तेजी से तबाही की तरफ बढ़ रही है दुनिया, चीन-रूस ने पृथ्वी ध्वस्त करने वाले न्यूक्लियर हथियार बनाए


वॉशिंगटन। दुनिया में सबसे शक्तिशाली बनने की हवस में लगता है चीन और रूस इस पृथ्वी को बर्बाद करके ही दम लेंगे। एक सिक्रेट डॉक्यूमेंट्स से खुलासा हुआ है कि चीन और रूस ने इतने खतरनाक न्यूक्लियर हथियार बना लिए हैं, जो पूरी पृथ्वी पर तबाही ला सकता है और ये दोनों देश इतनी तेजी से दूसरे देशों से उलझते जा रहे हैं, जिससे न्यूक्लियर वार का खतरा दुनिया पर काफी तेजी से मंडराने लगा है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि चीन और रूस लगातार अपने पड़ोसी देशों को उकसा रहे हैं, जिसका नतीजा दुनिया को परमाणु युद्ध के तौर पर चुकाना पड़ सकता है।

चीन और रूस सबसे बड़ा खतरा

चीन और रूस, दोनों जगहों पर लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं है। इन दोनों देशों में जिन लोगों के हाथों में सत्ता है, उन्हें किसी और की बात मानने से कोई मतलब नहीं है और इन दोनों देशों के शीर्ष के नेता अपनी सत्ता बचाने और देश में विद्रोह दबाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। और इन दोनों के पीछे पीछे तीसरा खतरा है नॉर्थ कोरिया का, जिसका सनकी तानाशाह हर वक्त परमाणु बम फोड़ने की धमकी देता रहता है। आपको बता दें कि नॉर्थ कोरिया को परमाणु बम बनाने की तकनीक पाकिस्तान से मिली थी। रिपोर्ट के मुताबिक नॉर्थ कोरिया ने अमेरिका तक मार करने वाली परमाणु मिसाइलों का निर्माण कर लिया है, जबकि ईरान अगले एक साल में न्यूक्लियर हथियार विकसित कर सकता है।

रिपोर्ट में बेहद खतरनाक खुलासे

पेंटागन-2020 की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिका ने 2010 से परमाणु हथियारों की क्षमताओं में कमी लाने पर सभी देशों से बातचीत करनी शुरू कर दी थी, लेकिन कोई भी देश न्यूक्लियर हथियार कम करने पर तैयार नहीं हो रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ''इन सभी देशों ने अपने संभावित युद्ध और संभावित दुश्मन पर न्यूक्लियर अटैक करने की मंशा को ध्यान में रखते हुए न्यूक्लियर हथियार नहीं बनाने से इनकार कर दिया है। मंगलवार को प्रकाशित रिपोर्ट में ईरान और नॉर्थ कोरिया के न्यूक्लियर प्रोग्राम को दुनिया के लिए बड़ा खतरा बताया गया है। खासकर चीन और रूस को लेकर बेहद गंभीर चेतावनी जारी की गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन और रूस क्षेत्रीय संघर्ष को काफी तेजी से बढ़ावा दे रहे हैं और ये दोनों अपने विरोधी देशों के खिलाफ लगातार परमाणु हथियारों की संख्या में वृद्धि कर रहे हैं।

खतरनाक स्थिति में फंसा अमेरिका

पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन और रूस अमेरिका के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात बन गये हैं और इन दोनों देशों ने जिस न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी को विकसित किया है, वो अमेरिका के लिए हद से ज्यादा खतरनाक बन चुके हैं। 2019 में अमेरिका और रूस 1987 में बनाए गये इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स संधि से अलग हो गये, जिसके लिए अमेरिका और सोवियत संघ, दोनों देशों को अपने 500 से 5,500 किलोमीटर की रेंज के साथ अपने सभी परमाणु और पारंपरिक ग्राउंड-लॉन्च बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों को खत्म करने की आवश्यकता थी। लेकिन, अब दोनों देशों ने 2021 में न्यू स्ट्रैटजिक आर्म्स रिडक्शन संधि को 5 सालों के लिए बढ़ा दिया है। रूस, जो अमेरिका और नाटो को 'अपनी समकालीन भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा' मानता है, उसने अपनी नौसेना में परमाणु हथियोंरी की तादाद में काफी तेजी से वृद्धि की और कई नये न्यूक्लियर हथियार लॉन्च किए हैं। वहीं, रूस ने अमेरिका पर दवाब बनाने के लिए तीन नए अंतरमहाद्वीपीय-रेंज परमाणु हथियार प्रणाली विकसित कर रहा है।

चीन का परमाणु कार्यक्रम, खतरे में भारत

चीन ने अमेरिका और भारत को ध्यान में रखते हुए न्यूक्लियर हथियारों की संख्या में काफी तेजी से इजाफा किया है, जिसमें उसका अत्याधुनिक एडवांस पनडुब्बी न्यूक्लियर मिसाइल भी शामिल है। इसके साथ ही चीन बॉम्बर भी तैयार कर रहा है, जिसकी मदद से चीन, हवा, पानी और जमीन, तीनों जगहों से न्यूक्लियर हथियार छोड़ सकता है। अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियारों के निर्माण में तेजी लाई है और हाल ही में अमेरिका तक मार करने में सक्षम इंटरकॉन्टिनेन्टल अंतरमहाद्वीपीय दूरी की मिसाइलों का परीक्षण किया है और अपने मिसाइल कार्यक्रम में नाटकीय अंदाज में वृद्धि हासिल की है।

अमेरिका का न्यूक्लियर कार्यक्रम

इस बीच पेंटागन-2020 की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका का परमाणु हथियार कार्यक्रम एक सिर्फ एक्सट्रीम परिस्थितियों के लिए है और अमेरिका अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए तभी बाध्य होगा, जब अमेरिका की सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल किया जाना अत्यंत जरूरी ना हो जाए। 2020 में अमेरिका ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम पर अपनी सोच को काफी नरम कर लिया है, और 'संघर्ष में हावी' होने के लिए परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के उल्लेख को हटा दिया है। लेकिन, चीन, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जिस रफ्तार से अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है, वो पूरी दुनिया को बर्बाद करने के लिए काफी है और इन देशों में जिस तरह की सरकार है, उसे मानवीय मूल्यों और लोकतांत्रिक विचारों की कोई परवाह नहीं है।

चीन ने बनाया अदृश्य समुद्री हथियार

बीजिंग। पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका ड्रैगन समुद्र के अंदर रहने वाला एक ऐसा अदृश्य हथियार तैयार कर रहा है, जो एक गुप्त दुश्मन की तरह कभी भी दुश्मनों को निशाना बना सकता है और इस हथियार को चलाने के लिए इंसानों की जरूरत भी नहीं होगी। रिपोर्ट के मुताबिक चीन पानी के भीतर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस रोबोट विकसित कर रहा है, जो समुद्र में छिप सकता है और बिना किसी इंसानी डायरेक्शन के टॉरपीडो के साथ दुश्मन के जहाजों पर हमला कर सकता है। चीन का ये नया अदृश्य हथियार भारत के लिए टेंशन से कम नहीं है।

पानी में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस रोबोट

रिपोर्ट के मुताबिक करीब 10 साल पहले समुद्र के अंदर खोज करने के लिए ड्रोन बनाए गये थे, जिसका एक डमी रोबोट पानी के अंदर पनडुब्बी को खोजने और उसपर हमला करने को लेकर एक्सपेरीमेंट किया जा रहा था और रिपोर्ट है की चीन ने इस एक्सपेरिमेंट में कामयाबी हासिल कर ली है। चीन का ये रोबोट पानी के अंदर गायब रहेगा और इसे रडार से पकड़ा नहीं जा सकेगा। लेकिन पानी में गायब रहते हुए भी ये दुश्मनों के जहाजों पर टारपीडो से हमला कर सकता है। चीन ने ताइवान स्ट्रेट के पास इस आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस रोबोट यूएवी ड्रोन का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है और माना जा रहा है कि अमेरिका के साथ साथ भारत के लिए भी ये बेहद बड़ी चुनौती है।

असाधारण खूबियों से लैस है रोबोट

डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक ये आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस रोबोट कई खूबियों से लैस है और टेस्ट के दौरान पाया हया कि ये रोबोट खुद समुद्र के अंदर बिना कोई इंस्ट्रक्शन दिए अपने टार्गेट की पहचान कर पा रहा है। ये रोबोट समुद्र के अंदर पनडुब्बियों को बेहद आसानी से पहचानने में सक्षम है और इसके साथ ही ये पानी के अंदर जरूरत के मुताबिक कभी भी अपना डायरेक्शन भी बदल सकता है और फिर ये उस पनडुब्बी पर टारपीडो के जरिए हमला कर सकता है। इस रोबोट ड्रोन में सोनार सिस्टम लगा हुआ है, जिससे ये काफी ज्यादा असरदार हो जाता है। इसके साथ ही रोबोट अपने सेंसर के जरिए डेटा को अपने कंप्यूटर तक भेजता है और फिर कम्प्यूटर उसे टास्क को अंजाम देने का निर्देश देता है। 2010 में हार्बिन इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस प्रयोग का जिक्र किया था, जिसे पिछले हफ्ते सार्वजनिक किया गया है। प्रोफेसर लियांग गुओलॉन्ग के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि, 'भविष्य में पानी के अंदर होने वाली लड़ाई के लिए ये एक महत्वपूर्ण खोज है जो मानव रहित लड़ाई के लिए नये अवसरों को जन्म देती है''।

जापान से तनाव के बीच ऐलान

चीन ने ताइवान स्ट्रेट में इस मानव रहित ड्रोन रोबोट का सफलतापूर्वक टेस्ट किया है, जिसे वो अपना इलाका कहता है। दरअसल, चीन ने इस टेस्ट का अचानक कामयाब होने का ऐलान किया है और ऐसे वक्त में किया है, जब जापान ने कहा था कि अगर चीन ताइवान पर कब्जा करने की कोशिश करता है, तो जापान ताइवान को बचाने आएगा। जिसके जवाब में चीन ने कहा कि अगर जापान बीच में आता है तो चीन उसे बर्बाद कर देगा। वहीं, चीन की भोंपू मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में जापान को धमकी देते हुए लिखा है कि अगर जापान अमेरिका के साथ मिलकर ताइवान की रक्षा के लिए आता है, तो वो अपनी कब्र खोद रहा है। इस लेख में चीनी अखबार ने ये भी लिखा है कि 'चीन के खिलाफ जापान शक्तिहीन है' और ग्लोबल टाइम्स ने जापान को 'लाल रेखा' पार नहीं करने की चेतावनी दी है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अभी तक समुद्री ड्रोन का इस्तेमाल समुद्री व्यापार में सहूलियत के लिए किया जाता रहा है और अभी तक इसका इस्तेमाल किसी लड़ाई में नहीं किया गया है।

लंबे वक्त से एक्सपेरिमेंट

माना जा रहा है कि चीन इस ड्रोन के लिए लंबे वक्त से तैयारी कर रहा था और पिछले कई महीनो में एशियाई के कई समुद्र तटों पर बहते हुए ड्रोन पाए गये हैं। दिसंबर महीने में इंडोनेशिया के मछुआरों ने दक्षिणी सुलावेसी द्वीप के पास समुद्री तट पर करीब 2 मीटर का लंबा मानवरहित ड्रोन को पकड़ा था। 6 दिनों के बाद इंडोनेशिया के अधिकारियों को उस ड्रोन के बारे में जानकारी दी गई, और स्थानीय मीडिया में प्रकाशित तस्वीरों में इंडोनेशियाई सैन्य अधिकारियों को लंबे भूरे रंग के ड्रोन के साथ दिखाया गया था, जिसे चीनी हैयी या 'सी विंग' के रूप में पहचाना गया था। स्थानीय मीडिया ने कहा कि ड्रोन 'मिसाइल के आकार में' था, जो एल्यूमीनियम से बना था, और दोनों तरफ 50 सेमी विंग के साथ 225 सेमी लंबा था। उपकरण से जुड़ा एक पिछला एंटीना भी 93 सेमी लंबा है। हालांकि, उस वक्त किसी ने ध्यान नहीं दिया कि चीन ऐसा कोई हथियार बनाने की दिशा में काम कर रहा है।

साभार-oneindia hindi




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