पारिवारिक एकता से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक परिवार) की अवधारणा साकार होगी!

 


(अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस 15 मई को विेशेष लेख)

(1) पारिवारिक एकता से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा साकार होगी :- संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने दिनांक 20 सितम्बर 1993 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया है, जिसमें सभी सदस्य देशों में प्रतिवर्ष 15 मई को ‘अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस’ के रूप में मनाने की बात स्वीकार की गयी है। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह प्रयास सारे विश्व के परिवारों में पारिवारिक एकता तथा परिवार से संबंधित मूल्यों के महत्व की ओर ध्यान आकर्षित करता है। साथ ही परिवार की समस्याओं के समाधान के लिए उचित कदम उठाने के लिए प्रेरित भी करता है। यह दिवस सभी देशों के परिवारों की सहायता करने का एक सुअवसर है। हमारा मानना है कि पारिवारिक एकता से ही वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा साकार होगी। 

(2) सामूहिक परिवारों का टूटना और एकल परिवारों का बढ़ना, पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय :- वर्तमान में एकल परिवार का चलन सारे विश्व में लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है, जिसके कारण समाज में संयुक्त परिवार नामक विश्व की सबसे सुन्दर संस्था की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज होती जा रही है। जबकि हम सभी जानते हैं कि परिवार से बड़ा कोई धन नहीं होता, पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं होता, माँ के आँचल से बड़ी कोई दुनिया नहीं होती, भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं और बहन से बड़ा कोई्र शुभ चिन्तक नहीं हो सकता। आज के समय में लोग एकल परिवार को ज्यादा महत्व देने लगे हैं जबकि भारत में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार की धारणा रही है। जिसमें घर के बुजुर्गों को हमेशा आदर और सत्कार दिया जाता रहा है और उनके अनुभव व ज्ञान से युवा व बाल पीढ़ी लाभान्वित होती रही है। 

(3) कोरोना महामारी के समय में लोगों ने ‘संयुक्त परिवार’ के महत्व को समझा :- परिवार एक ऐसी सामाजिक एवं सबसे महत्वपूर्ण संस्था है, जिसकी नींव आपसी सहयोग, त्याग व प्रेम पर आधारित होता है। संयुक्त परिवार में परिवार के सभी सदस्य प्रेम, स्नेह एवं भाईचारा के साथ रहते हुए अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। संस्कार, मर्यादा, सम्मान, समर्पण, आदर, अनुशासन आदि किसी भी सुखी-संपन्न एवं खुशहाल परिवार के गुण होते हैं। इसलिए परिवार के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। एक अच्छा परिवार बच्चे के चरित्र निर्माण से लेकर व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोरोना महामारी के समय में संयुक्त परिवार का महत्व लोगों ने ना केवल महसूस किया बल्कि यह स्वीकार भी किया कि संयुक्त परिवार में रहकर वे सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना बहुत ही आसानी के साथ कर सकें। 

(4) पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है :- हमारा मानना है कि परिवार एक ईट के समान है। एक-एक ईट को जोड़कर विश्व रूपी भवन का निर्माण होता है। परिवार रूपी ईट मजबूत तथा टिकाऊ होने से विश्व भी मजबूत, एकताबद्ध, न्यायप्रिय तथा समृद्ध बनेगा। इसलिए यह कहा जाता है कि पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है। वास्तव में जब बालकों को परिवार और विद्यालय में मानवीय और आध्यात्मिक मार्गदर्शन नहीं मिलता है तब वे अव्यवस्था, अन्याय तथा पीड़ा को झेलते हैं। हमारा मानना है कि नई तथा खुशहाल विश्व सभ्यता को निर्मित करने का कोई भी प्रयास आध्यात्मिकता को शिक्षा पद्धति में शामिल किये बिना सफल नहीं होगा। इसलिए हम अपने बच्चों की मानवीय एवं आध्यात्मिक शिक्षा की उपेक्षा को सहन नहीं कर सकते।

(5) संयुक्त परिवार सबसे सबसे सशक्त इकाई :- प्राणी जगत में संयुक्त परिवार सबसे सशक्त इकाई है। इसके मजबूत रहने से कोई भी संयुक्त परिवार बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना बहुत ही आसानी के साथ करता है। भारतीय संस्कृति में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात पूरी पृथ्वी को एक परिवार एवं सभी मानव जाति को उस परिवार का सदस्य माना गया है। वास्तव में संयुक्त परिवार में रह कर बड़े हुए बच्चों का व्यक्तित्व अन्य बच्चों की अपेक्षा काफी अधिक विकसित रहता है और उनकी समझ ज्यादा प्रभावी और सक्रिय भी होती हैं, जिसका उपयोग वे अपने जीवन में करते हुए बड़ी से बड़ी चुनौतयों का सामना बहुत ही आसानी के साथ करते हैं और सफलता भी प्राप्त करते हैं। इसमें उन्हें संयुक्त परिवार में रहते हुए बुजुर्गों से मिले अनुभवों का विशेष और महत्वपूर्ण योगदान होता है।    

(6) धरती में यदि कहीं जन्नत है तो माता-पिता के कदमों में है :- वृद्धजन अनुभव तथा ज्ञान की पूंजी होते हैं। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह का कहना है कि जब हमारे सामने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी तथा परमात्मा में से किसी एक का चयन करने का प्रश्न आये तो हमें माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी को चुनना चाहिए क्योंकि माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी की सच्चे हृदय से सेवा करना परमात्मा की नजदीकी प्राप्त करने का सबसे सरल तथा सीधा मार्ग है। साथ ही मानव जीवन के परम लक्ष्य अपनी आत्मा का विकास करने का श्रेष्ठ मार्ग भी है। हमारे शास्त्र कहते हैं कि जिस घर में माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी का सम्मान होता है उस घर में देवता वास करते हैं। माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी धरती के भगवान हैं। माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी इस धरती पर परमात्मा की सच्ची पहचान हैं। इसलिए हमें संयुक्त परिवार के महत्व को ना केवल समझना होगा बल्कि इसे आज की बाल एव युवा पीढ़ी के साथ ही आगे आने वाली पीढ़ी को भी समझाना होगा, तभी परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व में शांति एवं एकता की स्थापना हो सकेगी।  - वसुधैव कुटुम्बकम् - जय जगत् -

डॉ. जगदीश गाँधी 

शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक 

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ। 



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