जल जमाव एवं दीपावली में होने वाली आतिशबाजी से घातक हो सकता है बलिया में प्रदूषण : डा० गणेश कुमार पाठक


बलिया: अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य एवं वर्तमान में जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के शैक्षणिक निदेशक पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि इस वर्ष अत्यधिक वर्षा होने एवं समुचित जल निकास की व्यवस्था न होने के कारणन केवल बलिया नगर में, बल्कि जिले के विभिन्न क्षेत्रों में जल जमाव की भयंकर समस्या उत्पन्न हो गयी है, जिसके चलते जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण एवं मिट्टी प्रदूषण भी विकराल रूप धारण कर लिया है। इस वर्ष तो बाढ़ एवं जल जमाव अपने भयंकर रूप में अपना दुष्प्रभाव दिखा रखा है। पूरा बलिया नगर ही नहीं, बल्कि जिले के प्रत्येक क्षेत्र में जल जमाव की समस्या विकट रूप धारण किए हुए है। जल जमाव से नालियाँ जाम होकर बजबजाने लगी हैं, कुड़ा- कचरा सड़ कर दुर्गंध देने लगा है। सड़कों पर फेका गया एवं मुहल्लों में फैला कूड़ा-कचरा सड़़ कर न केवल दुर्गंध फैला रहा है, बल्कि उसके विषैले तत्व जल एवं मिट्टी में मिलकर जल एवं मिट्टी कै भी प्रदूषित कर दिए हैं। दुर्गंध से वायु प्रदूषण भी घातक होता जा रहा है। जल प्रदूषण तो विशेष रूप से घातक हो गया है, जिसके फलस्वरूप अनेक तरह की बीमारियाँ फैल रही हैं। नमी युक्त वातावरण से अनेक तरह के विषैले कीड़ों एवं मच्छरों की भरमार हो गयी है, जिससे मलेरिया एवं फाईलेरिया रोग सहित सर्दी, जुकाम, बुखार, फोड़े- फुंसी, दाद-खाज आदि संक्रमणजनित बीमारियाँ फैलने लगी हैं। यही नहीं जाड़ा प्रारम्भ होते ही कुहरा का प्रकोप बढ़ जाता है और वायु प्रदूषण भी गंभीर रूप धारण कर लेता है। कुहरा के कारण दृश्यता कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में बरसात की समाप्ति से लेकर पूरे जाड़े भर संक्रमण की स्थिति घातक हो सकती है। इसी दौरान धान की पराली जलायी जाती है, जिससे वायु प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि होती है और दमघोटू वातावरण में साँस लेना मुश्किल हो जाता है।

जहाँ तक बलिया जनपद सहित पूर्वांचल के जनपदों एवं इस क्षेत्र में स्थित शहरों की बात है तो उनमें भी संक्रमण की स्थिति भयावह हो गयी है। अकेले बलिया में लगभग एक सौ डेंगू के मरीज हो गये हैं। वायरल बुखार का प्रकोप जोरों पर है।

जहां तक बलिया सहित पूर्वांच के जिलों में पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण की बात है तो इन जिलों में भी रोक के बावजूद भी धड़ल्ले से धान की पराली जलायी जाती है, जिससे निकला धुँआ कार्बन के रूप में वायुमंडल में पहुँचकर वायु को प्रदूषित कर देता है। जनपद बलिया में विगत वर्षों में प्राप्त आँकड़ों के अनुसार 120231 हेक्टेयर कृषि भूमि पर धान की खेती की जाती है। यदि विकासखण्डवार स्थिति को देखें तो सीयर, नगरा, रसड़ा, चिलिकहर, नवानगर, पन्दह, मनियर, बेरूआरबारी, बाँसडीह, रेवती, गड़वार, सोहाँव, हनुमानगंज, दुबहड़, बेलहरी, बैरिया एवं मुरलीछपरा विकासखण्डों में क्रमशः 13162, 19518, 10751, 11604, 8361, 11577, 8669, 5024, 6129, 4381, 8605, 3299, 3282, 1460, 73, एवं 77 हेक्टेयर कृषि भूमि पर धान की खेती की जाती है। यदि इनमें से 50 प्रतिशत भी धान की खेती की पराली जलाई जाती है तो स्थिति भयंकर हो सकती है, जैसा कि विगत वर्षों में होता रहा है।

जहाँ तक पराली जलाने  को रोकने की बात है तो इसके लिए प्राविधान बनाया गया है कि पराली जलाने वालों पर दण्डात्मक कारवाई की जायेगी। अतः जो पराली जलाता है, उसे दण्डित किया जाय ताकि और लोगों में भी डर व्याप्त हो। साथ ही साथ इसके लिए भी जनजारूकता पैदा करना अति आवश्यक है। इससे होने वाले दुष्परिणामों से किसानों को अवगत कराया जाय और यह भी समझाया जाय कि पराली जलाने से न केवल उसी क्षेत्र में, बल्कि इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है और इससे हजारों- लाखों लोगों का जीवन संकट में पड़ सकता है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है। कृषि के लिए लाभदायक कीट भी जल कर समाप्त हो जाते हैं।

जहाँ तक बलिया में वायु प्रदूषण की बात है तो यहाँ बड़े- बड़े उद्योग- धंधे नहीं हैं, किंतु दिल्ली, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर- प्रदेश के औद्योगिक केन्द्रों से निकलने वाला विषैला धुँआ पश्चिमी वायु के सहारे प्रवाहित होकर इस क्षेत्र तक आ पहुँचता है और इस क्षेत्र के वायु को प्रदूषित कर वायु प्रदूषण में वृद्धि कर देता है। साथ ही साथ अनियंत्रित आतिशबाजी से निकला विषैला धुँआ इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण के लिए विशेष घातक सिद्ध होता है, जिससे दमा एवं श्वांस के रोगियों एवं एवं हृदय के रोगियों के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है। आतिशबाजी से होने वाले शोर प्रदूषण से भी हृदय रोगियों को खतरा उत्पन्न हो जाता हे। मानसिक स्तर पर शोर प्रदूषण का विशेष प्रभाव पड़ता है। गर्भवती महिलाओं एवं गर्भस्थ शिशुओं के लिए भी शोर प्रदूषण घातक होता है।

निश्चित तौर पर यदि आतिशबाजी के प्रति सावधानी नहीं बरती गयी और उसे नियंत्रित नहीं किया गया तथा पराली जलाने से उत्पन्न प्रदूषण सहित अन्य प्रदूषण जैसे-धूलि कण से उत्पन्न प्रदूषण, सडा़स एवं दुर्गंध से उत्पन्न प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायू प्रदूषण एवं भूमि प्रदूषण तथा सबसे खतरनाक आतिशबाजी से उत्पन्न शोर प्रदूषण को नियंत्रित नहीं किया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है।  

सभी प्रकार के प्रदूषण को रोकने हेतु यद्यपि कि प्रदूषण नियंत्रण कानून बना हुआ है, किंतु उसका कड़ाई से पालन नहीं होता है। अतः प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित सभी कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। एक बात और महत्वपूर्ण है कि प्रदूषण को रोकना सिर्फ सरकार की या कानून की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हम सबकी अर्थात आम जनता की भी जिम्मेदारी होनी चाहिए और इसके लिए जनजागरूकता अति आवश्यक है। प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों एवं प्रदूषण से उत्पन्न खतरों से आम जनता को अवगत कराना अति आवश्यक है, ताकि जनता अपना बचाव स्वयं कर सके और दूसरों को भी सचेष्ट कर सके। हम न तो स्वयं प्रदूषण करें और न दूसरों को प्रदूषण करने दें तो निश्चित है कि प्रदूषण पर रोक लगाई जा सकती है।



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