाल :

बलिया शहर में पिछले एक दशक में तेजी से अवैध कॉलोनियों का निर्माण हुआ है। जनप्रतिनिधियों की अनदेखी और प्रशासनिक तंत्र की मिलीभगत ने इन बस्तियों को "विकास" का नाम देकर उपेक्षित छोड़ दिया। बिना किसी नगरीय योजना, अनुमोदन या बुनियादी ढांचे के ये कॉलोनियां न केवल शहर की व्यवस्था पर भार बन गई हैं, बल्कि बिजली जैसी मूलभूत सेवा पर भी गहरा असर डाल रही हैं।

इन कॉलोनियों में :-

🔹बिजली के अनियमित कनेक्शन,

🔹ओवरलोड ट्रांसफॉर्मर,

🔹लटकती केबलें,

🔹बिना सुरक्षा मानकों के तारबंदी,

अब आम दृश्य बन चुके हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो इन इलाकों में कई बिजली कनेक्शन राजनैतिक दबाव या “भुगतान” के माध्यम से अवैध रूप से जोड़े गए हैं।

पुराने ढांचे पर बढ़ता भार : सिस्टम कब तक झेलेगा?

बलिया शहर की मौजूदा विद्युत आपूर्ति संरचना 1990 के दशक की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी। आज 2025 में, जब शहर की आबादी ढाई गुना से अधिक हो चुकी है, तब भी वही ट्रांसफार्मर, वही उपकेंद्र और वही वितरण प्रणाली काम में लाई जा रही है। नतीजा?

ट्रांसफॉर्मर आए दिन जल रहे हैं, विद्युत लाइनें ओवरलोड हो रही हैं, और फॉल्ट ठीक करने वाली टीमें घंटों बाद मौके पर पहुंचती हैं।

एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, "ऊपर से रोज़ दबाव आता है कि कनेक्शन जोड़ो, लेकिन कोई नहीं पूछता कि वह बिजली कहां से आएगी।"

बिना तैयारी के फैलता शहर: शहरी अराजकता की दस्तक :

बलिया की स्थिति एक बेतरतीब, बिना मास्टर प्लान के बढ़ते शहर की चेतावनी है। ये कॉलोनियां न सिर्फ बिजली बल्कि :

👉जल आपूर्ति,

👉जल निकासी,

👉कूड़ा प्रबंधन,

सड़कों और यातायात जैसी मूलभूत सेवाओं के लिए भी संकट पैदा कर रही हैं।

नगरपालिका के एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक, "बलिया आने वाले पांच वर्षों में एक शहरी स्लम का रूप ले सकता है यदि तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया गया।"

राजनीतिक मौन और प्रशासनिक लाचारी :

नेताओं ने इन अवैध कॉलोनियों को वोटबैंक में तब्दील कर दिया है। कोई भी राजनीतिक दल इन्हें हटाने या नियमित करने की स्पष्ट नीति लेकर सामने नहीं आ रहा। वहीं प्रशासन मौन है, क्योंकि वह भी भ्रष्टाचार के इस चक्र में कहीं न कहीं शामिल नजर आता है।

राह क्या है? - समाधान की दिशा में चार ठोस कदम
भौगोलिक सर्वे और मास्टर प्लान :

पूरे बलिया नगर और उसके उपनगरों का एक विस्तृत भू-स्थानिक सर्वे कराया जाए। इससे यह तय होगा कि किन क्षेत्रों में तुरंत सुधार की आवश्यकता है।

अवैध कॉलोनियों की सूचीबद्धता और नियमन :

सभी अवैध कॉलोनियों को चिन्हित कर, नियमन की प्रक्रिया शुरू की जाए। लेकिन वैधता से पहले सड़कों, जल निकासी, और बिजली का ढांचा दुरुस्त किया जाए।

बिजली ढांचे का उन्नयन :

शहर में हाई कैपेसिटी ट्रांसफॉर्मर, अंडरग्राउंड केबलिंग, और स्मार्ट मीटरिंग लागू की जाए। साथ ही फॉल्ट रिस्पॉन्स सिस्टम को समयबद्ध और तकनीकी रूप से उन्नत बनाया जाए।

राजनीतिक-प्रशासनिक जवाबदेही :

हर स्तर पर जवाबदेही तय की जाए। जो अधिकारी या जनप्रतिनिधि कर्तव्यपालन में चूक करते हैं, उनके विरुद्ध सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई हो।

निष्कर्ष : बलिया का यह संकट सिर्फ एक ‘बिजली की समस्या’ नहीं है — यह एक प्रशासनिक विफलता, योजना हीन शहरीकरण और नीतिगत अपंगता का परिणाम है। यदि समय रहते न चेता गया, तो आने वाले वर्षों में बलिया न सिर्फ अंधकार में डूबेगा, बल्कि एक शहरी आपदा की मिसाल बन जाएगा।







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