योग मनुष्य के अन्त: कारणों-मन, बुद्धि, चित्त और ज्ञान; के विकास का साधन : श्रीअरविन्द

 


बलिया। श्रीअरविन्द का योग उच्चतर राष्ट्रीय चरित्र वाले योगियों के निर्माण में विश्वाश रखता है। योग को श्रीअरविन्द सम्पूर्ण जीवन विधि से जोड़ते हुए कहा कि "समग्र जीवन ही योग है"। आप योग को मनुष्य के अन्त: कारणों - मन, बुद्धि, चित्त और ज्ञान; के विकास का साधन मानते हैं। इससे अंतर्दृष्टि का जन्म होता है और मनुष्य अति मानस या देव मानव में परिवर्तित होने लगता है। इस रूप में रूपांतरित मनुष्य प्राकृतिक कामनाओं से मुक्त होकर लोक निर्माण, लोक कल्याण तथा लोक हितार्थ कार्य में अपने को रत कर लेता है। श्रीअरविन्द भारत के विकास तथा कल्याण के लिए ऐसे ही अति मानस वाले राष्ट्रीय चरित्र वाले मनुष्य का निर्माण अपने योग के माध्यम से करना चाहते थे। 

वास्तविक रूप में श्रीअरविन्द समग्र योग के माध्यम से मनुष्य में ऐसे दिव्य व्यक्तित्व को उतारना चाहते थे, जो व्यक्तिगत कामनाओं, स्वार्थों, आकांक्षाओं और संकुचताओं से ऊपर मात्र भारतमाता के लिए जिए। उन्होंने भारत को भूमि, जंगल, पर्वत, झील और मनुष्यों का एक सुनिश्चित परिक्षेत्र नहीं माना है, बल्कि करोड़ों भारतीयों की शक्ति से युक्त भवानी माता माना है, इस रूप में भारतमाता की साधना के लिए अतिमानस अवस्था को प्राप्त साधकों की आवश्यकता को श्रीअरविन्द बताते हैं। आपका मानना है कि, इसी तरह राष्ट्रीय चरित्र वाले राष्ट्रवादी भारत की खोई प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करेंगे और भारत को विश्व गुरु के रूप स्थापित करेगें। इसीलिए आपका योग राष्ट्रीय जीवन दर्शन को दर्शित करता है।  

डॉ० उपेन्द्र कुमार सिंह, 

अध्यक्ष, श्रीअरविन्द सोसायटी, बलिया, सिविल लाइंस सेन्टर।



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