"गीत"


आज "विश्व काव्य दिवस" के अवसर पर समस्त कवियों, शायरों, साहित्य-प्रेमियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ अपनी एक रचना प्रकाशनार्थ आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूं।

धुँआ-सा क्या सुलगता है ?

कहीं कुछ तो महकता है !                                                        

-ज़हर कैसा हवा में है कि मेरे

 गुलाबी गीत पियराने लगे हैं !!            

                            ०००                            

कहाँ गुम हो गया वो मुस्कुराने का  हुनर इनका

सलोनापन कहीं भी अब नहीं आता नज़र इनका   

बदलते दौर में होगा भला कैसे गुज़र इनका

भ्रमर भी बेवफ़ा निकले 

तितलियों के भी सुर बदले                                     

-हितैषी थे कभी इनके प्रबल जो

 वही इन पर सितम ढाने लगे हैं !!                       

                            ०००

चलन में इन दिनों है ख़ुश्क शब्दों की कलाकारी

सराहे जा रहे चहुँओर पत्थर  के कलमधारी

मुदित हैं तोड़कर जो  काव्य की लय-छंद से यारी               

नहीं रसमय रहा कुछ भी

 नहीं मधुमय बचा कुछ भी                          

 -बढ़े हैं भाव जबसे बे-सुरों के

 सुरों के ऐब गिनवाने लगे हैं !!                           

                            ०००

कँटीली क्यारियाँ ही अब यहाँ फूले-फलेंगी क्या

लतायें नेह की बस  हाथ ही अपना मलेंगी क्या

निगोड़ी-नफ़रतें ही सिर उठाकर अब चलेंगी क्या

मिटेंगे फ़ासिले कैसे            

मिलेंगे हम गले कैसे

-समय ने प्रश्न ऐसे हैं उछाले

सुधीजन सुनके घबराने लगे हैं !! ज़हर ...

                                         

शशि कुमार सिंह 'प्रेमदेव' ✍️



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