ये कहानी झारखंड के एक मामूली से परिवार की एक बेटी की है। जिसने अपने हौसलों से ना सिर्फ अपनी जाति, अपने मां-बाप, अपने गांव का नाम रोशन किया बल्कि भारत का नाम भी विश्व पटल पर सुनहरे शब्दों में लिख दिया।
ऐ छोरी तू माने ना है, जब देखो ये मुआ धनुष बाण लिए फिरे है, आन दे तेरे बापू को आज, तेरे धनुष बाण की छुट्टी ना करवाई तो मैं तेरी दादी नही।
हर समय छोरी जब देखो आम के पेड़ों पर निशाना लगाती रहवे है, चल माना दो चार आम तोड़ लिए पर तू है कि पूरे गांव के बालकों के आम तोड़ने का जिम्मा लिए बैठी है, तेरी मां तो सुबह ही नर्स की नौकरी के लिए निकल जावे है, तेरा बापू भी सुबह सवेरे ऑटो रिक्शा लेकर निकले हैं उसका तो न दिन का पता न रात का, अब तुझे रोटी पानी, चूल्हा चौका सिखाने का काम मेरा ही ठहरा, और सुन छोरी जे चूल्हा चौका ही छोरियों के काम आवे है, ये धनुष बाण ना।
ना दादी मुझे ना सीखना ये चूल्हा चौका, मुझे तो इस धनुष बाण के साथ ही कुछ करना है।और तू क्या समझे है दादी मै सबके आम यूं ही तोड़ू हूं ना, मैं तो अपना निशाना पक्का करूं हूं, सबके आम तोड़ कर, और मुझे तो इसमें ही आनंद आवे है मेरी प्यारी दादी।
दीपिका के माता पिता उसकी कला को तो जाने है, पर गरीबी की वजह से उसे ओलंपिक वाली धनुष बाण नहीं दिला सकते हैं। लेकिन बच्ची के हौसले बुलंद हैं, वह एक परंपरागत तरीके से बने बांस के धनुष बाण के साथ अपना अभ्यास जारी रखती है।
कहते हैं ना सच्चे हुनर को कोई नहीं दबा सकता, एक दिन उसकी दूर की चचेरी बहन तीरंदाज विद्या आती है, और उसका हौसला बढ़ाती है, और उसे टाटा तीरंदाज एकैडमी में दाखिला लेने के लिए कहती है।
टाटा एकेडमी में आकर दीपिका का हुनर कोयले से निकले हीरे की तरह निखरता ही चला जाता है और आज परिणाम सबके सामने है।
दीपिका कुमारी महतो ने हाल ही में पेरिस वर्ल्ड कप में 3 गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया।
2012 से शुरू हुई अपनी इस यात्रा में दीपिका कुमारी ने वर्ल्ड कप में 10 गोलड, 13सिल्वर, व 5 ब्रोंज मेडल लिए है।
कॉमनवेल्थ गेम में दो गोल्ड।
एशियाई चैंपियनशिप में 1 गोल्ड, 2 सिल्वर।
वर्ल्ड चैंपियनशिप में 2 सिल्वर लिए हैं।
और अभी तो दीपिका कुमारी की यात्रा अनवरत जारी है, जो कि सफलता के और कई नये आयाम लिखेगी। इसलिए कहा भी गया है...
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