हर वर्ष 10 अक्टूबर को “विश्व बेघर दिवस (World Homeless Day)” मनाया जाता है। यह दिन उन लाखों-करोड़ों लोगों को याद दिलाने का अवसर है जिनके सिर पर न तो कोई छत है और न ही जीवन की बुनियादी सुविधाएँ। यह दिवस केवल जागरूकता का प्रतीक नहीं, बल्कि मानवता, संवेदना और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक है। बेघर होना केवल एक व्यक्ति की समस्या नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक विफलता का संकेत है — जहाँ विकास की चमक के पीछे गरीबी, असमानता और उपेक्षा का अंधेरा अब भी मौजूद है।
विश्व बेघर दिवस की शुरुआत वर्ष 2010 में हुई थी, जब ऑस्ट्रेलिया में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मिलकर यह विचार रखा कि विश्वभर में बेघर लोगों के मुद्दों पर एक साझा मंच बनाया जाए। तब से हर साल 10 अक्टूबर को यह दिवस मनाया जाने लगा। इस दिन का उद्देश्य है लोगों को यह समझाना कि “घर केवल चार दीवारों का नाम नहीं, बल्कि सुरक्षा, सम्मान और स्थिरता का प्रतीक है।”
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 10 करोड़ से अधिक लोग बेघर हैं, जबकि लगभग 150 करोड़ लोग अस्थायी या असुरक्षित आवासों में रह रहे हैं। ये आंकड़े केवल संख्याएँ नहीं, बल्कि इंसानी दर्द की कहानी कहते हैं। सड़कों, फुटपाथों, रेलवे प्लेटफॉर्मों और झुग्गियों में जीवन बिताने वाले लोग न केवल गरीबी से, बल्कि सामाजिक भेदभाव, असुरक्षा और मानसिक पीड़ा से भी जूझते हैं।
भारत जैसे विकासशील देश में बेघरता का मुद्दा और भी गंभीर है। यहाँ लाखों परिवार ऐसे हैं जिनके पास स्थायी आवास नहीं है। प्राकृतिक आपदाएँ, बेरोजगारी, पलायन, पारिवारिक टूटन और महंगाई इस समस्या को और गहरा बना देते हैं। बड़े-बड़े महानगरों में रोज़गार की तलाश में आने वाले श्रमिक अक्सर फुटपाथ या झुग्गियों में रहने को मजबूर होते हैं। उनके लिए घर का मतलब सिर्फ एक ऐसी जगह होता है जहाँ वे बारिश से बच सकें या रात में चैन की नींद ले सकें।
सरकारों द्वारा बेघर लोगों के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं — जैसे “प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY)”, “नाइट शेल्टर योजना (Shelter for Urban Homeless)” आदि। लेकिन सच्चाई यह है कि अभी भी यह योजनाएँ हर ज़रूरतमंद तक नहीं पहुँच पाई हैं। कई बार संसाधनों की कमी, भ्रष्टाचार, या जमीनी स्तर पर ढीले क्रियान्वयन के कारण यह समस्या जस की तस बनी रहती है।
विश्व बेघर दिवस का संदेश यही है कि समाज को बेघर लोगों को केवल “दया” की दृष्टि से नहीं, बल्कि “अधिकार” के नज़रिए से देखना होगा। हर व्यक्ति को “आवास का अधिकार” मिलना चाहिए, क्योंकि घर इंसान की प्राथमिक ज़रूरत है — जैसे भोजन और वस्त्र। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम ऐसे लोगों के पुनर्वास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए भी प्रयास करें ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
यह दिन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब हम अपने घर की सुखद छत के नीचे बैठकर सुकून की नींद लेते हैं, तब हमारी ही तरह कई लोग खुले आसमान के नीचे ठंड, बारिश या धूप में रात गुजार रहे होते हैं। इस असमानता को मिटाना केवल सरकार का नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है। समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना होगा — एनजीओ, स्थानीय निकाय, धार्मिक संस्थाएँ, विद्यार्थी और आम नागरिक — सबको मिलकर इस दिशा में काम करना होगा।
विश्व बेघर दिवस हमें यह सिखाता है कि इंसानियत का असली अर्थ तभी है जब हम अपने समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति को भी सुरक्षा और सम्मान दे सकें। एक छत के नीचे जीने का अधिकार हर मनुष्य का है, क्योंकि घर केवल ईंट और सीमेंट की दीवार नहीं, बल्कि सपनों, उम्मीदों और गरिमा का प्रतीक है।
धीरेन्द्र प्रताप सिंह ✍️
सहतवार, बलिया (उ.प्र.)
मो. नं. - 9454046303
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