मिट्टी का पुतला ......


क्यों बंटता है धर्म युद्ध में।

कहां भला तू जाएगा।।

मिट्टी का पुतला है आखिर।

मिट्टी में मिल जाएगा।।


दुनिया एक तमाशा है जो।

आंखों के आगे छलती।।

जानबूझकर तेरे दिल में।

फिर भी इच्छाएं पलती।।


इच्छाओं के सागर में तू।

कितने गोते खाएगा।।

मिट्टी का पुतला है आखिर।

मिट्टी में मिल जाएगा।।


तेरा मेरा मेरा तेरा।

यही चली है परिपाटी।।

हाथ नहीं कुछ रह जाता है।

काम न आती कद काठी।।


सब कुछ तेरा यहां मिला जो।

यही पड़ा रह जायेगा।।

मिट्टी का पुतला है आखिर।

मिट्टी में मिल जाएगा।।


इंसा है बस इंसा बन ले।

कर्म साथ में जाता है।। 

जाति धर्म कुछ काम न आता।

रस्ता कौन बताता है।।


रक्त सभी का एक रंग का।

यह कैसे झुठलायेगा।।

मिट्टी का पुतला है आखिर।

मिट्टी में मिल जाएगा।।

 मुकेश चंचल ✍️

  बलिया (उ.प्र.) 



Comments