एक पुष्प की अभिलाषा जो अनुकरणीय है....


मृदुल मधुऋतु में कुसुम-वैभव लदी,

वाटिका तरु डाल मदनोन्मत्त है।

ललित कलियों की ललित मुस्कान से,

झूमता हर पुष्प अति उन्मत्त है। 


मलय की मादक सुगंध स्पर्श पा,

पुष्प डाली पर हुआ अनुरक्त है।

आज माली, पुष्प को उस डाल से,

तोड़ करता, सुखद प्या‌र विभक्त है।


माली द्वारा देव-अर्चन के लिये,

विलग होते पुष्प का अनुरोध है

देव-अर्चन में मुझे कुछ रुचि नहीं,

भाव पर मेरे न करना क्रोध है।


दीन, वंचित, शोषितों, असहाय की,

भूख-व्याकुल बिलबिलाते जीव की।

जो भरी सम्वेदना, पीड़ा हरे,

कामना, उस चरणस्पर्श नसीब की।


भेड़िए हैवान, दुष्टों से घिरी,

आर्त अबला, कर रही, यदि याचना।

जो बचाने कृष्ण बन, उसके चले,

दो चढ़ा उस चरण पर कर अर्चना।

        

 महेन्द्र राय

पूर्व प्रवक्ता अग्रेजी, आजमगढ़। 



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