भारतीय राजनीति से नदारद होती सादगी, सच्चाई, साफगोई और सचरित्रता.....

जिस रफ्तार से लगभग हर दल की सरकारें स्वच्छता अभियान चला रहीं हैं उसी रफ्तार से भारतीय राजनीति से  सादगी, सच्चाई, साफगोई और सचरित्रता नदारद होती जा रही है। इक्कीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दो दशकों में राजनीतिक शैली ने बुलेट ट्रेन की रफ्तार से करवट बदली है। 1990 के दशक में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के नारों के साथ बाजारवादी अर्थत्ंत्र के रूप में  ढलते भारतीय अर्थत्ंत्र के प्रभाव के फलस्वरूप भारतीय राजनीति में गहरा परिवर्तन हुआ है। इस दौर के नेताओं के चाल-चलन, वेश-भूषा, रहन-सहन और आचरण-व्यवहार से सादगी लगभग विलुप्त हो चुकी हैं। इस दौर में सादगी की राजनीति पर जब बहस होती हैं तो गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत मनोहर पारिकर और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री श्री माणिक सरकार जैसे गिनें-चुने नाम ही लोगों की जुबान पर आते हैं। वैसे तो स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान और स्वाधीनता उपरांत दो तीन दशकों तक नेताओं द्वारा सादगीपूर्ण जीवन शैली अपनाना आम जनमानस की दृष्टि में लोकप्रिय होने के लिए लगभग आवश्यक था। इक्कीसवीं सदी तक आते-आते न जाने कौन सी हवा चली कि-आज भारतीय राजनीति में वी आई पी संस्कृति सिर चढकर बोलने लगी। आज लम्बे लाव लश्कर के साथ तथा लक्जरी गाड़ियों के लम्बे  काफिलो के साथ चलना नेताओं की पहचान बनती जा रही है। पहले रोडवेज की बसों में सांसदों और विधायकों के लिए एक सीट आरक्षित रहती थी। सांसद और विधायक रोडवेज की बसों में सवार होकर आम जनमानस के साथ घुल-मिल कर और लोगों की दुख तकलीफे सुनते समझते यात्रा करते थे। अपने निर्वाचित प्रतिनिधि को अपने साथ सफर करते हुए लोगों को एहसास होता था कि-हमारा नेता हमारे बीच का है। जबसे निर्वाचित प्रतिनिधि लम्बी लक्जरी गाड़ियो से चलने लगें तबसे नेता और जनता के बीच का फासला बढता गया और जनता और नेता के बीच अपने-पन का एहसास खत्म हो गया। जनता और नेता के बीच बढता फासला लोकतंत्र को राजतंत्रीय परम्पराओं की याद दिलाता है। चाल-चलन के साथ नेताओं के रहन-सहन की संस्कृति में भी  परिवर्तन देखने को मिल रहा है। आज नेता अपने कार्यकर्तार्ओं के आवास पर शायद ही रात्रि विश्राम करते होंगे अक्सर नेता डाकबंगला और सर्किट हाऊस संस्कृति के शिकार हो गए हैं। लगभग हर जनपद मुख्यालय पर वी आई पी नेताओं के रूकने ठहरने और रात्रि विश्राम करने के लिए डाकबंगला और सर्किट हाऊस बनें हुए हैं। निर्वाचित होने के बाद राजनेता पुरी तरह सुविधाभोगी और विलासितापूर्ण जीवन शैली को अपनाने लगते हैं। इसके साथ राजनेताओं में बढता सुपीरियारिटी काम्पलैक्स उनके चाल-चलन और अंदाज में देखा जा सकता है। जनपद मुख्यालय पर बने डाकबंगला और सर्किट हाऊस वी आई पी संस्कृति को बढावा देते हैं तथा सत्ता में बैठे नेता आम जनमानस की समस्याओं से अनभिज्ञ रह जाते हैं। यह सत्य है कि-डाकबंगला और सर्किट हाऊस में नेताओं द्वारा जनता की समस्याओं को सुना समझा जाता है परन्तु यह महज दिखावटी होता हैं।  स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय स्तर के नेता अपने कार्यकर्ताओं के घर ठहरते थे और रात्रि विश्राम करते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रभाव के कारण कांग्रेस के नेता देश भ्रमण करते समय सत्याग्रहियों के घर पर ठहरते थे।  इसका स्वाभाविक परिणाम यह होता था कि-लोक-संवेदना से परिपूर्ण और जनसेवा के प्रति ईमानदार और तत्पर तथा समर्पित रहने वाले नेता जनता की हर तरह की समस्याओं से रूबरू हो जाते थे । मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि-देश के बडे ओहदेदार नेता अगर किसी कार्यकर्ता के गाँव में रूकने ,ठहरने और रात्रि विश्राम करने लगे तो वह गाँव की सारी समस्याओं से भली-भांति परिचित हो जायेंगे और उसका समुचित समाधान का रास्ता भी निकल आयेगा। इसलिए आम जनमानस की समस्याओं का वास्तविक समाधान करने के लिए नेताओं को डाकबंगला और सर्किट हाऊस संस्कृति से बाहर निकलना होगा। 

सादगी के साथ-साथ वर्तमान दौर की राजनीति से सच्चाई और साफगोई भी लगभग विलुप्त होती जा रही है। भारतीय राजनीति में जब महात्मा गाँधी ने पदार्पण किया था तो उन्होंने सत्य और अहिंसा को राजनीति का औजार बनाया। महात्मा गाँधी ने कहा था कि-"सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य हैं"। आज भारतीय राजनीति में झूठ, फरेब, मक्कारी, धूर्तता और चापलूसी अपनी पराकाष्ठा पर हैं। दोहरे चरित्र और दोहरे व्यक्तित्व वाले नेताओं की फेहरिस्त निरन्तर लम्बी होती जा रही है। आज सच्चे, ईमानदार और सिद्धांतवादी नेता राजनीतिक मैदान से पूरी तरह हाशिए पर धकेल दिए गए हैं। जनता का वोट हासिल करने के लिए मंचों से भावनात्मक धोखाधड़ी के खेल के साथ-साथ झूठे वादो की झड़ी लगाई जाती हैं और चुनाव जीतने के बाद निर्वाचित प्रतिनिधि जनता से किये वादों से मुकरने लगते है। यही कारण है कि- आज आम जनमानस का विश्वास नेताओं से उठता जा रहा है। यह सर्वविदित तथ्य है कि-अविश्वसनीय नेतृत्व से विश्वसनीय लोकतंत्र की स्थापना नहीं की जा सकती है। सच्चाई, साफगोई और बचनबद्धता की परम्परागत भारतीय राजनीति को पुनर्स्थापित किये बिना जनता के बुनियादी अधिकारों की रक्षा नहीं की जा सकती है और न ही उनका  वास्तविक कल्याण सुनिश्चित हो सकता हैं। राजनीति से सच्चाई और साफगोई समाप्त होने और उत्तरोत्तर बढती सिद्धांतहीनता का दुष्प्रभाव आज दो रूपों में देखने को मिल रहा है। पहला वर्तमान दौर की राजनीति में दल-बदल की प्रवृत्ति तेजी से बढ रही है और दूसरा राजनीतिक दलों से आंतरिक लोकतंत्र लगभग समाप्त होता जा रहा है और राजनीतिक दलों में लगभग हाई कमान कल्चर स्थापित हो चुका है। राजनीतिक कार्यकर्ताओ की स्थिति लगभग बधुऑ मजदूर सरीखी होती जा रही है। 

राजनीतिक व्यक्तित्व के लिए एक न्यूनतम चरित्र और न्यूनतम समझदारी का होना आवश्यक है। आज भारतीय राजनीति में जिस तरह बाहुबलियो, अपराधिक पृष्ठभूमि वाले, आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे और येन-केन प्रकारेण दौलत का साम्राज्य खडा करने वालों का प्रभाव बढता जा रहा है उससे भारतीय राजनीति पूरी तरह प्रदूषित होती जा रही है। आचार्य नरेन्द्र देव एक समय लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति थें। महज चवन्नी का हिसाब गड़बड़ हुआ तो उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। आज बेदाग, ईमानदार और चरित्रवान नेताओं का अभाव होता जा रहा है। एक राजनेता के अंदर संविधान सहित जनता की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर न्यूनतम समझदारी का होना भी आवश्यक है। ताकि वह अपने क्षेत्र की समस्याओं को दमदारी से विधानसभा और संसद के पटल पर रख सकें। आज देश, समाज तथा संविधान की बेहतर जानकारी रखने वाले और जन मानस की समस्याओं की बेहतर समझदारी रखने वाले नेताओं का अभाव होता जा रहा है। इसलिए संसद और विधानसभा में होने वाली बहसो की गुणवत्ता उत्तरोत्तर गिरती जा रही है। सचरित्रता और समझदारी रखने वाले तथा आदर्श राजनीति के लिए आवश्यक गुणों से परिपूर्ण नेताओ द्वारा ही एक स्वस्थ्य, समरस और समतामूलक समाज बनाया जा सकता हैं। प्रकारांतर से भारतीय राजनीति में सादगी, सच्चाई, साफगोई, सचरित्रता और बचनबद्धता जैसे गुणों को पुनर्जीवित कर ही हम जनता की आशाओं, आकांक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुरूप विकास सुनिश्चित कर सकते हैं। 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।

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