बुरा वक़्त है बदल जाएगा
याद रहेंगे बदले हुए लोग
समय के चक्र में सुइ गई है अटक
ज़िंदगी न जाने किस राह गई है भटक
सारे दाव लग चुके फिर भी न कोई पाया पटक
तू इतरा ज़्यादा, ना ही ज़्यादा मटक
मैं अपना हिस्सा जी रहा
तू अपना हिस्सा भोग
बुरा वक़्त है बदल जाएगा
याद रहेगें बदले हुए लोग
कंकड़ों-पत्थरों में सकूं मुझे नहीं आता
धातुयें इकट्ठा करने में मज़ा मुझे नहीं आता
निर्जीवों पर अहंकार मुझे नहीं आता
ज़िंदादिली भूलूं यह भी मुझे नहीं आता
जड़-नश्वर जग हेतु ये कौन पाले रोग
बुरा वक़्त है बदल जाएगा
याद रहेंगे बदले हुए लोग
वहीं बसते हो, जहां रहते थे चिर
क्यों भटक रहा, मन को कर थिर
वक़्त है लौट जा पुन: वहीं फिर
स्वार्थ, अपनेपन में तू यूं न गिर
तेरे पास जग है
मेरे पास वियोग
बुरा वक़्त है बदल जाएगा
याद रहेंगे बदले हुए लोग
तू दौड़ रहा दिन -रात बाहर, फिर भी रूष्ट
मैं चल रहा धीरे-धीरे सदा भीतर पुष्ट
तू कर रहा पंच इंद्रियों को संतुष्ट
मैं चख स्वाद भाव का रहता आनंदित संतुष्ट
आत्मा-परमात्मा का
कभी तो होगा योग
बुरा वक़्त है बदल जाएगा
याद रहेंगे बदले हुए लोग
चढ़ता सूरज ढलता, ढलता सूरज उगता है
सदा समय एक सा यहां न किसी का रहता है
नाली-नाला का पानी भी बह एक दिन सागर बनता है
राजा- रंक, रंक-राजा बने यह इतिहास भी कहता है
प्रकृति फूल कहां खिला दे कौन जाने संयोग
बुरा वक़्त है बदल जाएगा
याद रहेंगे बदले हुए लोग।
डॉ0 अजीत
पी.एच.डी.(हिंदी साहित्य)
हि.रंग नाट्य (एन. एस.डी.)
भूतपूर्व प्रधानाचार्य-डी.एस.एस.ए. बालिका महाविद्यालय मऊ
अध्यक्ष-उत्तर प्रदेश संस्कृति शोध संस्थान एवं नाट्य फिल्म अकादमी
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