जिंदगी की कमाई दौलत से नहीं नापी जाती, अंतिम यात्रा की भीड़ बताती है कमाई कैसी थी

आज की बदलती दुनिया में अर्थ को समर्थ बनाने के लिये झूठ फरेब अनैतिक कार्य लूट अपराध भ्रष्टाचार की खेती बेखौफ किया जा रहा है। स्वार्थ के उर्वरक से पैदा की जा रही मानव प्रजाति कि बिषाक्त पैदावार ही घर परिवार से आखरी वक्त में सदब्यहार के आचरण को त्याग कर बेगाना बना रही है। यह सिलसिला अब बड़े पैमाने पर चल निकला है। 

ऐसों आराम के लिये हराम की कमाई, रिश्ते नाते को खटाई में डालकर खुद के कुनबे को सम्पन्न बनाये रखने का सपना देखने वाले भूल जाते है साथ कुछ नहीं जायेगा। दुनियां का बादशाह सिकन्दर भी रुखसत हुआ तो दोनों हाथ खाली था। इस मतलबी संसार में कोई हथियार से मानवता का बिनाश कर रहा है कोई तलवार से कोई अपनों से लड़ रहा है कोई सरकार से। हर रोज लम्हा-लम्हा जिन्दगी मौत के करीब जा रही है फिर भी अकड़न में रहन सहन का प्रचलन उफान पर है। जिन्दगी की हकीकत श्मशान पर देखिये राजा हो या रंक सभी असहाय एक ही साथ बिना भेदभाव अग्नि देवता की धधकती ज्वाला का निवाला बन रहे हैं। कल तक जिनका जलवा था जिनके शान सम्मान मे चार चांद लगा रहता था ऊंच नींच का का बिभेद बड़े छोटों का रंग भेद शान में कायम था आज श्मशान में आकर कायनाती इम्तहान में फेल हो गया। कर्मों के बोझ तले दब कर हमेशा के लिये हो गया। 

पारलौकिक सत्ता के महत्ता के आगे स्वार्थी संसार का वास्ता बेकार हो गया। माया की चकाचौध नगरी में जीवन की अनमोल धरोहर का अपमान करने वाले मां बाप के दिल से निकले आह की परवाह किये बगैर जब परम‌धाम की राह पर चल निकलते हैं तब गलती का एहसास आखरी क्षण में निराश कर देता है। वर्तमान में परिवर्तन का चक्र‌ उदासी का हश्र लिये शनै-शनै कायनाती ब्यवस्था के परिचालन में परागमन की राह में अथाह दर्द लिये सफर कर रहा है। राह चलते रामनाम कि गूंज जब कानों से टकराती कुछ छण  के लिये मन बैरागी बन जाता है लेकिन कुछ देर बाद ही मन आज़ाद पक्षी के तरह स्वार्थ के आसमान पर बिचरण करते हुये सब कुछ भूल जाता है। यही से शुरू हो जाता हैअधोगति के तरफ विवसता लिये जाने का दुरुह मार्ग जो पल पल सन्मार्ग से विरक्त करते हुते आशक्ती के तरफ लिये चला जाता है। धन दौलत महल अटारी घर बार सब यही रह जाता है। बस जग में रह जाता है सामाजिक संस्कार, सदब्यवहार, आचार विचार, यही आखरी वक्त में जीवन के कर्मों का बनता है गवाह। मै कौन हूं, क्या हूं? मेरा वजूद क्या है? किस लिए मेरा जन्म हुआ? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मुझमें क्या योग्यता है? मुझमें ऐसा क्या है जो सबमें नही है? मै क्या पाना चाहता हूं? ईश्वर कहां है मुझसे मिलता क्यू नही? मेरे भटकाव का अंत कब होगा? मेरा मार्ग कौन सा है? किस मार्ग पर चलना है? 

सारे सवाल दिल के भीतर दफन किये‌‌ ही माया के संजाल में उलझा मानव इस मतलबी संसार को अलविदा‌ कह जाता है बस‌‌ रह जाता है कर्मों का लेखा जोखा जिसको समाज कुछ दिनों तक याद रखने के बाद अगले पड़ाव के तरफ बढ़ जाता है। सत्कर्म धर्म के आवरण में लिपटा बैरागी ही मोक्ष का सानिध्य कर पाता है न वहां धन दौलत काम आता है न वहां शान शौकत का कोई मोल होता है। अनमोल जिन्दगी को ब्यर्थ गंवाने वाला ही पश्चाताप का आंसू रोता है। सत्यम, शिवम, सुंदरम।------

जय महाकाल🙏🏻🙏🏻


     जगदीश सिंह, मऊ

             मो.-7860503468

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