आज का ज्ञान :-
"क्या हुआ ? जबसे आप ऑफिस से लौटे हैं बहुत परेशान लग रहे हैं !"
" हाँ मैं परेशान हूँ शकुन, आज भी तुमने बच्चों और मेरा छोड़ा हुआ खाना घर के आगे जानवरों के खाने के लिए डाल रखा था।"
"जी हाँ,वो तो मैं रोज़ डालती हूँ। फिर... ?"
"जब मैं ऑफिस के लिए निकला तो देखा कि एक बदहाल बच्चे और कुत्ते में भोजन को ग्रहण करने के लिए द्वन्द चल रहा था। खुद पर झपटते कुत्ते को बच्चे ने पत्थर मारकर भगा दिया और भोजन पर टूट पड़ा। "
"अरे ?" हैरानी से उसके मुँह से निकल पड़ा।
"मुझे निकलते देखकर बच्चे ने शर्मिंदा होकर भोजन छोड़ दिया।
तभी मौका पाकर वो कुत्ता आया और बचा हुआ भोजन चट कर गया।"
" हे भगवान "
"बच्चे ने जिस बेचारगी से उस खत्म होते हुए खाने को देखा, मेरा दिल दहल गया।एक ओर हम जैसे लोग हैं जो अन्न की इतनी बर्बादी करते हैं। और दूसरी ओर इतने बेबस लोग ..जिन्हें पेट की आग इतना मजबूर करती है की वो कैसे भी इस ज्वाला को शांत कर लेना चाहते हैं।" व्याकुलता अब विश्वास के चेहरे पर नज़र आ रही थी।
" तो आप मुझसे कह देते। मैं उसे ज़रूर कुछ खिला देती "
" मैंने उसे खाने के लिए पैसे तो दे दिए थे। पर बचपन से अब तक जितना अन्न मैंने बर्बाद किया है अब उसका प्रायश्चित करूँगा।"
" मतलब ?"
" आज से मैं सिर्फ एक वक़्त भोजन ग्रहण करूँगा।"
डॉ0 वी0 के0 सिंह
दंत चिकित्सक
ओम शांति डेण्टल क्लिनिक
इंदिरा मार्केट, बलिया।
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