इस देश में चल रही है बेहद अजीबोगरीब प्रथा


बैन के बावजूद इस देश में चल रहा खतना, कई लड़कियों की हो चुकी है मौत।

साल 2008 में मिस्र में खतना पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन 13 साल बाद भी इस देश में ये खतरनाक प्रथा बदस्तूर जारी है. बीबीसी रिपोर्ट के अनुसार, इस देश में खतना के लिए कड़ी सजा का भी प्रावधान है लेकिन इसके बावजूद मिस्र उन देशों में शामिल हैं जहां महिलाओं के खतना करने की दर सबसे अधिक है.

मिस्र के रूढ़िवादी समुदायों, खास कर ग्रामीण मुस्लिम इलाकों में रहने वाले लोग मानते हैं कि जब तक महिलाओं के जननांग का एक हिस्सा काट नहीं दिया जाता तब तक उन्हें शादी के काबिल नहीं माना जाता है. इसके अलावा कई लोग ये भी मानते हैं कि इससे युवतियों में सेक्स के प्रति आकर्षण कम हो जाता है.

खतना यानि महिलाओं और लड़कियों के गुप्तांगों के बाहरी भाग को बचपन में या फिर किशोर अवस्था में ही काट दिया जाता है. इससे ना केवल शारीरिक और मानसिक तौर पर लड़कियों को जिंदगी भर के लिए दिक्कतें आ सकती हैं बल्कि इससे अनियमित माहवारी और कई प्रकार के संक्रमण होने की संभावना भी बढ़ जाती है. 

बीबीसी के साथ बातचीत में मिस्त्र की एक महिला ने बताया कि 'जब मैं 11-12 साल की थी तब मेरा खतना करा दिया गया था. हम लोगों का मुर्गियां पालने का काम था. मुझे याद है कि मैं उस समय दर्द से तड़प रही थी. उस महिला ने मेरे शरीर के हिस्से को मुर्गियों के सामने फेंक दिया था और ये मुर्गियां इसे खाने के लिए वहां पहुंच गई थीं. मुझे याद है कि दर्द के चलते मेरे नर्वस ब्रेकडाउन जैसे हालात हो गए थे.' 

 गौरतलब है कि मिस्र में अगर कोई डॉक्टर इस तरह का खतना करने का दोषी पाया जाता है तो उसे सात साल साल की जेल हो सकती है लेकिन इसके बावजूद ये कुप्रथा मिस्र के समाज में आज भी जारी है. महिलाओं के केस फ्री में लड़ने वाले मानवाधिकार मामलों के वकील रेडा एल्डनबॉकी ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा था कि मिस्र में आजकल खतने की इस प्रक्रिया को प्लास्टिक सर्जरी का नाम दे दिया गया है.

गौरतलब है कि साल 2008 में संसद में एक कानून पारित किया गया जिसमें महिलाओं के खतने पर प्रतिबंध लगाया था हालांकि विपक्षी दल ने इसका पुरजोर विरोध किया था. साल 2016 में मिस्र के सांसदों ने एफएमजी कानून में संशोधन किया, जिसमें इसे छोटे जुर्म की श्रेणी से हटा कर बड़े जुर्म की श्रेणी में लाया गया था. 

हालांकि कानून के महिलाओं के पक्ष में होने के बावजूद इंसाफ को लेकर अक्सर महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. एल्डनबॉकी ने इस मामले में कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि अदालत और पुलिस इन अपराधियों के साथ बड़ा नर्म बर्ताव करती है.

पिछले साल ही दक्षिणी मिस्र में 12 साल की एक बच्ची के खतने के बाद उसकी मौत हो गई थी. इस घटना के बाद एक बार फिर मिस्त्र में खतने को लेकर जागरूकता पर बात होने लगी थी. इसके अलावा भी कई लड़कियों की जान इस प्रक्रिया के चलते खतरे में पड़ चुकी है. 

यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक, मिस्र में 15 से 49 साल की 87 प्रतिशत महिलाओं का खतना हो चुका है वहीं मिस्र के 50 फीसद लोग इसे जरूरी धार्मिक प्रक्रिया मानते रहे हैं. यही कारण है कि कड़े कानून के बावजूद मिस्र में ये प्रक्रिया बदस्तूर जारी है.



 

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