हो रहे हर जुर्म का संज्ञान रखेंगे
शौक़ियत में हम लिहाज़-ए-जान रखेंगे
देखना हैं दर्द कितना दे सके ये जिंदगी
हर क़हर पे एक नयी मुस्कान रखेंगे।।
तुम सियासत खेल लो जितनी हुनर तुमको
हम शराफ़त से सजा अभिधान रखेंगे।
मुल्क का ईमान हैं हम ना सियासत जानते
पर जरूरत ग़र पड़ी तो भान रखेंगे।।
तुम रहों अरबों के मालिक लूटकर इस देश को
सोहबतों में हम फ़कीरी ज़ाम रखेंगे।
हो सकेंगी अब नहीं बर्दास्त ये गुस्ताखियाँ
इस चुनावी दौर में संग्राम रखेंगे।।
अंतिमा सिंह "गोरखपुरी"
0 Comments