आज वीरान अपना शहर देखा

 


आज विरान अपना शहर देखा तो कई बार नजरें उठाकर देखा 

इंसान टूटे हुए नजर आए और एक ठहरा हुआ सफर देखा 

होश में आ गया जिया हुआ बचपन 

जब हमने गिरा हुआ उसका मकान देखा 

रास्ते काटे हुए हर वह शक्स याद आए 

जब प्यार से गलियों का वह खरंजा देखा

अपने आत्मसम्मान पर जब उनको चोट लगी तो अपने अंदर के मकान का हर एक दीवार देखा

हम खड़े थे उसके गलियों में पर एक शब्द ना उधेड़ा वह अपनी जुबान से

जैसे ही चल पड़े वहां से तो ना जाने कितनी बार नजरें उठा कर वो मुझे इधर उधर देखा 

आज वीरान अपना शहर देखा 

आज वीरान अपना शहर देखा....... 


जानकी सूरी गौर ✍️

          बलिया।




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