श्मशान घाट पर 5 दिन तक मृतक मालकिन के लौटने का इंतजार करता रहा वफादार कुत्ता

कोरोना संकट काल में जब इंसान ही इंसान को नोचने में लगे हैं। पारिवारिक सदस्य भी कोरोना पेशेंट से दूरी बना रहे हो। ऐसे में एक कुत्ता अपनी मालकिन की मौत के बाद श्मशान घाट में 5 दिनों तक भूखा प्यासा रह कर उसके लौटने का इंतजार करता रहा।

-मालकिन के मौत के बाद श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार में शामिल हुआ कुत्ता

-चार दिन तक भूखा प्यासा रह कर अपनी मालकिन के लौट के आने का करता रहा इंतजार

-नहीं लौटी मालकिन तो पांचवें दिन खोजने पर भी लोगों को नहीं मिला वफादार गया।

यह कोई फिल्मी कहानी नहीं बल्कि एक सच्ची घटना है। आज की तारीख में जो इंसान खुद को बचाने की जद्दोजहद में अपने प्रियजनों के अंत्येष्टि तक में शामिल नहीं हो रहा है। वही एक कुत्ता जिसका नाम हम शेरू दे देते हैं। वह अपनी मालकिन की मौत के बाद न सिर्फ श्मशान घाट में अंतिम संस्कार में शामिल हुआ बल्कि जहां उसके मालकिन की चिता जलाई गई थी, शेरू वहां चार दिन तक भूखा प्यासा रह कर अपनी मालकिन के लौट के आने का इंतजार करता रहा।

शेरू के वफादारी की यह कहानी गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल के शहर के सत्संग नगर में रहने वाली भगवान ठठेरा नामक व्यक्ति की पत्नी की मौत से जुड़ा है। बताया गया कि 1 मई को भगवान ठठेरा की पत्नी की अचानक हुई मौत के बाद उसके शव को शेरघाटी के राम मंदिर घाट पर उसका अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया था। अंतिम संस्कार में मृतक महिला के साथ रहने वाला शेरू भी गया था। बताया गया कि अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया होने के बाद जब सभी लोग लौटने लगे तो शेरू वहीं बैठा रहा। लोगों ने यह सोचा थोड़ी देर में वो खुद लौट आएगा। लेकिन जब 4 दिनों तक वो वापस नहीं लौटा तब मृतक महिला के घर वालों ने उसकी खोज खबर लेनी शुरू की। इसी दौरान पता चला कि शेरू दो पिछले चार दिनों से श्मशान घाट में उसी स्थान पर भूखा प्यासा बैठा है। जहां उसकी मालकिन का अंतिम संस्कार किया गया था।

मृतक महिला के परिजन और आसपास के लोगों ने बताया कि जिस महिला की मौत हुई है। वो गली के ही एक कुत्ते को प्यार से खाना खिलाया करती थी। लोगों ने बताया कि शेरू हमेशा उसके घर के दरवाजे पर ही बैठा रहता था। ठंड के समय महिला द्वारा शेरू के लिए पुआल की व्यवस्था की जाती थी तो गर्मी में उसके लिए ठंडक पहुंचाने की व्यवस्था भी करती थी। बरसात के समय महिला द्वारा उसके के लिए प्लास्टिक बांधा जाता था ताकि पानी से वह भीग ना सके। शायद यही वजह है कि शेरू अपने मालकिन द्वारा की गई मेहरबानियों को भूल ना सका। इस कारण उसे अपनी मालकिन के जाने का इतना दुखी हुआ कि वह 4 दिनों तक श्मशान घाट पर अपनी मालकिन के लौटने का इंतजार करता रहा।

लोगों ने बताया कि शेरू के विषय में जानकारी मिलने के बाद जब उसे वापस लाने की कोशिश की गई तो उसने गुस्से से भौंक - भौंक कर सभी को लौटने पर मजबूर कर दिया। स्थानीय लोगों द्वारा यह भी जानकारी दी गई थी जब शेरू को खाना खिलाने की कोशिश की गई तो उसने खाना भी नहीं खाया। बताया गया कि पांचवे दिन मृतक महिला के परिवार वाले आसपास के लोगों के साथ फिर से शेरू को खाना खिलाने पहुंचे। लेकिन उन्हें शेरू कहीं नहीं दिखा। यह सच्ची घटना सभी को यह सीख देती है कि दिल से किसी की की गई मदद को इंसान तो क्या जानवर भी नहीं भुला पाते।

 साभार- नव भारत टाइम्स



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