मेरी माटी के अमर लाल,
तू ही तो है वो कल्पनाथ !
तू ही हो जनक अपने मऊ के।
दूरभाष और चपला का जाल विछाया,
आलोकित और सूत्रबद्ध किया प्रतिगत पूर्वांचल को।
शिक्षालय और आवागमन का भी रखा ध्यान।
रोजगार और विकास को तूने अपना लक्ष्य बनाया,
बेरोजगारों को हुनर सिखाया।
मिलों और अनुसंधान का भी रखा ध्यान।
जिससे पुलकित हुए हम सारे,
वही तो थे हमारे ख्वाब प्यारे।
जिससे हो गया अपनो को गुमान।
विकास के क्षितिज में तुम बने दिवाकर,
भागे जिसे देख तिमिर।
तुम कर्मयोगी पुत्र थे इस धरा के,
तुम तो वीर थे इस जहां के।
कर्मपथ पर तुम रहे अजेय अटल।
जब से गये तुम अमर लोक,
मऊ के विकास का हो गया विलोप।
एक था मैदान तेरे नाम,
जो भेंट चढ़ा राजनीति के नाम।
निहारता चहुंओर हूँ,
विकास की वाट को।
जिस पथ पर चले कोई होनहार,
बनकर विकास का झंडाबरदार।
राजेश कुमार सिंह ✍️
स्तम्भकार।
9415367382
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