विश्व के प्रत्येक बच्चे को एक विश्व भाषा का ज्ञान होना चाहिए!


अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) पर विशेष लेख :-

(1) बच्चों को मातृ भाषा व राष्ट्र भाषा के साथ ही विश्व भाषा का ज्ञान कराना चाहिए :- संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर 21 फरवरी को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी। सन् 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहराया है। विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृ भाषा अर्थात श्रेत्रीय भाषा का ज्ञान स्वतः हो जाता है। इसके बाद राष्ट्र की भाषा का ज्ञान होना चाहिए। इसके बाद विश्व की भाषा का ज्ञान होना चाहिए। ताकि वैश्विक समाज में वह अपने विचारों का आदान-प्रदान आसानी से कर सके। 

(2) विश्व भाषा अंग्रेजी का ज्ञान बच्चों को बाल्यावस्था से कराना चाहिए :- आपसी सम्पर्क, विश्वव्यापी समझदारी तथा परामर्श के लिए संसार की एक विश्व भाषा चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने छः भाषाओं अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेन्च, रूसी एवं स्पेनिष को विश्व की सम्पर्क भाषाओं (लिंक लेंग्वेज) के रूप में स्वीकारा है, लेकिन अंग्रेजी को छोड़कर शेष पांच भाषायें अपने देष में ही सिमटकर रह गयी। अंग्रेजी अब विदेशी भाषा नहीं रही है। अंग्रेजी विष्व भाषा के रूप में सारे विश्व में फैल गयी है। अंग्रेजी आज तकनीकी, संचार, आधुनिक चिकित्सा, इण्टरनेट, कम्प्यूटर की भाषा भी बन गयी है। संसार के सभी बच्चों को अपनी राष्ट्र भाषा के साथ ही विश्व भाषा के रूप में अंग्रेजी का बचपन से ही अच्छा ज्ञान कराना चाहिए। ताकि वे विश्व भर में बोली तथा समझी जाने वाली विश्व भाषा अंग्रेजी में आपस में परामर्श करके ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान के साथ ही विश्व एकता तथा विश्व शान्ति का सन्देष व्यापक रूप से फैला सके।

(3) बच्चों में बाल्यावस्था से विश्वव्यापी समझ विकसित करनी चाहिए :- हम अपने विद्यालय में विश्व के विभिन्न देशों के छात्रों को प्रतिवर्ष विभिन्न विषयों की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की 26 शैक्षिक सम्मेलनों के अन्तर्गत प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करने के लिए आमंत्रित करते हैं तथा हमारे विद्यालय के सर्वाधिक छात्र वर्ष भर दूसरे देशों में आयोजित शैक्षिक कार्यक्रमों में प्रतिभाग करने जाते हैं। बच्चों की ‘वर्ल्ड पार्लियामेन्ट’ का आयोजन हम अपने प्रत्येक शैक्षिक कार्यक्रम के प्रारम्भ में करते हैं। बच्चों की इस वर्ल्ड पार्लियामेन्ट में विश्व के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि बने बच्चे विश्व की समस्याओं तथा उनके समाधान पर चर्चा करते हैं। बच्चों की प्रत्येक वर्ल्ड पार्लियामेन्ट का एजेण्डा अलग-अलग होता है। इस प्रकार हम बच्चों में बाल्यावस्था से ही उन्हें विश्व की समस्याओं का ज्ञान कराने के साथ ही उनमें उसके समाधान आपसी परामर्श द्वारा निकालने की क्षमता विकसित कर रहे हैं। साथ ही विश्व भर के बच्चों को यह संकल्प कराया जा रहा है कि एक दिन दुनियाँ एक करूँगा धरती स्वर्ग बनाऊँगा, विश्व शान्ति का सपना एक दिन सच कर दिखलाऊँगा। 

(4) निकट भविष्य में सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने की परिकल्पना साकार होगी :- विक्टर ह्यूगो ने कहा है कि ‘‘विश्व की सारी सैन्य शक्ति से अधिक शक्तिशाली वह विचार है जिसका समय आ गया है।’ इसलिए बच्चों को बाल्यावस्था से विद्यालय, परिवार तथा समाज के द्वारा यह विचार देना चाहिए कि ईश्वर एक है, सभी धर्म एक हैं तथा सम्पूर्ण मानवजाति एक है, सभी प्रकार के पूर्वाग्रह दूर हो, व्यक्ति स्वयं सत्य की खोज करे, एक सहायक विश्व भाषा हो, नारी तथा पुरूष समान हैं, विश्व की शिक्षा का स्वरूप एक हो, विज्ञान तथा धर्म में सामंजस्य हो, विश्व की एक अर्थ व्यवस्था हो, एक प्रभावशाली विश्व न्यायालय का गठन हो, प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाने वाली विश्व संसद हो, विश्व की एक राजनैतिक व्यवस्था हो, एक भाषा, एक मुद्रा हो। विश्व सरकार बने तथा संस्कृतियों की विविधता की रक्षा हो। इस प्रकार विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाकर निकट भविष्य में सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने की परिकल्पना साकार होगी। 

(5) 20वीं सदी की शिक्षा के परिणाम दुखदायी रहे हैं :- हम सबको मिलकर मानव-जाति का भाग्य संवारना है। जाति-धर्म तथा संकुचित राष्ट्रीयता के नाम पर एक-दूसरे से नफरत करने का परिणाम बड़ा विनाषकारी होता है। इसी प्रकार यह सभी जानते हैं कि दो राष्ट्रांे या अनेक राष्ट्रों के बीच युद्ध का परिणाम कितना विनाशकारी होता है। षान्ति में ही विकास होता है तथा बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहता है। यह पृथ्वी अपना घर है हमें इसे सुन्दर व सुरक्षित बनाना है। 20वीं सदी की षिक्षा ने संकुलित राष्ट्रीयता पैदा की थी जिसके दुखदायी परिणाम दो विश्व युद्धों, हिरोशिमा व नाकासाकी का महाविनाश तथा राष्ट्रों के बीच अनेक युद्धों के रूप में सामने आ चुके हैं। प्रतिवर्ष 155 देषों का रक्षा बजट बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस पर सभी देशों को मिल-बैठकर विचार करना चाहिए। आतंकवाद तथा पड़ोसी देशों से देश को सुरक्षित करने के लिए शान्ति प्रिय देश भारत को भी अपना रक्षा बजट प्रतिवर्ष बढ़ाना पड़ रहा है। देशों के बीच होने वाले युद्धों तथा युद्धों की तैयारी में हजारों करोड़ डालर विश्व में प्रतिदिन खर्च हो रहे हैं। शान्ति पर कुछ भी खर्चा नहीं आता है। युद्धों तथा युद्धों की तैयारी से पैसा बचाकर इस पैसे से संसार के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा, सुरक्षा, चिकित्सा, रोटी, कपड़ा और मकान की अच्छी व्यवस्था की जा सकती है। 

(6) 21वीं सदी की शिक्षा विश्वव्यापी होनी चाहिए :- युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में उत्पन्न होते हैं और मनुष्य के विचार ग्रहण करने की सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। इसलिए हमें मानव मस्तिष्क में शान्ति के विचार बचपन से ही डालना होगा। 21वीं सदी की षिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बालक को सारे विष्व से प्रेम करने के विश्वव्यापी दृष्टिकोण को विकसित करे। हम बड़ी उम्र के लोगों की जिम्मेदारी हैं कि संसार से जाने के पूर्व हमें विश्व के बच्चों को सुरक्षित भविष्य देकर जाना चाहिए। एकता तथा शान्ति से ओतप्रोत बच्चों की उद्देश्यपूर्ण शिक्षा ही इसका एकमात्र समाधान है। हमारा मानना है कि सारे विष्व की एक षिक्षा प्रणाली हो। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवष्यकता है। यह पृथ्वी पूरी की पूरी हमारे परमात्मा की है। परमात्मा की बनायी पृथ्वी अपनी ही है। यह परायी नहीं है। यह विष्व परिवार हमारे परमात्मा का है। सारे विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाकर आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित करना है।

डॉ. जगदीश गाँधी

शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ।





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