*देह का समंदर*

 


तुम अगर

देह से पार जाते

तो

जान पाते प्रेम को..

खारे पानी से बुझती नहीं है

प्यास कभी भी..

काश कि

तुमने जाना होता इस सत्य को !!!

मैं युगों-युगों से

खड़ी रही  इस पार

लेकिन अफ़सोस !!

तुम कभी भी न लांघ सके

देह के इस समंदर को..!


सुमन जैन ''सत्यगीता'' ✍️

साभार-विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा। 



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