मानववाद के लिए सबसे बड़ा खतरा है निरंतर बढ़ती जनसंख्या : आलोक प्रताप सिंह



वर्तमान समय को अगर देखा जाए तो दुनिया में सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है जनसंख्या विस्फोट वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव सभ्यता की उत्पत्ति को लगभग 130000 साल से लेकर 160000 साल हो चुके हैं। हमें दुनिया की जनसंख्या को 100 करोड़ के आंकड़े पार करने में डेढ़ लाख साल लगे सन् 1804 में दुनिया की आबादी ने पहली बार 100 करोड़ के आंकड़े को छुआ। इसके बाद शुरू हुआ जनसंख्या का महा विस्फोट।

अगले 123 साल यानी 1927 में दुनिया की आबादी बढ़कर 200 करोड़ हो गई फिर भी मानवो को समझ में नहीं आया कि हम प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचाएंगे।

अगले सौ करोड़ तो हमने केवल 33 वर्ष में पूरे कर लिए यानी अब आंकड़ा 300 करोड़ तक पहुंच चुका था।

 तब जाकर दुनिया भर में वैश्विक संगठन बने जिनको एहसास होना शुरू हो चुका था कि अधिक जनसंख्या मानव सभ्यता के पतन का कारण बन सकती है।

भारत 1947 में आजाद हुआ और सन 1952 में आजादी के एकदम बाद भारत ने दुनिया की सबसे पहली परिवार नियोजन योजना शुरू की उस समय यहां की आबादी लगभग 36 करोड़ थी। 11 जुलाई 1987 को दुनिया के 500 करोड़ वे बच्चे ने जन्म लिया तब यूनाइटेड नेशंस और डब्ल्यूएचओ की चिंता और गहराने लगी 36 सदस्यों वाले एक संगठन यूनाइटेड नेशंस पापुलेशन फंड या यूएनएफपीए का गठन किया जिसे दुनिया में जनसंख्या के विषय में काम करना था।

इसलिए सन 1989 में 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाने लगा फिर भी आबादी का कारवां रुकने का नाम नहीं ले रहा था और हमने 1960 के 300 करोड़ आंकड़े को अगले 39 वर्षों में यानी 1999 में बढ़ाकर 600 करोड़ कर दिया था और आगे सिर्फ 20 वर्ष ही बीते थे लेकिन तब तक दुनिया की आबादी लगभग 770 करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है। आंकड़ों के खेल पर ही देखा जाए तो दुनिया की 2.4% भूमि पर भारत में दुनिया की लगभग 18% आबादी रहती है और भारत के पास अपनी इस आबादी को पिलाने के लिए सिर्फ दुनिया का 4% पानी ही है।

आजादी के बाद से हम लगभग 100 करोड़ बढ़ चुके हैं क्या यह चिंता का विषय नहीं है, हमारी प्रतिबद्धता सुनिश्चित होनी चाहिए सन 1947 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5177 क्यूबिक लीटर से 3 गुना घटकर 1545 क्यूबिक लीटर हो गई है। जिस भारत को कभी दूध की नदियों वाला देश कहा जाता था आज वह पानी की नदियों के लिए तरस गया है। बढ़ती आबादी के लिए भोजन इकट्ठा करना देश में सबसे बड़ा कारण बन गया है कई योजनाएं चलाई गई ग्रीन रिवॉल्यूशन ऑपरेशन फूड जैसी परंतु आज भी बीमारियां और भुखमरी से मरने वालों की तादाद कम नहीं हो रही है। आज से लगभग 38 वर्ष पहले भारत और चीन की प्रति व्यक्ति आय और अर्थव्यवस्था लगभग 1 बराबर थी लेकिन चीन ने अपनी बढ़ती आबादी को रोक कर अपने संसाधनों को शोध तकनीकी रक्षा रोजगार सृजन आज के क्षेत्रों में लगाया और आज हम चीन की अर्थव्यवस्था के सामने कहीं पर भी नहीं ढहरते हैं।

बीपीएल सर्वे 1961 के अनुसार भारत में तब 19 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते थे जो कि संघ 2011 के सर्वे में बढ़कर 36 करोड़ हो गए यही नहीं यूनाइटेड नेशंस की मानें तो भारत में अभी 50 करोड़ से भी अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे का जीवन यापन करते हैं। और यहीं नहीं रुके तो अगले 35 वर्षों में युवा जनसंख्या अधिक होने के कारण भारत की आबादी लगभग 200 करोड़ होगी जब दुनिया दूसरे ग्रहों की खोज करने में लगी होगी तब हम अपनी बड़ी हुई आबादी के लिए शौचालय और घर बनवा रहे होंगे।

आज ऐसा समय आ गया है कि बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण स्कूलों की छुट्टी कर दी जा रही है हमने कभी सोचा नहीं था की जंगलों को काटते काटते जंगली जानवरों को हम सड़क पर ला देंगे, किन को नहीं मारा हमने नील गायों को नहीं मारा, जंगली सूअर को नहीं मारा, बंदरों को नहीं मारा, शेर, भालू, चीता, बाघ इनकी तो बात ही नहीं, लेकिन इंसान जो कि अपनी आबादी बढ़ाकर जंगलों को विकास के नाम पर काटने में लगा है उसे मारने का आदेश कौन देगा?

2020 में चीन ने एक रिपोर्ट के अनुसार दावा किया कि दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश अब भारत है और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की वेबसाइट को देखकर तो यही लगता है कि चीन का यह दावा बिल्कुल सही है भारत जनसंख्या विस्फोट के कगार पर है और सरकार और प्रशासन को इसे लेकर कोई चिंता नहीं है भारत को जल्द से जल्द जनसंख्या नियंत्रण के लिए नए मार्गों के विषय में सोचना होगा अन्यथा दुनिया की दृष्टि में भारत वही गरीबों मजदूरों की राजधानी बन कर रह जाएगा और यह केवल भारत सरकार के लिए नहीं है हम आम नागरिकों को भी इसके बारे में सोचना होगा कि हम अपने बच्चे को कैसा भविष्य देना चाहते हैं अब तो समझ में भी नहीं आता कि हम किस को महान करें भारतीय इतिहास को आने वाले भविष्य को। जो भी हो लेकिन जनसंख्या की इस महाप्रलय को रोकने की अत्यंत आवश्यकता है अन्यथा इस सुनामी की चपेट में आकर सब कुछ नष्ट हो जाएगा।


आलोक प्रताप सिंह

विकास अधिकारी

एकीकृत सहकारी विकास परियोजना 

जनपद अंबेडकरनगर।



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