तुम्हे नही पसंद था खेलना मेरा
तो खिलौना तोड़ दिया
तुम्हे नही पसंद था हँसना मेरा
तो बेहया कह दिया
तुम्हे नही पसंद था घुमना मेरा
तो अंतर्मन को बेडियाँ पहना दी
तुम्हे नही पसंद था पढ़ना मेरा
तो किताबें जला दी
तुम्हे नही पसंद था लिखना मेरा
तो कलम तोड़ दी
तुम्हे नही पसंद था बोलना मेरा
तो बोलने को चरित्रहीनता से जोड़ दिया
तुम्हे नही पसंद आया बेखौफ़ जीना मेरा
तुमने मेरी रूह तक में खौफ भर दिया
तुम्हे नही पसंद आया लोगो से मिलना मेरा
तुमने पाँव में जंजीर पहना दिया
सुनो ! तुम लाख कोशिश कर लो
तुम नही तोड़ सकते हो आजाद हो जाने का ख्वाब
सपनें देखने का कोशिश
एक दिन पसंद की जिंदगी जीने का ढ़िठ हौंसला
तुम तोड़ सकते हो सब कुछ मेरे भीतर
पर कभी नही तोड़ पाओगे पुरा मुझे
आजाद हो जाने ख्वाब बचा रह जायेगा हमेसा मुझमे
रंजना यादव ✍️
बलिया।
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