चारों तरफ अफरा तफरी का माहौल है। ऑक्सीजन एक्सप्रेस जो जमशेदपुर से बेंगलुरु के लिए निकलने वाली हैं, तैयार खड़ी है, लेकिन कोई भी प्रशिक्षित पुरुष एक्सप्रेस ड्राइवर की टीम इस समय उपलब्ध नहीं है। सभी पुरूषों की आक्सीजन ड्राईवर की टीम ड्यूटी पर गई है।
कोई दिल्ली के लिए एक्सप्रेस लेकर निकला है तो कोई लखनऊ के लिए। करें तो क्या करें।
यूं तो एक महिला प्रशिक्षित आक्सीजन ड्राइवर एक्सप्रेस की टीम है लेकिन अभी तक उन्हें इस तरह अकेले एक्सप्रेस को ले जाने का कोई अनुभव नही है।
ऐसे में महिला टीम कहती है कि वे आक्सीजन एक्सप्रेस को लेकर जायेगी, सभी हतप्रभ हैं, लेकिन हमारे देश की इन बेटियों के हौसले बुलंद हैं वे सभी को विश्वास दिलाती है कि वे ये काम पूरी सावधानी वह सतर्कता से करेंगीं।
फैसला थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि आक्सीजन तरल पदार्थ है, जरा सी भी चूक जानलेवा हो सकती है, लेकिन फिर भी महिला टीम को अनुमति मिलती है और टीम सही सलामत आक्सीजन एक्सप्रेस को जमशेदपुर से बेंगलुरु पहुंचा देती है। और ना जाने कितनी ही जिन्दगी बचा लेती है।
ये पहला मौका है जब कोई महिला टीम अकेले आक्सीजन एक्सप्रेस लेकर आई है। और ये हमारे लिए गौरव की बात है कि देश की बेटीयां भी इस संकट की घड़ी मे देश के साथ खड़ी है।सही मायनो में देश की महानायक कहलाती है।
ऐसे ही कितने उदाहरण हैं जब कोरोना समय में देश की बेटियों ने चाहे वो डॉक्टर हो, पुलिस हो, नर्स हो, सफाई कर्मचारी हो या टैक्सी या ऑटो चालक हो, या एंबुलेंस चालक हो, देश की सेवा इतने कठिन समय मे भी पूरे साहस व हिम्मत के साथ की है।चलिए एक सलाम देते हैं देश की इन बहादुर बेटियों को।और अपनी बच्चो को भी ऐसे ही जज्बे के साथ लड़ना सिखाते हैं।
अपनी कलम से
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
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