कहाँ डूब गई कश्ती मेरी वफाओं की, क्यूँ मेरी चाहत को कोई किनारा ना मिला.....


उससे ताल्लुक ही कुछ ऐसा रहा है मेरा,

की जब भी सोचा उसे तो आँखें भर आयी !!


एक बार दीदार कर लो मेरा मेरे चेहरे से कफ़न हटा कर,!!

वो आँखे बंद हो गयी है जिन्हे तुम रुलाया करते थे !!


कहाँ डूब गई कश्ती मेरी वफाओं की !!

क्यूँ मेरी चाहत को कोई किनारा ना मिला !!


एक वक्त था जब बातें ही खत्म नहीं होती थी !!

आज सब कुछ खत्म हो गया मगर बात नहीं होती !!


तुम साथ चलते तो शायद मिल जाती मंजिल मुझको !!

बिन तेरे कोई भी रास्ता पहचानता नहीं मुझको !!


छोड दिया है मैंने उनसे बात करना !!

जो समझते थे की मैं मतलब से मीलती हूँ !!


चलो आज फिर से दिखावा करते है !!

तुम मुझे पूछो की कैसी हो और मैं कहूँ की बस ठीक !!


ख्वाब आँखों से गए और नींद रातों से गयी !!

वो जिन्दगी से गए और जिन्दगी हाथों से गयी !!


बहाने क्यूँ ढूढंते हो मुझ से दूर जाने के !!

साफ कह दो की अब मन नहीं करता बात करने का !!


कहानी अजीब है पर यही हकीकत है !!

वो बहुत बदल गये है वादे हज़ार करके !!


मेरे बिना गुजर जाती है उनकी शामें भी आजकल !!

जो कभी फोन पे कहते थे की तुम बिन सुबह नहीं होती !!


थोडा सब्र रख तुझसे रिश्ता भी खत्म कर दुंगी,!!

बस मुझे इन्तजार है मेरी धङकनों के रुक जाने का !!


मीना सिंह राठौर ✍🏻

नोएडा, उत्तर प्रदेश। 



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