टुकड़ों में नही चाहिये बेटियाँ !!

 


क्या कमी रही संस्कार में मेरी !!

की टुकड़ों में मिली बेटी मेरी !!


चुक तो हुई हमसे परवरिश में !!

कसूर भी हैं हमारी !!


वक्त रहते रोका और टोका होता !!

हर गलती को नजर-अंदाज ना किया होता !!


लड़के मित्रों के साथ तुम्हे खेलने से रोका होता !!

सारे जतन कर के तुम्हे बचाया होता !!


आज टुकड़ों में नहीं तुमको ढ़ुढ़ना पड़ता !!

चिल और गिद्धों ने तुमको नोचा होगा !!


इन टुकड़ों का क्या करू !!

इनमें चेहरा नहीं  कही दिखता !!


परवरिश में चुक  हो गयी हमसे ही !!

हमने ही नहीं रोका तुम्हे !!


जब देर रात तक पहली बार घर लौटी थी !!

पुछने पर बताया तुमने सहेली के साथ थी !!


पहली गलती पर टोका होता !!

देर से आने पर रोका होता !!


आज नहीं तुमको टुकड़ों में !!

ढ़ुढ़ना पड़ता !!


लेखिका ✍️

मीना सिंह राठौर

नोएडा, उत्तर प्रदेश। 



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