लोकतंत्र के चार स्तम्भों में से कमजोर होता एक स्तम्भ "पत्रकारिता" : परवेज अख्तर

 


*कार्यपालिका* 

 *न्यायपालिका* 

 *विधायिका* 

लोक तंत्र के इन *तीन स्तम्भ* पर नज़र रखने और लोगों को इनकी बातों व हरकतों  से निष्पक्ष तरीके से रूबुरू कराने के लिये ही 

 *चौथा स्तम्भ* यानी *पत्रकारिता* मौजूद है पर अब इस चौथे स्तम्भ पर भी ज़बरदस्त खतरा मन्डराने लगा है!

पत्रकारों को धमकी, उन पर हमले और हत्या तक आम होती जा रही है ! इनकी सुरक्षा के दावे खोखले होते जा रहे हैं ! जिसकी वजह से पत्रकारिता की निष्पक्षता पर खतरा मंडराने लगा है, जोकि लोकतंत्र के लिये कत्तई ठीक नहीं है!! 

इसकी बहुत सारी वजह हो सकती हैं पर जो खास वजह निकल कर सामने आयी हैं वो इस प्रकार हैं :-

कि पत्रकारिता अब निष्पक्ष न हो कर बिज़नेस बन कर रह गयी है बड़े मीडिया चैनल हकीकत में दलाल मीडिया बन कर रह गये हैं वो सिर्फ़ सत्ता पक्ष के पिछलग्गू बनकर जी हुज़ूरी वाली स्टाईल में काम कर रहे हैं प्रिन्ट मीडिया में व नामी अखबार और पोर्टल चैनल व पत्रिका और कुछ छोटे पेपर्स के शायद ही कुछ लोग बचे हैं जो नीडरता से निष्पक्ष तरीके से लिख रहे हैं,सच्चाई दिखा रहे हैं, और ज़मीर को ज़िंदा किये हुए हैं!

उसके बाद छोटे पोर्टल चैनल व दैनिक और साप्ताहिक व मंथली न्यूजपेपर व मैगजीन के तमाम पत्रकार व कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हुये फ़र्ज़ी पत्रकारों ने इस चौथे स्तम्भ की नींव इतनी कमज़ोर कर दी है कि आज एक छोटा अधिकारी भी बड़ी गिरी नज़र से देखता है और पत्रकारों को बहुत हल्के में लेता है उसी का नतीज़ा है कि गाज़ियाबाद में *पत्रकार विक्रम जोशी* का "कत्ल" सीतापुर के एक पत्रकार की "हत्या" और इसी तरह के कई हमले जोकि सिस्टम को शर्मसार करते हैं!

 *पत्रकार* अकसर लोगों की पैरवी करने थाने जाते हैं क्योंकि कुछ हद तक आज भी लोगों का पत्रकारों के एक तबके पर भरोसा कायम है विक्रम जोशी वाले प्रकरण में भतीजी की छेड़खानी के आरोप में पुलिस को उन शोहदों पर तुरन्त एक्शन लेना चाहिए था और इसलिए भी लेना चाहिए था कि उस छेड़खानी के मामले में पीडिता के पत्रकार मामा ने पैरवी की थी पर यहाँ पर पत्रकारों को हल्के में लेने की ही बात थी के होगे पत्रकार मेरे ठेंगे से।

जिसकी वजह से उन लफ़ंगो की इतनी हिम्मत बढ़ गयी कि उन लोगों ने पत्रकार की जान लेने में गुरेज़ नहीं किया वो भी उनकी बच्चियों के सामने ! 

अयोध्या में पत्रकार पाटेश्वरी पर जानलेवा हमला प्रतापगढ़ में पत्रकार पर हमला लखनऊ में पत्रकार "परवेज़ ज़ैदी" पर हुआ हमला ये दर्शाता है कि पत्रकारों की सुरक्षा राम भरोसे है।

जिस तरह सरकारी कर्मचारियों पर हाथ उठाने में लोग दहशत खाते हैं मुकदमों का डर व पुलिस का डर बना रहता है 

उसी तरह पत्रकारों पर हमले व उत्पीड़न पर बने कानून को सख्त करते हुए क्यों नहीं एक्शन लिया जा रहा है!

वो भी तब जब मुख्यमंत्री महोदय ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिये कयी कानून बनाये हैं।

वक्त है लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ को सुरक्षा देने का! वक्त है पत्रकारों को अपने ज़मीर की सुनकर पत्रकारिता करने का! वक्त है पत्रकारिता को फ़िर से पुराने आकार में लाने का ! 

ताकि पत्रकारिता समाज में फिर से अपनी पैठ बनाये, भरोसा बनाये, हनक बनाये, 

 *न्याय पालिका* 

 *कार्यपालिका* 

और *विधायिका* के साथ ये चौथा स्तम्भ भी हनक से समाज में *अच्छा व सच्चा* उदाहरण पेश कर सकें! और जनता को राहत दिला सकें!!

 *परवेज़ अख्तर*

9335911158, 9454786073



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