चाणक्य नीति : पिता-पत्नी या पुत्र को भूलकर न करें ऐसा दुलार, हमेशा रहेंगे दुखी

 


अपने परिवार के साथ रहना और सुख-दुख बांटना, इस धरती पर स्वर्ग की अनुभूति से कम नहीं है, लेकिन कुछ ऐसी बातें और व्यवहार भी हैं, जिनकी वजह से रिश्तों में कड़वाहट घुल सकती है .


चाणक्य नीति : अपने परिवार के साथ रहना और सुख-दुख बांटना, इस धरती पर स्वर्ग की अनुभूति से कम नहीं है, लेकिन कुछ ऐसी बातें और व्यवहार भी हैं, जिनकी वजह से रिश्तों में कड़वाहट घुल सकती है या उनका भविष्य दांव पर लग सकता है. ऐसे में पूरी सहजता और जरूरत भरी कठोरता के साथ पत्नी-पुत्र और पिता को कुछ निश्चित समय में न कहना भी जरूरी है.

आचार्य चाणक्य के मुताबिक पिता-पुत्र या पत्नी के साथ प्रेम भरा व्यवहार हमेशा बना रहना उपयुक्त और सदाचारी है. मगर इन्हें अपने लिए कमजोरी बनाना या अत्यधिक लाड़ देना खुद के लिए शत्रु खड़ा करने से कम नहीं है. ऐसे में विद्वान की सीख है कि पुत्र वही है, जो पिता का कहना मानता हो. पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करे. पत्नी वही है, जिससे सुख की प्राप्ति हो. एक बुद्धिमान पिता के लिए अपने पुत्रों के शुभ गुणों को प्रेरित करना ही बड़ा योगदान है. नीतिज्ञ और ज्ञानी पुत्र से कुल वंश में उज्जवलता और असीम योग्यता का संचार होगा. फिर भी कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है. 

पुत्र के लिए : आचार्य चाणक्य कहते हैं कि 5 साल की आयु तक पुत्र को लाड़-प्यार से पालना चाहिए. 10 साल तक उसे छड़ी की मार से डराएं, लेकिन जब वह 16 साल का हो जाए तो बिल्कुल मित्रवत व्यवहार ही सार्थक होगा. 
 
पत्नी के लिए : आचार्य कहते हैं कि पत्नी आपकी इच्छा के अनुरूप व्यवहार करती है तो कभी भी उसे अपमानित या तिरस्कृत ना करें, लेकिन आज्ञा के पालन में लापरवाही या मानसिक दूरी का भाव बने तो थोड़ी सख्ती अनिवार्य है. 

पिता के लिए : इसी तरह पिता के संबंध में उनकी हर आज्ञा का पालन करें, लेकिन अधर्म या असम्मानजनक, अनैतिक कार्य के लिए पिता को भी ना कहना ही धर्म नीति होगी. इस तरह इन तीनों रिश्तों में लाड़-प्यार के साथ एक सीमा के बाद इनकार या पूरी तरह ना कहना भी आवश्यक है.




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