सपने बेचकर, सब्जबाग दिखाकर,
तुम जो हर-बार जीतकर चुनाव में,
गलाघोंट देते हो अरमानो और इरादों का।
खून कर देते हो आशाओं और उम्मीदों का।
झूठे वादों की धूल झोंककर हमारी आंखों में,
लूट लेते हो हमारी उंगलियों के बेशकीमती स्याही के नीले निशान,
धो लेते हो अपने गुनाह और कायम कर लेते हो दुग्ध धवल पहचान।
हमारे हिस्से में आता है धक्का मुक्की लाठियाँ और वही रूखी-सूखी रोटियां,
तुम हासिल कर लेते हो इज्ज़त शोहरत दौतल और गगनचुंबी बुलंदियां।
चुनावी मौसम में सिसकियां लेती जिन पंगडंडियो पर नेता वोट मांगते हैं।
उन्हीं पंगडंडियो पर हर मौसम में हमारे फेफड़े आज भी धूल फांकते हैं।
भोला-भाला समझकर, भुलवाकर लेकर चले जाते हो हमारा वोट,
जाति धर्म गोत्र पगड़ी का हवाला देकर लोकतंत्र पर करते रहते हो चोट।
इक दिन जरूर जागेगा जनता का जमीर,
जिसके वोट से बन जाते हो रातों रात अमीर।
तुम जो हर बार जाति धर्म की अफीम पिला देते हो हर चुनाव में,
इक दिन जरूर इस अफीम की आगोश से बाहर आयेगा,
इक दिन अपने हक हूकूक के लिए मुक्कम्ल होश में आयेगा,
जिसे तुम सीधा-साधा, भोला-भाला सड़क-छाप वोटर समझते हों,
वो मुट्ठियाँ भींच कर खडा होगा,
ध्वस्त कर देगा तेरे झूठ फरेब मक्कारी के महल और किले,
इस दुनिया में सडक पुल पुलिया इमारत सब कुछ वही बनाता है,
जिसको तुम आम जनता समझकर धौंस दिखाते हुए ठग लेते हो,
इतिहास बताता है, इस दुनिया में सब कुछ बनाने वाला
जब सीना तान कर खड़ा होता है तो इतिहास बदलता है,
इक दिन खड़ा होगा तुम्हारा भाग्य बनाने वाला अपना भाग्य बदलने के लिए,
जिस दिन इंकलाब की तख्तियाॅ लिए खड़ा होगा सडक पर,
फिर सडक से सदन तक सब कुछ बदल कर रख देखा,
तब जरूर समझ जाओगे,
जिस जनता को सिर्फ मतदाता समझते हो,
वही है इस है इस देश इस जनतंत्र का असली भाग्य-विधाता है।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।
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