प्रेम की खिचड़ी

 


बड़ा ही अद्भुत पर्व है ये दिखे सूरज की लाली।

स्नान, दान, और पूजा से तो सज जाती है थाली।

दही, चूरा, गुड, तिलवा, तिलकुट सबके मन को भाये

पतंग उड़ाते नभ में बच्चे स्वागत करती ताली।

लोहड़ी, पोंगल, पीहू, उत्तरायन, बिहू, संक्रांति नाम प्रेम की खिचड़ी जन-जन खाएं कोई बचे न खाली।

दमके प्रभु सद्भाव का मौसम करे बिनती 'नवचंद्र'

पंछी सा हो सबका मन तो वतन झूमे बन डाली।

डॉ0 नवचंद्र तिवारी ✍️
बलिया (उ.प्र.)



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