सामूहिक प्रयास, जीवन शैली बदलाव ही विकल्प : कल्याण सिंह
भारत देश जैव विविधता से पूर्ण तरीके से संपूर्ण देश है! प्रकृति ने इस धरा पर प्राकृतिक संसाधनों को उपहार स्वरूप मानव के समुचित उपभोग के लिए निशुल्क प्रदान किया हैं! जिसका उपयोग तथा उपभोग मानव अनादि काल से ही करता आ रहा है! अवैज्ञानिक दृष्टिकोण के समय अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु वह भूमि पर उपस्थित वनस्पति पदार्थो से ही अपनी पूर्ति कर लेता था, परंतु धीरे धीरे मानवीय व्यवहार तथा जनसंख्या मे वृद्धि के फलस्वरूप आवश्यकता के बढ़ने के कारण उसकी पूर्ति हेतु प्राकृतिक संसाधनों तथा मानव के बीच का संतुलन धीरे-धीरे बिगड़ता चला गया क्योकि मानव ने अपने लाभ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अनियमित तरीके से विदोहन् किया जिसके हानिकारक प्रभाव आज स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहे है! आज विश्व के लिए एक मजबूत चुनौती है जलवायु परिवर्तन!
पृथ्वी के औसत तापमान मे होने वाली निरंतर वृद्धि को वैश्विक तपन (ग्लोबल वार्मिंग) की संज्ञा दी जाती हैं। वैश्विक तपन का सबसे भयंकर दुष्परिणाम आज मौसम एवं जलवायु परिवर्तन के रूप मे सामने उभर कर आया है। पृथ्वी के तापमान मे होने वाली निरंतर वृद्धि के कारण मौसम और जलवायु की परिस्थितिया भी बदल रही है। जिसका बुरा प्रभाव आम जनमानस पर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है। 19 वी शताब्दी मे पृथ्वी के औसत तापमान मे 1.62 डिग्री फ़ारेनहाइट (1.1 डिग्री सेल्सियस) की वृद्धि हुयी देखी गयी थी। जबकि आज 21वी शताब्दी के अंत तक 1.6 डिग्री से 4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि की संभावना जताई जा रही है।विश्व के 199 देशों के प्रधानमंत्री ब्रिटेन के ग्लाशको शहर मे कैप-26 (काँफ्रेंस आफ पार्टीज) मे भाग लिए थे, जिसमे भारत देश भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित किया था। जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण पर अगर देखा जाए तो एक तरफ बढ़ती हुयी जनसंख्या, बदलता हुआ जीवन शैली, आधुनिकता रूपी जीवन, के कारण मानव ने पर्यावरण मे भी बदलाव करना शुरू कर दिया है। जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता चला गया। जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण मे ग्रीन हाउस गैसे प्रमुख है। जिनमे प्रमुख रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन गैस, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, तथा नाइट्रस आक्साइड आदि प्रमुख रूप से हैं।
वायुमंडल मे कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात मात्र 0.03 प्रतिशत (350 पीपीएम)था। परंतु औद्योगीकरण का दौर शुरू होने के साथ ही इसके उत्सर्जन मे निरंतर वृद्धि होती चली गयी। वर्तमान समय मे 490 पीपीयम जबकि, 21वीशताब्दी के अंत तक 540 से 970 पीपीएम तक हो जाने की संभावना ब्यक्त की जा रही है। आज भारत देश विश्व का चौथा बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करने वाला देश है, जिसकी विश्व मे कुल कार्बन उत्सर्जन मे लगभग 5 प्रतिशत हिस्सेदारी है। भारत से आगे क्रमश: चीन, अमेरिका, इंगलैंड काबिज है! आज जहा भारत 2.597 मेगाटन (एक मेगाटन=1000, 00 टन) कार्बन उत्सर्जन कर रहा है, वही चीन 11.535 मेगाटन, अमेरिका 5107 मेगाटन, यूनाइटेड किंगडम 3304 मेगाटन, रूस 1792 मेगाटन कार्बन उत्सर्जन के साथ विश्व मे क्रमश: प्रथम, द्वितीय, तथा तृतीय स्थान पर काबिज है। अगर जनसंख्या के हिसाब से प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन देखा जाए तो, भारत विश्व के अमीर तथा विकसित देशो के मुकाबले बहुत ही कम 1.9 टन कार्बन उत्सर्जन कर रहा है, जबकि विकसित तथा अमीर देश अमेरिका प्रति व्यक्ति 15.5 टन कार्बन, रूस 12.5 टन, चीन 8.1 टन, तथा युनाइटेड किंगडम 6.5 टन कार्बन प्रति ब्यक्ति उत्सर्जित कर रहे है।
भारत के संदर्भ मे ग्रीन पीस इंडिया की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट मे यह उजागर हुआ है कि "भारत मे सर्वाधिक आमदनी वाले वर्ग के एक फीसदी लोग सबसे कम आमदानी वाले 38 प्रतिशत लोगों के मुकाबले कार्बन डाइऑक्साइड का साढ़े चार गुना ज्यादा उत्सर्जन करते है!" कार्बन का मुख्य स्रोत देश मे कोयले का उपयोग कल कारखानों मे तथा बिजली उत्पादन के द्वारा हो रहा है! आज भारत सहित दुनिया के तमाम देश कोयले के उपयोग पर पूरी तरीके से आत्मनिर्भर बने हुए है। अगर आकड़ो की तरफ गौर किया जाए तो हम पाते है कि देश की 63 प्रतिशत बिजली कोयला से ही उत्पादित होती है। वही अगर दुनिया के विभिन्न देशों को देखा जाए तो पूरे विश्व मे 35 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयला से जबकि 10 प्रतिशत परमाणु ऊर्जा के द्वारा उत्पादित की जाती है! वही अगर कोयला संयंत्रों की बात की जाए तो भारत मे 281 कोल पावर प्लांट कार्यशील है, जबकि 28 निर्माण के दौर मे तथा 23 प्रस्तावित है। विकसित देशों मे चीन मे 1000 से ज्यादा कोल प्लांट चालू है, वही 250 से ज्यादा कोल प्लांट प्रस्तावित है। यानि भारत के साथ-साथ विश्व के सभी देश पूरी तरीके से कोयले पर निर्भर है। कोयला भारत की मजबूरी है क्योकि भारत देश परमाणु आपूर्ति समूह (एन एस जी) देश की सूची मे शामिल ही नही है, और उसके बीच का रोड़ा चीन ही है। अत भारत कोयले के उपयोग को कम कर सकता है। परंतु पूर्ण तरीके से उसके उपयोग को बंद नही कर सकता है। इसी लिए भारत देश ने जलवायु शिखर सम्मेलन मे कोयले के प्रति "फेज आउट की जगत फेज डाउन" का नारा दिया और 2070 तक कार्बन के उत्सर्जन को शून्य करने का संकल्प दोहराया।
मिथेन गैस भी एक प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है जिसका कुल ग्रीन हाउस गैसों मे कुल 16 प्रतिशत योगदान है! वर्तमान समय मे वायुमंडल मे 1750 (पार्ट पर बिलियन) मिथेन गैस उपस्थित है जिसका दो तिहाई भाग कृषि से उत्पन होता है। यह प्राय: दलदली भूमि, धान के खेत, आदि से निकलती है। इसके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरक के अनियमित प्रयोग से नाइट्रस आक्साइड गैस का भी 6 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैस मे योगदान है। इसके अतिरिक्त एयर कंडीशनर गाड़ियों सामानों मे प्रयोग होने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन भी एक अत्यंत खतरनाक गैस साबित हो रही है जो ओज़ोन परत के नुकसान का मुख्य कारक है। अगर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव प्रभाव का अध्ययन किया जाए तो इसका प्रभाव खेती से लेकर महासागर तक स्पष्ट दिखाई दे रहा हैं। अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन से एल् नीनो जैसे प्रभाव उत्पन्न होंगे। जिससे पूर्वी प्रशांत भूमध्य सागरीय क्षेत्रों का जल अप्रत्याशित रूप से गर्म हो जायेगा। जिससे समुद्री जीवों की हानि होगी। साथ ही साथ ध्रुवीय क्षेत्रों आकर्टिका के विशाल हीमखंड लगभग 199 बीलियन टन प्रति साल की दर से पिघलना शुरू कर देंगे जिसके कारण समुद्री जलस्तर 10 इंच से 5 फुट तक बढ़ जायेगा तथा समुद्र के किनारे वाले नगर डूब जायेंगे। तापमान मे वृद्धि होने के कारण निचले अक्षांशों पर वर्षा कम होगी जिसके कारण सुखा, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाये उत्पन्न होंगी। जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव का आकलन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार मात्र एक डिग्री सेंटिग्रेड तापमान के बढ़ने के कारण भारत मे 40-50 लाख टन गेहूँ की उपज कम होने का अनुमान है! जिससे भविष्य मे खाद्य संकट उत्पन हो सकता है। जलवायु परिवर्तन प्रबंधन के उपाय आज अत्यंत जरूरी हैं। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत यानि पवन ऊर्जा तथा सोलर ऊर्जा के प्रयोग से ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाया जाए! आज हमे 137,600 करोड़ यूनिट बिजली की जरूरत है जिसमे हम मात्र 9.2 प्रतिशत यानि 134 गीगावाट बिजली गैर जीवाश्म ईंधन यानि वैकल्पिक ऊर्जा से बना पा रहे है।वही साल 2030 तक हमे कुल 251,8000 करोड़ यूनिट बिजली की जरूरत होगी जिसके लिए हमे 630 गीगावाट बिजली का उत्पादन सौर ऊर्जा (280) तथा पवन ऊर्जा( 140) से उत्पादित करनी होगी। इस लक्ष्य को पाने के लिए भारत को साल 2030 तक कार्बन उत्सर्जन मे 45 प्रतिशत की कटौती करनी होंगी। जबकि अगर इस पर प्रभावी नियंत्रण नही रखा गया तो कार्बन उत्सर्जन 2030 तक 16 प्रतिशत बढ़ सकता है जिससे तापमान मे 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। पेरिस समझौता तथा कैप -26 मे भारत के जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु तय मानक मे जलवायु परिवर्तन संबंधी पेरिस समझौता सन् 2014-15 मे हुआ था जिसके लिए साल 2030 तक जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु प्रभावी कदम उठाने एवं अमल मे लाने हेतु मसौदा तैयार हुआ किया गया था। वही कैप :-26 के अंतर्गत 2050-2070 तक इस वैश्विक चुनौती के प्रति दुनियाँ के विभिन्न देशों ने अपने लक्ष्य निर्धारित किये। भारत देश साल 2030 तक अपनी जीवाश्म रहित ऊर्जा क्षमता को वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा के द्वारा 500 गीगावाट तक बढ़ायेगा साथ ही साथ 50 प्रतिशत ऊर्जा की जरूरते वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों से पूरा करेगा! सन् 2030 तक कार्बन उत्सर्जन मे एक अरब यानि 100 करोड़ टन की कमी का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारत देश 2030 तक कार्बन की तीब्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है! साल 2070 तक भारत देश नेट कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य तैयार किया हैं।
आज इसके समुचित प्रबंधन के प्रति ठोस कदम नही उठाये गए तो निश्चित रूप से यह विश्व के साथ साथ भारत के लिए अत्यंत भयावह हो रहा हैं।
लेखक :- कल्याण सिंह
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