पुलिस की मनमानी पर हाईकोर्ट नाराज, कहा - निर्दोष का उत्पीड़न न हो ऐसा तंत्र बनाए सरकार

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में शांति भंग की आशंका पर पाबंद करने और हिरासत में लेने में पुलिस की मनमानी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को ऐसा तंत्र विक‌सित करने का निर्देश दिया है, जिससे निर्दोष लोगों का उत्पीड़न रोका जा सके। कोर्ट ने एसडीएम वाराणसी से भी जवाब मागा है। दरअसल वाराणसी के शिव कुमार वर्मा ने याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि शांति भंग की आशंका में अवैध तरीके से चालान किया गया। याची को दस दिन तक अवैध हिरासत में रखने का भी आरोप लगा है।

कोर्ट ने प्रदेश सरकार को इस मामले में आदेश दिया है कि चार सप्ताह में उचित कार्यवाही कर अनुपालन रिपोर्ट पेश करें। जस्टिस एसपी केसरवानी और जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने ये आदेश दिया है। जानकारी के अनुसार याची का संपत्ति के बंटवारे को लेकर पारिवारिक विवाद था। झगड़ा होने पर रोहनिया थाने की पुलिस ने आठ अक्तूबर 20 को शांति भंग की आशंका में याची शिवकुमार का चालान कर दिया। एसडीएम ने इस रिपोर्ट पर जमानत न प्रस्तुत करने के आधार पर उसे जेल भेज दिया।

सभी थानों में क्यों नहीं है शौचालय

वहीं दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी सरकार से सवाल किया है कि वह बताए कि राज्य के कितने पुलिस थानों में महिला पुलिसकर्मियों के लिए शौचालय हैं। कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार 15 फरवरी तक इस बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराए। लॉ इंटर्न की छात्राओं की एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने ये आदेश जारी किया है। याचिका में पुलिस थानों में महिला शौचालयों की बदहाली का जिक्र करते हुए उनकी स्थिति बेहद खराब बताई गई है। याचिकाकर्ताओं के मुताबिक कई थानों में महिला शौचालय ही नहीं हैं। याचिका में पुलिस थानों के अंदर महिला शौचालय बनाए जाने की मांग की गई है। डीजीपी और प्रमुख सचिव से शौचालयों के लिए फंड मुहैया कराने का समादेश जारी करने की भी मांग की गई है।

गरिमा और निजता के अधिकारों का हनन

याचियों का कहना है कि पुलिस थानों में महिला शौचालय न होना गरिमा व निजता के अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के बाद राज्य सरकार से प्रदेशभर के थानों में महिला शौचालयों की स्थिति की जानकारी मांगी है। जस्टिस संजय यादव और जस्टिस जयंत बनर्जी की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती-2018 की लिखित परीक्षा में सफल महिला अभ्यर्थी की याचिका पर गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि डिलिवरी के बाद शारीरिक दक्षता परीक्षा कराने का निर्देश क्यों न दिया जाए? दरअसल परीक्षा में जिस समय शारीरिक टेस्ट हो रहा था, उस समय याची गर्भवती थी। अब अभ्यर्थी तरफ से शारीरिक दक्षता परीक्षा कराने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई है।




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