शारदीय नवरात्रि का छठा दिन माँ दुर्गा के छठे स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होता है। शास्त्रों में इन्हें अत्यंत तेजस्विनी, महाबली और विनाशकारी शक्ति का प्रतीक माना गया है। माता कात्यायनी का स्वरूप साधकों को साहस, बल और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
माता कात्यायनी का स्वरूप
माता कात्यायनी का वर्ण स्वर्ण के समान उज्ज्वल है। वे चार भुजाओं वाली हैं :–
- दाहिने हाथ में वरमुद्रा और तलवार धारण करती हैं।
- बाएँ हाथ में अभयमुद्रा और कमल सुशोभित है।माता सिंह पर सवार रहती हैं। उनका यह रूप शौर्य और पराक्रम का प्रतीक है।
उत्पत्ति कथा
पुराणों के अनुसार दैत्य महिषासुर के संहार के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी-अपनी शक्तियों का संयोग किया। इस तेजपुंज से प्रकट हुई देवी को ऋषि कात्यायन ने अपनी तपस्या से प्राप्त किया और अपनी कन्या के रूप में उनका पालन-पोषण किया। इस कारण इन्हें कात्यायनी कहा गया। माँ कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध कर देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई।
पूजन विधि
छठे दिन प्रातः स्नान-ध्यान के उपरांत माता कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र के समक्ष स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा करनी चाहिए।
- लाल अथवा गुलाबी फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है।
- धूप, दीप, नैवेद्य और सुगंधित पुष्पों से माता का श्रृंगार कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
- इस दिन विशेष रूप से माँ कात्यायनी मंत्र का जाप करना फलदायी होता है –
महत्व और फल
- माता कात्यायनी की पूजा से साधक को बल, तेज और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
- विवाह में आ रही बाधाओं का निवारण होता है। अविवाहित कन्याओं के लिए यह दिन विशेष रूप से फलदायी है।
- भक्ति और श्रद्धा से की गई आराधना से साधक को रोग, शोक और भय से मुक्ति मिलती है।
- योग साधना में इन्हें आज्ञा चक्र की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। इनके ध्यान से साधक को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
शारदीय नवरात्रि का छठा दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि यह हमें जीवन में साहस और पराक्रम का मार्ग दिखाता है। माता कात्यायनी की कृपा से साधक न केवल सांसारिक सुख पाता है, बल्कि आत्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर होता है।
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