*कटु वचन*


आज का ज्ञान :-

दो भाई  परस्पर बडे़ ही स्नेह तथा सद्भावपूर्वक रहते थे।

दोनो भाई कोई वस्तु लाते तो एक दूसरे के परिवार के लिए भी अवश्य ही लाते, छोटा भाई भी सदा उनको आदर तथा सम्मान की दृष्टि से देखता !

एक दिन किसी बात पर दोनों में कहा सुनी हो गई। बात बढ़ गई और छोटे भाई ने बडे़ भाई के प्रति अपशब्द कह दिए। बस फिर क्या था ?

दोनों के बीच दरार पड़ ही तो गई। उस दिन से ही दोनों अलग-अलग रहने लगे और कोई किसी से नहीं बोला। कई वर्ष बीत गये !

मार्ग में आमने सामने भी पड़ जाते तो कतराकर दृष्टि बचा जाते, छोटे भाई की कन्या का विवाह आया। उसने सोचा बडे़ अंत में बडे़ ही हैं, जाकर मना लाना चाहिए !

 वह बडे़ भाई के पास गया और पैरों में पड़कर पिछली बातों के लिए क्षमा माँगने लगा । बोला, *"अब चलिए और विवाह कार्य संभालिए !"*

 पर बड़ा भाई न पसीजा, चलने से साफ मना कर दिया।  

छोटे भाई को दुःख हुआ। अब वह इसी चिंता में रहने लगा कि कैसे भाई को मनाकर लगा जाए इधर विवाह के भी बहुत ही थोडे दिन रह गये थे। संबंधी आने लगे थे !

एक सम्बन्धी ने बताया, *"तुम्हारा बडा भाई एक संत के पास नित्य जाता है और उनका कहना भी मानता है!"*

छोटा भाई उन संत के पास पहुँचा और पिछली सारी बात बताते हुए अपनी त्रुटि के लिए क्षमा याचना की तथा गहरा पश्चात्ताप व्यक्त किया और उनसे प्रार्थना की, *''आप किसी भी तरह मेरे भाई को मेरे यहाँ आने के लिए तैयार कर दे !''*

दूसरे दिन जब बडा़ भाई सत्संग में गया तो संत ने उससे पूछा, *"क्यों तुम्हारे छोटे भाई के यहाँ कन्या का विवाह है ? तुम क्या-क्या काम संभाल रहे हो ?"*

 *"मैं तो विवाह में सम्मिलित ही नही हो रहा। कुछ वर्ष पूर्व मेरे छोटे भाई ने मुझे ऐसे कड़वे वचन कहे थे, जो आज भी मेरे हृदय में काँटे की तरह खटक रहे हैं !''* बड़े भाई ने कहा।

संत जी ने कहा, *"सत्संग के बाद मुझसे मिल कर जाना!"*

सत्संग समाप्त होने पर वह संत के पास पहुँचा, उन्होंने पूछा, *"मैंने गत रविवार को जो प्रवचन दिया था उसमें क्या कहा था?"*

अब भाई मौन!

काफी देर सोचने के बाद हाथ जोड़ कर बोला, *" माफी चाहता हूँ,कुछ याद नहीं पडता़ कौन सा विषय था ?"*

संत बोले, *"देखा! मेरी बताई हुई अच्छी बातें तो तुम्हें आठ दिन भी याद न रहीं और छोटे भाई के कडवे बोल जो एक वर्ष पहले कहे गये थे, वे तुम्हें अभी तक हृदय में चुभ रहे है। जब तुम अच्छी बातों को याद ही नहीं रख सकते, तब उन्हें जीवन में कैसे उतारोगे"*

 *"और जब जीवन नहीं  सुधारा तब सत्सग में आने का लाभ ही क्या रहा ? अतः कल से यहाँ मत आया करो !''*

*अब बडे़ भाई की आँखें खुली।उसने आत्म-चिंतन किया और स्वीकार किया  "मैं वास्तव में ही गलत मार्ग पर हूँ !"*

 *हमारे साथ भी ऐसा ही होता है अक्सर दूसरों की कही किसी बात का हम बुरा मान जाते हैं और बेवजह उससे दूरी बना लेते हैं।*

*हमें चाहिए कि हम आपसी बातचीत से मन में उपजी कटुता को भुलाकर सौहार्द पूर्ण वातावरण बनाएं।*

*न स्वयम किसी से रूठें न किसी को रूठने का मौका दें।*     

*तो शुभ काम में देरी क्यों*

*कृपया उठाएं फोन और हो जाएं शुरू*

*रूठों को मनाने में*

*दूसरों की गलतियों को भुलाते हुए स्वयम ही वार्तालाप प्रारम्भ कर अपना और उनका दिन खुशियों से भरने में*

*बडप्पन भी इसी में ही है!*


डॉ0 बी0 के0 सिंह

दन्त चिकित्सक

ओम शांति डेण्टल क्लिनिक

इंदिरा मार्केट, बलिया। 



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