आया बंसत लेकर यौवन मधुर और मदमस्त राग


आया बंसत लेकर यौवन मधुर और मदमस्त राग,

खिल उठे घर-ऑगन, वन, बाग, सरोवर तडाॅग।

झुरमुटों से कोयल कूंजे और मुंडेर से बोले काग,

बाजे मृदंग, नाचे मयूर और गूंजे चहुंओर फाग़।

सुन्दरियाॅ हर्षित हुई पाकर अपने-अपने सुहाग,

पर बिरहनियाॅ दिखलाती अपने दिल के गहरे द़ाग। 

आया बंसत लेकर यौवन मधुर और मदमस्त राग।

पुलकित हुए सब बिषधर और माॅद में छिपे नाग,

अम्बर तक कलरव करते मिलकर पशु-पक्षी विहाग।

आया बंसत लेकर यौवन मधुर और मदमस्त राग।

रंग देखकर मौसम बदल गया जन-जीवन का पंचाग,

आशा और खुशहाली के हर चौखट जलने लगे च़राग,

उछल-कूॅद करने लगे शैशव तरूण युवा लेकर छलांग,

हर हृदय हर्षित आनंदित आंदोलित हर दिल-दिमाग़।

आया बंसत लेकर यौवन मधुर और मदमस्त राग। 

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता ✍️

लेखक/साहित्यकार।




Post a Comment

0 Comments