बलिया। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य तथा समग्र विकास एवं शोध संस्थान के सचिव पर्यावरणविद् डॉ. गणेश पाठक का कहना है कि देवाधिदेव भगवान शिव सम्पूर्ण प्रकृति के रक्षक हैं। माता पार्वती भी एक अंश में प्रकृति ही हैं और शक्ति भी प्रकृति ही है। बिना शक्ति के एवं बिना प्रकृति के शिव रह ही नहीं सकते। इस तरह बिना शक्ति एवं प्रकृति के शिव स्वयं में अधूरे हैं। यही कारण है कि शिव को सम्पूर्ण प्रकृति से प्रेम है और प्रकृति से प्रेम होने के कारण वो प्रकृति की हर तरह से रक्षा भी करते हैं।
शिव के अनेक रूप-
भगवान शिव के अनेक रूप हैं। एक तरफ जहाँ वो सत्यम्, शिवम् एवं सुन्दरम् के प्रतीक हैं और समयानुसार संहारक रूप में भूमिका निभाते हैं वहीं दूसरी तरफ औघड़दानी के रूप में अपने लोक कल्याणकारी स्वरूप में लोक की रक्षा भी करते हैं वरदान देने के लिए भी प्रसिध्द हैं। शिव के 108 नाम है। उनका प्रत्येक नाम एक विशेष उद्देश्य एवं तथ्य पर आधारित है।
पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं
जैवविविधता के रक्षक हैं शिव
प्रकृति रक्षक के रूप में भगवान शिव पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता अर्थात् सम्पूर्ण प्रकृति के भी रक्षक एवं पोषक हैं। चूँकि वो “भगवान”हैं और भगवान शब्द पाँच शब्दोंः भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि एवं न से नीर से मिल कर बना है अर्थात् प्रकृति के पाँच तत्वों - क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर इन पाँच तत्वों का स्वरूप ही भगवान हैं। भगवान शिव प्रकृति के इन मूल पाँच तत्वों की रक्षा करते हैं और हम जगतवासी भी इन मूल पाँच तत्वों के रूपमें ही भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस दृष्टि से भगवान शिव प्रकृति के रक्षक एवं पोषक हैं।
प्रकृति रक्षा हेतु ही भगवान शिव ने अपना वास स्थान कैलाश पर्वत पर बनाया-
भगवान शिव का तपःस्थान कैलाश पर्वत है। इन पर्वतों पर ही प्रकृति के सभी तत्व अर्थात् पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता के सभी तत्व बहुलता से हैं। सम्भवतः पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैवविविधता सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए ही भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं।
हिंसक-अहिंसक एवं विषधर जीव-जंतुओं तथा विषजन्य पौधों की भी सुरक्षा हेतु उन्हें बनाया अपना प्रिय-
भगवान शिव प्रकृति के ऐसे तत्वों की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से तत्पर रहतें हैं, जिनको मानव विष समझकर या हिंसक जीव-जंतु समझकर उनका विनाश करने के लिए तत्पर रहता है।भगवान शिव ने ऐसे सभी विषधर जीव- जंतुओं एवं विषैले पौधों को अपना प्रिय मानते हुए उन्हे आत्मसात कर लिया या अपना प्रिय बना लिया। इन विषैले जीव-जंतुओं - जैसे साँप, बिच्छू, गोजर आदि एवं विषैले पौधों जैसे- धतूरा, आक एवं भाँग-गांजा को मानव भगवान शिव का प्रिय समझकर उनकी पूजा करने लगा। समाज में व्याप्त सभी प्रकार के विष को भगवान शिव ने आत्मसात कर लिया। यहां तक कि समुद्र मंथन से निकले हुए अति घातक विष, जिनसे सृष्टि का विनाश हो सकता था, उसका भी विश्व कल्याण हेतु स्वयं पान कर लिया।
जल संरक्षण के भी पोषक हैं भगवान शिव-
यदि देखा जाय तो मोक्षदायिनी एवं जीवनप्रदायिनी माँ गंगा को भी अपनी जटाओं में धारण कर जल संरक्षण का संदेश जन- जन तक फैलाया। यही नहीं भगवान शिव को बूँद- बूँद जल चढ़ाना प्रिय है। यह सब सम्भवतः जल संरक्षण के लिए ही भगवान को प्रिय है।
इस प्रकार प्रकृति के सम्पूर्ण अवयवों के संरक्षण हेतु ही भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर रहना पसंद किया और एक कल्याणकारी देवता के रूप में भगवान शिव न केवल मानव जगत का कल्याण करते है, बल्कि पशु जगत, जीव जंतु जगत एवं पादप जगत को संरक्षण प्रदान कर सम्पूर्ण प्रकृति की रक्षा करते हैं। यही नहीं भगवान शिव चल एवं अचल तथा जैविक एवं अजैविक जितने भी प्रकृति के कारक हैं, सबकी रक्षा किसी न किसी रूपमें करते हैं।
इहलोक एवं परलोक दोनों के कल्याणार्थ भगवान शिव करते हैं प्रकृति की रक्षा-
भगवान शिव न केवल मानव के कल्याणार्थ प्रकृति की रक्षा करते हैं, बल्कि गोचर, अगोचर, भूत-प्रेत आदि सभी को सुरक्षा एवं संरक्षा प्रदान करने हेतु उन्हें अपना प्रिय बना लिया है। इस तरह भगवान शिव इहलोक एवं परलोक के कल्याणार्थ सम्पूर्ण प्रकृति की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहते हैं।
डॉ. गणेश पाठक
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