संविधान दिवस : अभी भी अधूरे हैं संविधान के सुनहरे संकल्प

महान स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के सपनों को साकार करने के लिए संकल्प पत्र के रूप में भारत का  संविधान आज ही के दिन 26 नवम्बर 1949 को पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुआ था और आज ही हमारे 389 महान मनीषियों ने इस पर हस्ताक्षर कर इसे भारत की जनता की तरफ से अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया था। 26 जनवरी 1930 को रावी नदी के तट पर की गई पूर्ण स्वराज्य की ऐतिहासिक घोषणा की महत्ता को भारतीयो में जीवंत रखने के लिए भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। डॉ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरु, बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मौलाना, अबुल कलाम आज़ाद और पंडित अलगू राय शास्त्री जैसे 389 संविधानविदो ने मिलकर जो संविधान बनाया उसमें लगभग दो सौ वर्षों तक चलने वाली ब्रिट्रिश सरकार के दौरान हमारे स्वाधीनता संग्राम सेनानियों द्वारा भोगी गई यातनापूर्ण संघर्ष की अनुभूतिओ की झलक साफ-साफ दिखाई देती है। जिस तरह चौदह वर्षीय वनवासी जीवन की अनुभूतियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को जनता की आशाओं, आकांक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुरूप एक आदर्श राज्य जिसे भारतीय वांगमय में  रामराज्य कहा जाता है स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। उसी तरह हमारे स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने अपनी यातनापूर्ण अनुभूतियों से प्रेरित होकर भारतीय संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाया जिसके प्रकाश में भारत को आत्मनिर्भर, सक्षम और शक्तिशाली के साथ-साथ एक आदर्श कल्याणकारी राज्य बनाया जा सकें। भारतीय संविधान की प्रस्तावना, संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारो तथा नीति निदेशक तत्वों से एक कल्याणकारी राज्य निर्मित करने की संकल्पना साफ-साफ अभिव्यंजित होती हैं। हमारे संविधान की प्रस्तावना में ही सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय स्थापित करते हुए हर नागरिक को गरिमामय जीवन सुनिश्चितता करना प्रत्येक सरकारो का दायित्व बताया गया है। एम वी पायली सहित अन्य राजनीतिक चिंतको के अनुसार प्रस्तावना+मौलिक अधिकार+नीति निदेशक तत्व भारतीय संविधान की प्राणवायु है क्योंकि-प्रस्तावना में सरकार और नागरिकों को मार्गदर्शित करने वाले मूल्य, मान्यताऐ, आदर्श और सिद्धांत अंतर्निहित है तथा मौलिक अधिकारों की अनुपालना और नीति निदेशक तत्वों को मूर्त रूप प्रदान कर ही समाज में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। विगत पचहत्तर वर्षों के शासन के दौरान हम  प्रस्तावना में वर्णित अभिव्यक्ति, धर्म, उपासना और विश्वास की स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को स्थापित करने में कुछ हद तक सफल रहे। परन्तु कभी-कभी होंने वाले साम्प्रदायिक दंगे, हिंसा से परिपूर्ण जातिगत तनाव, माब लिचिंग और कश्मीर सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में होने वाले आतंकवादी की घटनाए अभिव्यक्ति, धर्म, उपासना और विश्वास की स्वतंत्रता पर ग्रहण लगाते हैं। लगभग एक वर्ष तक चलें शांतिपूर्ण अहिंसात्मक किसान आन्दोलन के आगे भारत सरकार का जन भावनाओ का सम्मान करते कदम वापस लेना और प्रधानमंत्री द्वारा क्षमा याचना करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना हमारी मजबूत लोकतंत्रात्मक व्यवस्था की सफलता की पुष्टि करता है। शांतिपूर्ण और अहिंसात्मक धरना, प्रदर्शन, आन्दोलन, अनशन और सत्याग्रह स्वस्थ्य, मजबूत और गतिशील  लोकतंत्र की प्राण वायु। जनता को प्रदत्त इन्हीं लोकतांत्रिक अधिकारों के आधार पर वैश्विक स्तर श्रेष्ठ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का आकलन और मूल्यांकन किया जाता हैं। अगर अपने पडोसी देशो के साथ हम तुलनात्मक विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि-भारतीय संविधान की भूल भावना के अनुरूप हम एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, पंथनिरपेक्ष और लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने में अपेक्षाकृत सफल रहे हैं। 

भारतीय संविधान में पुलिसिया राज्य के विरुद्ध एक कल्याणकारी राज्य बनाने का संकल्प दिग्दर्शित होता हैं परन्तु पचहत्तर वर्षों के शासन के बाद भी हम एक आदर्श कल्याणकारी राज्य स्थापित करने में असफल रहे हैं। हमारे देश के नीति निर्माताओं द्वारा नीति निदेशक तत्वों की अवहेलना, शासन सत्ता पर पूंजीवादी प्रभाव और भावनात्मक राजनीति के बढते चलन-कलन के कारण भारत एक आदर्श कल्याणकारी राज्य के रूप में परिवर्तित नहीं हो पाया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 मे स्पष्ट रूप से कहा गया है कि-"प्रत्येक भारतीय नागरिक को जिन्दा रहने का अधिकार है (every Indian citizen has toalive )"। परन्तु यह सर्वविदित तथ्य है कि-जिविकोपार्जन के साधनों के अभाव में जिन्दा रहने का अधिकार महज कागजी हैं। प्रकारांतर से काम के अधिकार को मौलिक अधिकार बनायें बिना कोई भी राज्य अपने नागरिकों को जिन्दा रहने का अधिकार देने का वादा नहीं कर सकता हैं। पचहत्तर वर्षों के शासन के बाद भी हम काम के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं बना पाए। जबकि-नीति निदेशक तत्वों से संबंधित अनुच्छेद 41 मे नागरिकों को कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार दिया गया है। 

स्वाधीनता उपरांत भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने की दिशा में कुछ सार्थक प्रयास किया गया जैसे-भूभि सुधार कानून, जमींदारी उन्मूलन कानून, कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम और बैंको का राष्ट्रीयकरण इत्यादि। इन समस्त कानूनों के तहत आर्थिक और सामाजिक समानता लाने का प्रयास किया गया। जन कल्याणकारी राज्य बनाने की दिशा में नीति निदेशक तत्व विधायिका और कार्यपालिका के लिए निर्देश हैं। नीति निदेशक तत्वों में स्पष्ट कहा गया है कि राज्य आर्थिक क्षेत्र में एकाधिकारवादी प्रवृत्तिओ को हतोत्साहित करेगा और एक एसी आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करेगा जिससे देश की धन-दौलत अधिकतम लोगों तक वितरित हो सकें। कल्याणकारी राज्य की दिशा में  सर्वाधिक सशक्त भूमिका पंचवर्षीय योजनाओं ने निभाया। समग्र और संतुलित विकास को ध्यान में रखकर संचालित की गई पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने में काफी तक सफलता प्राप्त हुई। परन्तु आज फिर देश में आर्थिक संकेन्द्रण की प्रवृत्तियाॅ बढ रही हैं। यह भारत जैसे कल्याणकारी राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। बैंको के राष्ट्रीय करण ने भी जनकल्याणकारी योजनाएं बनाने में सराहनीय भूमिका का निर्वहन किया। एक स्वस्थ्य और गतिशील लोकतंत्र में सत्ता का विकेन्द्रीकरण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस दिशा में तिहत्तरवें और चौहत्तरवें संविधान संशोधन द्वारा ग्राम पंचायतों और नगर पंचायतो को संवैधानिक दर्जा देना एक ऐतिहासिक कदम था। 

अततः अभी भी आर्थिक असमानता को कम करने की दिशा निर्णायक नीतियां बनाने की आवश्यकता है। 2010 में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार की श्रेणी में शामिल कर लिया गया परन्तु व्यवहारिकता के धरातल पर आम आदमी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं। आवश्यक वस्तुओं के दाम बढने से लोग फिर गरीबी रेखा के नीचे आते जा रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सरकारों द्वारा अत्यधिक संरक्षण देने के कारण भारत के देशज परम्परागत और लघु कुटीर उद्योगो पर खतरा मंडराने लगा है। देशज परम्परागत लघु कुटीर उद्योग आर्थिक विकेन्द्रीकरण के सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। इसलिए इनका संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है। आज फिर से हमें संविधानविदो के सुनहरे सपनों को स्मरण करते हुए संकल्पित और समर्पित भाव से अपने सामाजिक और नागरिक दायित्वों का पालन करना होगा। 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर दरगाह मऊ ।

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