2 कातिल, 7 कत्लः जानिए उस रात की खौफनाक कहानी, जब शबनम बन गई थी शैतान


मकान में चार अलग-अलग कमरों में शौकत, उनकी बीवी, उनके दो बेटों, एक बहू और दो बच्चों की लाशें पड़ी थीं. 11 महीने को बच्चे को छोड़ कर बाकी सभी गला कटा हुआ था. सभी लाशें खून से सनी थी. शौकत के परिवार में इकलौती ज़िंदा बची शबनम घर के एक कोने में दहाड़े मार-मार कर रो रही थी.

शबनम की फांसी की तारीख टलती नजर आ रही है. दरअसल शबनम ने रविवार को एक नई दया याचिका दायर कर दी है. यह दया याचिका रामपुर जेल के जेलर को दिया गया है. जेलर ने इस याचिका को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति को भेज दिया है. अब जब तक इस याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, फांसी की तारीख सामने नहीं आ सकती. अब बात करते हैं अमरोहा के बावनखेड़ी गांव की. जहां 13 साल पहले शबनम और सलीम ने मिलकर 7 लोगों का खून किया था. यह केस 4 दिनों के भीतर सुलझा लिया गया था. मगर कैसे, जानिए इनसाइड स्टोरी.

14 अप्रैल 2008, रात 1 बजे, बावनखेड़ी गांव, अमरोहा गांव में रहने वाले शौकत एक कॉलेज में लेक्चरर थे. एक बेटा एमबीए और दूसरा इंजीनियर. घर की बड़ी बेटी शबनम इंग्लिश और भूगोल में डबल एमए. पूरा घर बेहद पढ़ा लिखा. लिहाज़ा पूरे गांव में शौकत और उनके परिवार की बहुत इज्जत थी. मगर उस रात शौकत के एक पड़ोसी ने पुलिस को फोन किया और बताया कि शौकत के घर में कोई हादसा हो गया है. पुलिस टीम शौकत के घर पहुंचती है. लेकिन जैसे ही पुलिसवाले घर में दाखिल होते हैं. उनके पैरों तले से ज़मीन खिसक जाती है. 

शौकत के मकान में चार अलग-अलग कमरों में शौकत, उनकी बीवी, उनके दो बेटों, एक बहू और दो बच्चों की लाशें पड़ी थीं. 11 महीने को बच्चे को छोड़ कर बाकी सभी गला कटा हुआ था. सभी लाशें खून से सनी थी. शौकत के परिवार में इकलौती ज़िंदा बची शबनम घर के एक कोने में दहाड़े मार-मार कर रो रही थी. उस रात का ये मंजर इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता ने अपनी आंखों से देखा था. 

सुबह होते-होते एक ही परिवार के सात लोगों के क़त्ल की ये कहानी बावनखेड़ी गांव से निकल कर पूरे देश में फैल गई थी. इस सामूहिक हत्याकांड के खिलाफ लोगों में जबरदस्त गुस्सा था. इतना गुस्सा कि अगले ही दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को शौकत के घर आना पड़ा. यूपी पुलिस पर जबरदस्त दबाव था, जल्द से जल्द इस केस को सुलझाने का. हादसे की पहली गाज़ इलाके के थाना इंचार्ज पर गिरी. उनकी जगह मामले की तफ्तीश के लिए नए इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता को बावनखेड़ी बुलाना पड़ा.

तब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. क़त्ल से पहले पूरे परिवार को नशीली दवा देने की बात भी सामने आ गई थी. आरपी गुप्ता के मन में एक सवाल उठ रहा था कि जब पूरा घर बेहोश था, तो अकेली शबनम होश में कैसे थी. जब पूरे घर का कत्ल-ए-आम हो गया, तो अकेली शबनम बच कैसे गई. वो शबनम से सवाल पूछना चाहते थे, लेकिन हालात इसकी इजाज़त नहीं दे रहे थे. पूरे घर का क़त्ल हो चुका था. ऐसे में इकलौती बची सदस्य से कैसे पूछताछ हो. और तब शबनम की हालत भी ठीक नहीं थी. 

दबाव चौतरफ़ा था. केस तो सुलझाना ही था. लिहाज़ा, इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता ने अपने मुखबिरों के ज़रिए तफ्तीश जारी रखी. ये सोच कर कि शबनम से सही वक़्त पर पूछताछ कर लेंगे. इसी दौरान इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता को एक मुखबिर ने खबर दी. खबर ये कि सलीम को उठा लो, केस खुल जाएगा. इसी दौरान इंस्पेक्टर गुप्ता को पता चला कि दो दिन पहले ही सलीम को पुलिस ने उठाया था. उससे पूछताछ भी की, लेकिन फिर उसे क्लीन चिट देकर छोड़ दिया था. 

इसी बीच थोड़ा वक़्त और बीता और इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता को शबनम से पूछताछ का मौक़ा मिल गया. इंस्पेक्टर गुप्ता ने 14 और 15 अप्रैल की रात की पूरी कहानी शबनम से पूछी. शबनम ने उस रात की जो कहानी बताई, वो ये थी कि वो रात को छत पर सो रही थी. छत के रास्ते कुछ चोर घर में दाखिल हुए फिर वो ज़ीने से नीचे पहुंचे और उसके बाद नीचे के ही रास्ते से बाहर निकल गए. फिर जब वो नीचे पहुंची, तो उसने सबको मुर्दा पाया. इसके बाद वो चीखी, शोर मचाया, जिसके बाद किसी पड़ोसी ने उसकी आवाज़ सुनी और पुलिस को खबर कर दी. लेकिन इस कहानी में कुछ ऐसे झोल थे, जिसने पहली बार शबनम को शक के घेरे में ला दिया.

उस रात सच में बारिश नहीं हुई थी. ये शबनम का पहला झूठ था. अगर चोर दरवाज़े से बाहर निकले, तो कुंडी अंदर से बंद कैसे थी. ये शबनम का दूसरा झूठ था. अगर चोर दीवार के रास्ते छत पर आए, तो दीवार पर इसके कोई निशान नहीं थे, ये शबनम का तीसरा झूठ था. शबनम अब इंस्पेक्टर गुप्ता के रडार पर थी. लेकिन तभी एक ऐसी चीज हई कि इंस्पेक्टर गुप्ता समेत सभी पुलिसवालों के हाथ-पैर फूल गए. तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती शबनम से हमदर्दी जताने उसके घर जा पहुंची. और मुआवज़े के तौर पर शबनम को पांच लाख रुपये उसी वक्त उन्हें देना था. 

इधर, पुलिस के हिसाब से खुद शबनम क़ातिल थी. ऐसे में मुख्यमंत्री का मुआवज़ा देना अजीब सी स्थिति पैदा करनेवाला था. अब इंस्पेक्टर गुप्ता ने अपने सीनियर अफ़सरों के साथ मायावती के पीए से मौके पर ही बात की. इसके बाद पुलिस के कहने पर मायावती बिना पैसे दिए लखनऊ लौट गई. लेकिन अब इंस्पेक्टर गुप्ता के सामने चुनौती ये थी कि वो साबित करें कि शबनम ही क़ातिल है. इंस्पेक्टर गुप्ता ने तब तक लोगों से पूछताछ में ये पता लगा लिया था कि बावनखेड़ी गांव के ही रहनेवाले सलीम और शबनम में अच्छी दोस्ती थी. यहां तक कि शबनम अक्सर सलीम की बाइक पर स्कूल भी जाया करती थी. 

मुखबिर पहले ही सलीम के बारे में ईशारा दे चुका था. 17 अप्रैल 2008 को यानी हादसे के दो दिन बाद इंस्पेक्टर गुप्ता ने सलीम को अपने पास बुलाया. वो इस क़त्ल-ए-आम की जानकारी से लगातार इनकार करता रहा. लेकिन इंस्पेक्टर गुप्ता को लेकर उसके मन में ख़ौफ भी था. इंस्पेक्टर गुप्ता ने पुलिसिया तरीका अपनाया और इसको अपनाते ही उन्हें इस केस में पहली कामयाबी मिली. सलीम टूट गया और फिर उसने पूरी कहानी उगल दी. 

उसने पुलिस को कहानी सुनाई कि वो शबनम से प्यार करता था. और तमाम बातें उसने पुलिस को बता दी. अब कहानी पुलिस के सामने थी. लेकिन सबूत अब भी कोई हाथ में नहीं था. सलीम ने ही पुलिस को पहला सबूत भी दिया. सबूत था वो कुल्हाड़ी जिससे सात लोगों का क़त्ल किया गया था. वारदात के बाद उस कुल्हाड़ी को तालाब में फेंक दिया गया था. पुलिस ने सलीम की निशानदेही पर वो कुल्हाड़ी बरामद कर ली थी.

अब कहानी, गवाह और सबूत तीनों पुलिस के पास थे. इसके बाद 18 अप्रैल को यानी सामूहिक हत्याकांड के चौथे दिन इंस्पेक्टर गुप्ता अपनी टीम के साथ शबनम के घर पहुंचे. साथ में सलीम भी था. इस बार इंस्पेक्टर गुप्ता शबनम से पीड़ित के तौर पर नहीं, बल्कि एक क़ातिल के तौर पर सवाल पूछ रहे थे.  शबनम इनकार करती है. लेकिन तभी सलीम शबनम को बताता है कि उसने सबकुछ पुलिस को बता दिया है. इसलिए तुम भी अपना जुर्म कबूल कर लो. तब पहली बार शबनम टूट जाती है.

अब केस सुलझ चुका था. क़त्ल की कहानी. क़त्ल का मकसद और दोनों क़ातिल पुलिस के शिकंजे में थे. शबनम के खून से सने कपड़े भी पुलिस बरामद कर चुकी थी. इसके साथ ही दो ऐसे मोबाइल फ़ोन भी बरामद हुए, जो आगे चलकर इस केस में एक अहम सबूत बने. उन दोनों फोन पर वारदात के दिन 55 बार कॉल की गई थी. पूछताछ के दौरान शबनम और सलीम ने एक दहलानेवाला खुलासा भी किया. खुलासा 11 महीने के भतीजे को दोबारा मारने का. जब सलीम सबका मर्डर करने के बाद चला गया, तो शबनम का मासूम भतीजा रोने लगा. शबनम से उसे कॉल किया तो उसने कहा, अब मैं नहीं आऊंगा. फिर शबनम ने खुद ही उसका गला घोंट दिया था.

शबनम के दो भाइयों की जान उस रात बच सकती थी. लेकिन शबनम की मुहब्बत में दोनों भाई भी मारे गए. दरअसल, उस दिन दोनों भाई गांव से अपने-अपने काम पर शहर लौट रहे थे, लेकिन शबनम ने उन्हें बीच रास्ते से वापस बुला लिया था. इंस्पेक्टर गुप्ता के मुताबिक पूछताछ के दौरान शबनम ने इस कत्ल-ए-आम की वजह भी बताई थी. दरअसल वो चाहती थी कि उसके परिवार का कोई भी सदस्य ना बचे और सारी संपत्ति भी उसे मिल जाए.

3 अगस्त 2010 में अमरोहा की अदालत ने सलीम और शबनम को मुजरिम क़रार देते हुए फांसी की सज़ा सुनाई थी. तब जज एसएए हुसैनी ने अपने ऑर्डर में ये लिखा था कि उन्होंने अपने तीस साल के न्यायिक जीवन में इससे अच्छी और कोई जांच नहीं पाई. इसके लिए उन्होंने इस्पेक्टर गुप्ता की बाकायदा तारीफ भी की थी. बाद में ये मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में गया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी फांसी की सज़ा बरकरार रखी. 

इसके बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी सज़ा बरकरार रखा. राष्ट्रपति भी दया याचिका खारिज कर चुके हैं. शबनम पुनर्विचार याचिका और दूसरे कानूनी हथियारों का इस्तेमाल कर चुकी है. लेकिन सलीम के पास अब भी कुछ रास्ते बचे हुए हैं. पुनर्विचार याचिका उसने कुछ वक्त पहले ही दाखिल की है. यही वजह है कि फिलहाल सिर्फ शबनम की फांसी दिए जाने की बात हो रही है. सलीम को नहीं. सलीम इस वक्त इलाहाबाद की नैनी जेल में बंद है. जबकि शबनम रामपुर की ज़िला कारागार में. अब दोनों को ही आखिरी फैसले का इंतज़ार है. फैसला फांसी का, फांसी की तारीख़ का और इस कहानी के ख़त्म होने का. 

साभार- आजतक



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