*बचपन की यादें.....*


क्यों इतने बड़े हो गये हम !!

आँसू भी निकले तो छिपाना पड़ता है !!


हंसना भी तमीज़ से !!

 बात करे तो ऊँची आवाज ना हो !!


बचपन की बातें बहुत याद आती हैं !!

जहाँ कोई बंदिशे नहीं थी !!


जिने की आजादी थी !!

बरसात के दिनों में !!

हमारी भी जहाज़ चला करती थी !!


छोटी छोटी बात पर हंस देना !!

कुछ मांगने पर ना मिलने पर रो देना !!


हर बात को जिद करके मनवा लेना !!

कुछ गलती करने पर माँ के आँचल में छिप जाना !!


किसी की डांट से बचने के लिये !!

माँ के पिछे छिप जाना !!


माँ हमें सबसे बचाती थी !!

हमारी सारी गलतियों को छिपाती थी !!


हमें भुख लगी हैं ऐ बात बतानी नहीं पड़ता थी !!

माँ अपने हाथ से निवाला खिलाती थी !!


जब  याद आती हैं बचपन की बातें !!

 आज भी आँख भर आती हैं !!


अब ना ही बचपन रहा !!

ना ही वो एहसास रहा !!


सपना सा लगता हैं !!

कुछ खाली पन सा लगता हैं !!


गांव के मेले जब लगते थे !!

हम सबसे पाँच पाँच रुपये लेते थे !!


नये कपड़े भी बनते थे !!

मेले जाने की खुशी में रात  भर जागते थे !!


मिट्टी के हाथी घोड़े खरिद कर खुश होते थे !!

कभी बासुरी रंग बिरंगे गुब्बारे भी लाते थे !!


स्कूल जाते थे जब सारे बच्चे !!

एक दुसरे के घर से बुलाने जाते थे !!


सारे गांव के बच्चे एक साथ स्कूल जाते थे !!

नहीं कोई बस था ना ही कोई रिक्शा !!


पैदल हंसते हंसते बातें करते घर आते थे !!

कभी रास्ते में रुक कर आम तोड़ते थे !!


कभी किसी के खेत से मटर की फलियां !!

सिकायत हमसे पहले घर पहुँच जाया करती थी !!


कुछ झूठी कहानी बता कर बच जाया करते थे !!

माँ के पिछे छिप जाया करते थे !!


खुब चलती थी अपनी भी  !!

मानो दुनियां हैं अपनी ही  !!


स्कूल मास्टर भी कभी कभी हमारे घर आया करते थे !!

चने का होरहा और गन्ने का शरबत हमसे मंगवाया करते थे !!

कभी दही चुरा तो कभी बाटी चोखा !!

हमसे भी बनवाया करते थे !!


हम गृह विज्ञान पढ़ते थे !!

इसी बहाने हमसे खुब खाना पकवाते थे !!


शब्दों में बयां नहीं कर सकती उन लम्हों को !!

हमने बचपन में जिया हैं उनको !!


सपनों सा लगता हैं !!

जो आँखे खुलते ही भुल जाते हैं !!


मीना सिंह राठौर ✍️

नोएडा, उत्तर प्रदेश। 



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