बदनामी और धन की हानि से बचाती हैं चाणक्य की ये चमत्कारी बातें


चाणक्य नीति के अनुसार बदनामी यानि अपयश मनुष्य का सबसे अधिक नुकसान करती है. इससे बचना चाहिए और ये काम भूलकर भी नहीं करने चाहिए.

चाणक्य नीति आज भी प्रासंगिक है. इसके रचियता चाणक्य हैं. चाणक्य को कौटिल्य, विष्णु गुप्त और वात्सायन के नाम से जाना जाता है. चाणक्य को आचार्य चाणक्य भी कहा जाता है. चाणक्य के बारे में कहा जाता है कि वे अपने समय के लोकप्रिय विद्वानों में से एक थे. उनका संबंध विश्च प्रसिद्ध तक्षशिला विश्चविद्यालय से था, जहां आचार्य चाणक्य विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों की शिक्षा प्रदान करते थे.

निंदा न करें, न सुनें : चाणक्य नीति कहती है कि जो व्यक्ति निंदा करने और सुनने में व्यस्त रहता है, उसे अपयश प्राप्त होता है. निंदा नकारात्मक है. ये अवगुण है. इससे किसी का कभी भला नहीं होता है. शास्त्रों में इसे निंदा रस भी कहा गया है. यानि समय रहते यदि इस पर घ्यान न दिया जाए तो व्यक्ति को इसमें आनंद आने लगता है, लेकिन ये आनंद उसके लिए कब घातक हो जाता है, इसका पता उसे स्वयं भी नहीं चलता है. इसलिए निंदा से दूर रहना चाहिए. निंदा करने और सुनने वाले दोनों को ही अच्छा नहीं माना गया है.

नकारात्मकता से दूर रहें : चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को हर प्रकार की नकारात्मकता से दूर रहना चाहिए. ये सफलता में सबसे बड़ी बाधक है. नकारात्मक ऊर्जा और विचार व्यक्ति की क्षमता, प्रतिभा और कुशलता इन तीनों का ही नाश करती है. ये धन की हानि भी कराती है. इसके साथ व्यक्ति का जीवन मुसीबत और संकट से घिर जाता है. इससे दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए. व्यक्ति को सदैव सकारात्मक रहने का प्रयास करना चाहिए. सकारात्मक ऊर्जा से भरा व्यक्ति अधिक क्रियाशील, कलात्मक होता है. यही उसे हर पल कुछ नया और बेहतर करने के लिए प्रेरित करती है.




 

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