फिर जागो, भगवन परशुराम ! ..…



भगवान श्री ’परशुराम-जयंती’ की पावन बेला पर, भगवान के पावन पदारविंदो में सादर समर्पित...… 


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फिर ‘परशु’ उठा, ‘कोदंड’ लिए,

कर ‘भ्रष्टों’ पर  भीषण प्रहार।

कर भ्रष्ट-तंत्र में ,उथल-पुथल,

हर लो इनकी , क्षमता अपार।


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फिर जागो उठा है ‘सहसबाहु’,

ले रूप ,‘भ्रष्टता’   का ,अनेक ।

कर रहा  ‘साधु-जन’-उत्पीडन,

कर रहा  ‘भ्रष्टता’   काभिषेक।


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बनता है   ‘भू-माफिया’ कहीं,

अन्यत्र   बना,   ‘भंडारण’   है।

हो  कहीं  ‘छिनैती’ बन उभड़ा,

यह किये रूप, बहु धारण है।


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बन कहीं  ‘शोहदा’,  ‘अपहर्ता’,

शोषण  करता है,  ‘दीनों’ का ।

नफ़रत फैलाता जन-जन में,

हर   रहा  चैन  है ,‘हीनों’ का ।


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कर राजनीति, कर भ्रमित ,सभी,

दिखलाता   स्वप्न   सुहाना   है ।

यह है ‘प्रतिभा’ का कुटिल काल ,

‘मुर्खों’   का  यह ,  दीवाना   हैं  ।


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कर  भीषण  फरसे  से  प्रहार,

दो गाड़ ‘भ्रष्टता’,  ‘अतल’-अमित।

लो  बचा  ,डूबती  प्रतिभा  को,

हो जाय ‘मंदता’  सकल  नमित।


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कर दो समाप्त षड़यंत्र सकल,

जो  रोक  रहीं   ‘प्रतिभा-धारा’।

ये  बड़ी  लकीरें,    छोटी  का,

हैं  मेट  रहीं,  जीवन   सारा ।


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‘सूर्य’ की ‘सूर्यता’ छेड़ नहीं,

है ‘दिव्य’, ‘दिव्यता’ पाने दें।

‚तारों’ में क्षमता पैदा कर,

निज क्षमता से मुस्काने दें।


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रोको  विकास की गति न कभी,

विकसित को ‘विकसित’ होने दो।

बढ़ने   वाले    की   वृद्धि   रोक,

ऐसी    दुर्बुद्धि  न,    होने   दो।


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आओ   मेरे   प्रिय।   परशुराम!,

दो मिटा विषमता, विषम -कुटिल।

छोटा,     बढ़ता    है   बढ़ने   दें,

बढ़ते का पथ, मत करो जटिल।


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प्रभु ! प्रकृति-दत्त, ‘अनमोल रत्न’,

का   कहीं     नहीं  ‘भंडारण’ हो।

यह   फैल  रही    माफिया–वृत्ति,

रोको,    न   रोग  का  कारण हो।


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विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन...…


महेन्द्र राय 

पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़। 

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