पूर्णत: समाप्ति के कगार पर हैं बलिया में वन्य जीव : डॉ0 गणेश पाठक


3 मार्च विश्व वन्य जीव संरक्षण दिवस पर विशेष :-       

विश्व वन्य जीव दिवस 2023 का मुख्य विषय है- "पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्प्राप्ति हेतु वन्य जीवों की बहाली करना"     

समग्र विकास एवं शोध संस्थान बलिया के सचिव पर्यावरणविद् डा० गणेश पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि बलिया, जो कभी घने वनों से आच्छादित था, अब वन विहीन हो चुका है और यही कारण है कि इस क्षेत्र से वन्य जीवों का भी विनाश हो गया। प्राचीन काल में वन आच्छादन की दृष्टि से बलिया दो क्षेत्रों में बंटा हुआ था, जिसे 'धर्मारण्य' एवं 'वृहदारण्य' कहा जाता था। धर्मारण्य क्षेत्र में ऋषि-मुनि एवं साधु-संत तपस्या करते थे, जबकि वृहदारण्य क्षेत्र घने प्राकृतिक वनों से आच्छादित था। किंतु जैसे-जैसे इस क्षेत्र में मानव का बसाव होता गया, जंगल कटते गए और सर्वत्र प्राकृतिक भूदृश्य के स्थान पर सांस्कृतिक भूदृश्य का निर्माण हो गया। जैसे-जैसे जंगल कटते गए, वन्य जीवों का भी धीरे-धीरे विनाश होता गया, क्योंकि जंगल कटने से इनके प्राकृतिक आवास भी समाप्त होते गए।


पचास वर्ष पूर्व तक बलिया के पश्चिमी क्षेत्र, जिसको बांगर कहा जाता है, पलाश, मकोय, अरूस बबूल, पाकड़, बरगद, सेमल, नीम सहित अनेक प्राकृतिक वनस्पतियां मिलती थी, जिसमें अनेक तरह के वन्य जीव रहते थे। 

इसी तरह गंगा एवं सरयू के दियारे क्षेत्र में सरपत, मूज, बबूल, झौंआ, रेंगनी, धमोय सहित अनेक प्राकृतिक वनस्पतियां पाई जाती थी, जिनमें वन्य जीव मिलते थे। किंतु ये भी समाप्त हो गए।


सीताकुंड एवं परसियां के दक्षिण में नंदन-कानन नामक एक जंगल था, जो धीरे-धीरे समाप्त हो गया और वहां पर खेती होने लगी, जिससे वहां से भी वन्य जीव समाप्त हो गए।

यदि बलिया में प्राचीन काल में पाये जाने वाले हिंसक, अहिंसक एवं रेंगने वाले वन्य जीवों की बात छोड़ भी दें तो पचास वर्ष पूर्व तक बलिया के बांगर क्षेत्र में, टोंस नदी के किनारे स्थित झाड़ियों, गंगा एवं सरयू नदी के दियारा क्षेत्रों में हिरण, सियार, साहिल, ऊदविलांव, जंगली सूअर, जंगली कुत्ते, जंगली भैंसे, नीलगाय, जंगली बिल्ली, भेड़िया, खरगोश, नेवला, आदि वन्य जीव एवं रेंगने वाले वन्य जीवों में सांप, चूहा, बिच्छू, गोजर, बिलगोह, गिरगिट, बिलगोह, बिछखापड़ आदि वन्य जीव पाए जाते थे। वर्तमान समय में ये भी विलुप्त हो गए हैं। कारण कि वर्तमान समय में बलिया में प्राकृतिक वनस्पतियां बिल्कुल समाप्त हो गयी हैं, जिससे बलिया प्राकृतिक वनस्पतियों के साथ- साथ वन्य जीवों की दृष्टि से भी शून्य हो गया है। यही नहीं मानव रोपित वृक्षों की दृष्टि से भी बलिया की स्थिति बेहद खराब है, कारण की बलिया में कुल भूमि का दो प्रतिशत से भी कम भूमि पर वृक्षों का विस्तार है। 


उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बलिया पारिस्थितिकी दृष्टि से असंतुलित क्षेत्र है गया है और यदि बलिया जनपद में वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर स्थिति नहीं सुधारी गयी तो भविष्य में खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो सकती है।



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