भारतीय समाजवाद के प्रखर राजनेता, प्रचारक तथा प्रवक्ता थे जय प्रकाश नारायण


11 अक्तूबर 1902 को सिताबदियरा में पैदा हुए लोकनायक जयप्रकाश ने अपना राजनीतिक जीवन गाँधीवादी असहयोगी और भगवत गीता के दर्शन के ईमानदार विद्यार्थी और अनुयायी के रूप में किया। हालांकि कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय अमेरिका  में अध्ययन के दौरान उनका सम्पर्क पूर्वी यूरोप के बुद्धिजीवियों से हुआ और उनके प्रभावस्वरूप वह मार्क्सवाद की तरफ आकर्षित हुए। उनके मस्तिष्क को मानवेन्द्र नाथ राय की धारदार रचनाओं ने भी प्रभावित किया था। मार्क्सवाद से आकर्षित होने के बावजूद उन्होंने रसियन क्रांति का समर्थन नहीं किया और बोलशेविक पार्टी द्वारा किये गये हिंसात्मक कार्रवाइयों से उनको बहुत आघात लगा। वे मार्क्सवाद से प्रभावित होने के बावजूद साम्यवाद के सत्तावादी कठोर नियंत्रण व्यवस्था के प्रमुख आलोचक रहे। तिब्बत पर अपनाये गये चीनी साम्यवादियो के रवैये की उन्होंने कटु आलोचना की। जयप्रकाश नारायण ने समाजवादी मन-मिजाज और वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ कांग्रेस पार्टी मे शिरकत किया। 1934 में भारतीय कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना में उन्होंने  महती भूमिका निभाई तथा दल और दल के कार्यक्रमो को लोकप्रिय बनाने में अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया। एक प्रखर समाजवादी प्रवक्ता के रूप में जयप्रकाश नारायण की प्रखरता इस बात में थी कि-उन्हें राजनीति के आर्थिक आधारों का स्पष्ट ज्ञान था। इसी प्रखरता और प्रतिभा के कारण महात्मा गाँधी उन्हें समाजवाद का सबसे बडा भारतीय विद्वान मानते थे। रसियन विचारकों की अपेक्षा जयप्रकाश नारायण पर अमेरिकन और ब्रिटिश समाजवादी विचारकों का ज्यादा प्रभाव था। वह समाजवाद को आर्थिक-सामाजिक पुनर्निर्माण का एक सम्पूर्ण सिद्धांत मानते थे। समाजवादी होने के नाते उनका स्पष्ट अभिमत था कि- सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में व्याप्त असमानता का मुख्य कारण चुनिंदा लोगों का उत्पादन के साधनों पर अत्यधिक नियंत्रण और बृहत्तर आबादी का उससे वंचित होना है। समाजवाद की स्थापना उत्पादन के साधनों का सामाजीककरण करके ही की जा सकती हैं। समाजवादी व्यवस्था ही विशाल जन समुदाय को आर्थिक शोषण की निर्मम प्रक्रियाओं से मुक्ति दिला सकती हैं।

जयप्रकाश नारायण ने समाजवाद का पक्षपोषण भारतीय संस्कृति में निहित मूल्यों ,मान्यताओं और आदर्शों के आधार पर भी किया। उनके अनुसार वस्तुओं का मिल-बाँट कर उपभोग करने की परम्परा भारतीय संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा रही हैं। इसलिए उनके अनुसार यह आरोप उपहासास्पद है कि समाजवाद का सिद्धांत पश्चिम से लिया गया है। इसमें संदेह नहीं है कि समाजवाद के व्यवस्थित आर्थिक सिद्धांतों का निरूपण पश्चिम में हुआ परन्तु समाजवाद के आदर्श और दार्शनिक तत्व भारतीय संस्कृति में विद्यमान रहे हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में समाजवाद की स्थापना के लिए वह भूमि-सम्बन्धी कानूनों में आमूल-चूल सुधार की आवश्यकता पर बल देते थे और वह सहकारी खेती के प्रबल पक्षधर थे। उनके अनुसार सम्पूर्ण एशिया की मुख्य आर्थिक समस्या कृषि पुनर्निर्माण की है। 

महात्मा गांधी के निधन के उपरांत जयप्रकाश नारायण के राजनीतिक व्यक्तित्व का गहरा रूपांतरण हो गया।  उन्हें संस्थागत और बाह्य परिवर्तनों की उपादेयता पर संदेह होने लगा और आभ्यंतरिक परिवर्तन के उस सिद्धांत पर विश्वास बढ्ने लगा जिस पर गाँधी जी सर्वाधिक बल दिया। कालान्तर में  वह सुप्रसिद्ध गाँधी वादी संत विनोबा भावे के प्रभाव में सर्वोदयी हो गए तथा सर्वोदय और सम्पूर्ण क्रांति के लिए सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। आज जब दलगत राजनीति  पतन की तरफ अग्रसर हैं ऐसे समय में  जयप्रकाश नारायण द्वारा प्रस्तुत दलविहिन जनतंत्र का विचार निश्चित रूप से विचार करने योग्य है। 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता

बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ




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