मुश्किल समय है हौसला रखिये, धूप कितनी भी तेज हो‌ समन्दर सूखा नहीं करते.....

परिवर्तन नर्तन करता चला आ रहा है। सब कुछ बदल रहा है हवा पानी रिश्ता खाना पीना नाश्ता सियासत की दकियानूसी दूकान चलाने वाला फरिस्ता। कुछ भी अब पुरातन नहीं रहा हिन्दू भी अब सनातन नही रहा। पाश्चात्य संस्कार का दायरा बढ़ रहा है खत्म होता जा रहा है। आपसी प्रेम मुहब्बत प्यार, विभाजित हो रहे हैं संयुक्त परिवार, न कोई अब अपना रहा न कोई रहा रिश्तेदार, स्वार्थ के निहितार्थ ‌हर कदम मतलब परस्ती का आधुनिक जमाने का बन गया है हथियार, मिलावट गिरावट का माहौल हर रोज संकुचित विचारी धारा के लोगों की कर रहा है पैदावार। कभी वक्त था संयुक्त परिवार सम्मान का सूचक हुआ करता था। घर का मुखिया समाज में इज्जत का ध्योतक हुआ करता था। कम संसाधन में रह कर भी अपनापन का परचम बुलंदी पर हूंकार भरता था। सादा जीवन उच्च विचार शुद्ध आहार समरसता लिये गमकता ब्यवहार लोगों के जीवन की अमूल्य धरोहर हुआ करता था। मगर आधुनिकता के प्रदुषित आवरण ने पुरातन ब्यवस्था का चीर हरण कर दिया। 

पहले सुबह सुबह रामचरित मानस की चौपाईयों को लोग सुनते थे अब सुबह होते ही निर्लज्जता की पराकाष्ठा को पार करता गाना रात दीया बुता के पिया क्या क्या किया को घर बाहर गली मुहल्ला चट्टी चौराहा पर लोग चटकारे लेकर सुन रहे हैं, मां बाप भाई बहन सब एक साथ नाच रहे है। आखिर कहां हम जा रहे हैं। लोगों की खत्म होती है गैरत, पर्दा विहीन होती औरत, आपस में बढ़ती नफरत, और खुद के लोगों से ही रौंदी जा रही हसरत, आधुनिक जमाने का फंडा बन गया है। बदलाव में समभाव का बिलोंपन हो रहा है। आदमी अपना वजूद रोज‌ खो रहा है। जमाना बदल रहा है या हम आप बदल रहे हैं, यह सवाल अपनी जगह‌ पर बे वजह नही उठ रहा है।इसके लिये हम आप खुद जिम्मेदार है। अब तो घर मे धर्म कर्म बेद पूराण ऋचा की बातें भी नही होती हैं बल्कि फिल्मी दुनियां के हीरो हीरोइन क्रिकेट के शतक चौक्का छक्का धोनी जडेजा के कलेजा की बात होती है। पूजा पाठ धर्म पर टिप्पणी करना अपनी योग्यता लोग समझ रहे हैं। कहावत है जो कौम अपनी संस्कृति से बिरक्त हो गयी उसका भूत भविष्य वर्तमान तीनों खत्म हो जाता है। आज उसी मार्ग पर सनातनी चल पड़े हैं। समबृद्ध भारत में तमाम हुकूमतों ने देश के परिवेश को अपने तरीके से ब्यवस्थित किया है। फिर भी बसुधैव कुटुम्बकम का पुरातन सूत्र चलता रहा, मगर बदलाव के बहती उफनती दरिया में पाश्चात्य प्रदुषण इस कदर बढ़ा है कि सब कुछ प्रदुषित हो गया। 

बाबू जी डैड हो गये, माता जी माम हो गयी, जीवन एकाकी हो गया, भाईचारगी बेबाकी में खत्म हो गया, गाव बैकवर्ड हो गया शहर की बजबजाती बस्ती का सड़ांसभरा कमरा सस्ती लोकप्रियता आधुनिकता की मस्ती का सिम्बल बन गया। कुछ भी नहीं बचा जो आने वाले कल के पीढ़ी को दिखा सके पौराणिक भारत की समृद्ध शाली गौरवशाली ब्यवस्था के प्रतिबिंब को समूह में रहकर भी एकता की मिसाल कायम रखने वाले कुटुम्ब को। अब तो बात भी यह सही लगती की इस दौर के लोगों में वफ़ा ढूंढ रहे हो जहर की शीशी में दवा ढूंढ रहे हो।आखरी वक्त में कभी बुजुर्ग घर में पूज्यनीय हुआ करते थे वही आज असहनीय हो गये। बृद्धा आश्रम सहारा बन गया। 

समाज में तेजी से फ़ैल रहे सामाजिक प्रदूषण को करीब से देखने के बाद मन बिरक्ति के अथाह सागर में डुब जाता है, बिचलित हो जाता है, फिर भी मन मसोस कर सन्तोष यह सोचकर करना पड़ता है कि होई हे वहीं जो राम रची राखा का करि तर्क बढावहि शाखा।

,,ॐ साईनाथ सबका मालिक एक🌹🌹🙏🏻

  जगदीश सिंह, मऊ   

मो0-7860503468



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