तालिबान सरकार की मान्यता पर संकट

ग्यारह सितम्बर का नाम आते ही अमरीकी ट्विन टॉवर जो कभी विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय हुआ करता था, के ऊपर 11.09.2001 को हुए आतंकबादी हमले की याद ताज़ा हो जाती है। अज़ीब संयोग है कि उसी के बाद अफगानिस्तान में नाटो के नेतृत्व में अमेरिकी हस्तक्षेप ने जिस तालिबानी सरकार के प्रथम युग का अंत किया वही तालिबान अब उसी अमेरिका के परोक्ष सहयोग या उसके अफगानिस्तान से तटस्थ होते ही पुनः ग्यारह सितम्बर दो हज़ार इक्कीस  को वैश्विक स्तर पर मान्यता की कामना के साथ नई सरकार का गठन कर रहा है जिसमे भुक्तभोगी अमरीका के साथ, चीन, भारत, पाकिस्तान आदि बहुत से देशों को आमंत्रित किया गया है।       

वैश्विक सरकारों के बीच अफ़ग़ानिस्तान में एक ऐसी सरकार की स्थापना होने जा रही है जिसके मंत्रिमंडल के लगभग सभी सदस्य वैश्विक आतंकवादियों की सूची में न केवल सम्मिलित हैं वरन उनमें कुछ अंतराष्ट्रीय संगठनों द्वारा प्रतिबंधित भी हैं। तालिबान सरकार के प्रधानमंत्री मुल्ला हसन अखुंद  जहाँ संयुक्तराष्ट्र संघ द्वारा प्रतिबंधित हैं, वहीँ उनके गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी पर तिहत्तर करोड़ ₹ का एफबीआई  ने ईनाम घोषित कर रखा है साथ ही शरणार्थी मंत्री खलील हक्कानी पर 35.5 करोड़ ₹ का ईनाम। अब्दुल गनी बारादर जो अब उप प्रधानमंत्री बन रहें हैं इनको कुछ दिनों पहले  तालिबानी  सरकार के प्रमुख के रूप में देखा जा रहा था, विदित हो कि अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के गठन में अपने कुछ पसंदीदा आतंकवादी चेहरों को सम्मिलित करने हेतु पाकिस्तनि इंटेलिजेंस एजेंसी के चीफ ने अफगानिस्तान की यात्रा कर अपने नीति को अंजाम दिया परिणामस्वरूप मुल्ला हसन अंखुद को  कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया और अब्दुल गनी बरादर जो आँकवादियों के विभिन्न गुटों में सामंजस्य बनाने की काबलियत रखते थे का, पर क़तर दिया गया और उनको उप प्रधानमंत्री से सन्तोष करना पड़ा। तालिबान सरकार मे तैंतीस मंत्री सम्मिलित हो रहे हैं जो लगभग सभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वांटेड की उपाधि धारण किये हुए अपनी सरकार को अंतराष्ट्रीय स्तरपर मान्यता हेतु प्रयासरत होंगें। उस सरकार की भविष्य में सारभौमिक स्विकार्यता की बात क्या सोची जाए जिसके शिक्षा मंत्री नुरुल्ला मुनीर दृष्टिकोण से उच्च शिक्षा पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है। उन्होंने पी एच डी और स्नातकोत्तर की पढ़ाई को बेकार बताया है। 

इसी बीच अफगानिस्तान 11.09.2001 की बरसी पर हो रहा शपथग्रहण अमरीकी नीति नियंताओं को शूल की तरह पीड़ा देता रहेगा क्योंकि इस सरकार के गठन के पीछे परोक्ष सहयोग जो बाइडेन की असफल नीतियों माना जा रहा है  हो सकताहै की पूर्व अफगान सरकार की विकल्पहीनता ने यह स्थिति शीघ्र लायी हो किन्तु अमेरिकी नेतृत्व अपनी ऐतिहासिक गलती से शायद कभी पीछा न छुड़ा पाए, उसके सॉजो सामान ने  वैश्विक शांति के विरोधियों को सामरिक रूप से मजबूत किया है। 

13 वें ब्रिक्स सम्मेलन में जो कि भारतीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 9 .9.2021 वर्चुवल माध्यम से हुआ उसमे दिल्ली धोषणा पत्र पर सहमति बनी। विश्व की पांचों बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने जिसमे ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसिनारो, रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सारिल रामाफोसा भाग लिए । सभी ने अफगानिस्तान की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। रूसी राष्ट्रपति  ब्लादिमीर पुतिन ने इस स्थिति के लिए अमेरिका को दोषी बताया। सभी ने एक स्वर में अफगानिस्तान की ज़मीन का प्रयोग आतंकबादी गतिविधियों के लिए न होने देने पर बचनबद्धता ब्ययक्त की साथ साथ अफगानिस्तान की जमीन का प्रयोग विदेशों में हमलों के लिए न हो, आतंकवादियों के वित्तीय नेटवर्क, सीमापार आतंकवाद, आतंकी शरणगाह आदि मुद्गों को सम्मिलित किया गया। महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारोंकी रक्षा हेतु प्रतिबद्धता भी ब्ययक्त की। तालिबानी सरकार के गठन की प्रकिया के बीच यह पहली बड़ी  उच्चस्तरीय बैठक थी जिसपर पूरीतरह अफगान मुद्दा छाया रहा।

उधर अमेरिका ने भी तालिबानी सरकार पर  जल्दबाजी दिखाने से इनकार किया है ।रूस  और अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार विगत दिनों भारत मे थे और भारतीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेशमंत्री एस जयशंकर आदि सम्बन्धित लोगों से अफगान मामले में रणनीतिक वार्ता की । भारत ने अपनी सीमापार आतंकवाद और तालिबान के रोज़ बदलते बयानों से सभी लोगों से अपनी चिंताओं से अवगत कराया। चर्चा के बीच भारत अपनी सुरक्षा को पुख्ता कर रहा है। पाकिस्तान की सीमा से महज़ चालीस किमी दूरी पर राजस्थान के बाड़मेर जिले में वायुसेना के मालवाहक विमान हरक्यूलिस से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने नेशनल हाइवे पर इमरजेंसी लैंडिंग व टेक ऑफ कर भारतीय सुरक्षा तैयारियों का का निरीक्षण व साथ ही साथ पड़ोसी को अपनी तैयारियों का संदेश दिया ।पाकिस्तान की योजना कश्मीर की शांति को  अफगानिस्तान के तालिबानी सरकार के  माध्यम से प्रभावित करने की है इधर विभिन्न माध्यमों से यह सूचना प्राप्त ही रही है कि तालिबानी सरकार से सम्बन्धित आतंकवादी पीओके की तरफ कूच कर रहें है। उपरोक्त परिस्थितियों में भारत तालिबान सरकार को मान्यता देने में कदापि जल्दबाजी नहीं दिखाने वाला जैसा कि वेट एंड वाच की उसकी तत्सम्बन्धित घोषित नीति से स्प्ष्ट है, हा उसकी विभन्न  अफ़ग़ानी परियोजनाओं का भविष्य व उससे सम्बन्धित हित के साथ अफ़ग़ानी जनता की समस्याओं को ले कर वह चिंतित है जो एक पड़ोसी के नाते स्वाभाविक है।

चीन अफ़ग़ानी खनिजों  व अपने सड़क योजना पर अपनी गिद्ध दृष्टि डाले हुए है जिसके लिए उसने तालिबान की भारी आर्थिक मदद के साथ कोरोना टीका, दवाएं एवं अन्य सामग्रियों की खेप भेजी है वह अपने वाईगर मुस्लिमो के मामले में तालिबानी हस्तक्षेप को रोकने हेतु सौदेबाज़ी के दौर में है ।तुर्की ने भी अभी मान्यता न देने की बात की है। खस्ताहाल पाकिस्तान तहरीके तालिबान पाकिस्तान के पाकिस्तान में हस्तक्षेप से डर कर मदद की खेप न केवल तालिबान को भेजी है वरन अपने ड्रोन व सेना द्वारा पंजशीर में तालिबान की मदद भी की लेकिन उसकी सेना को पीछे हटना पड़ा। यूरोपीय यूनियन भी अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता देने के फिलहाल मूड में नहीं दिखता ।उधर तालिबान सरकार इस्राइल को छोड़ पूरे विश्व से अपने दूतावासों को अफगानिस्तान में खोलने व उसकी तालिबान सरकार को मान्यता देने की माँग कर रहा है लेकिन तालिबानियों द्वारा शान्तिप्रिय महिला प्रदर्शनकारियों के साथ हो रहे बर्बर ब्यवहार ने मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ा दी हैं।

अफगानिस्तान के सबसे छोटे लेकिन जुझारू प्रान्त पंजशीर में अहमद मसूद समानांतर सरकार बनाने की होड़ में लगे हैं और अपने लड़ाकों के साथ  तालिबान को कठिन चुनौती देते हुए लगभग 60 प्रतिशत पंजशीर पर कब्जे का दावा कर रहें हैं।

ऊपरोक्त परिस्थितियों में तालिबानी सरकार की वैश्विक मान्यता पर संकट के बादल छाए हुए हैं जो जल्दी छंटने वाले  नहीं लगते।


राजेश कुमार सिंह 

वरिष्ठ समाजसेवी  व स्तम्भकार 

मऊ

मो0- 9415367382



    

      

  

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