विश्व वानिकी दिवस, 21 मार्चपर विशेष :-
अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य, जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के पूर्व शैक्षणिक निदेशक एवं जिला गंगा समिति के सदस्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि कोरोना महामारी के दौरान हम आक्सीजन के महत्व को बखूबी समझ चुके हैं। हम आक्सीजन की कमी के वजह से लोगों को तड़प-तड़प कर मरते हुए भी देख चुके हैं। ऐसी स्थिति में अब हमारे अन्दर यह चेतना आ जानी चाहिए कि हमने जिस बेरहमी से अपने स्वार्थवश वृक्षों का सफाया किया, वह निश्चित तौर पर हमारे लिए ही नहीं, बल्कि भावी पीढ़ी के लिए भी घातक सिद्ध हो रहा है। वृक्षों के विनाश से न केवल पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी में असंतुलन पैदा हो रहा है, बल्कि आक्सीजन के लिए भी संकट उत्पन्न हो रहा। यही कारण है कि 21 मार्च को प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में विश्व वानिकी दिवस मनाकर वनों को बचाने हेतु एवं वृक्षारोपण करने हेतु अनेक कार्यक्रम आते हैं एवं जनजागरूकता फैलाई जाती कि वृहद् स्तर पर वृक्षारोपण कर धरती को असंतुलित होने से बचाया जाय ताकि हमारा जीवन भी सुरक्षित रह सके।
वास्तव में हमने अपने स्वार्थवश पेड़-पौधों का इतना अधिक सफाया कर दिया और आज हमें कृत्रिम आँक्सीजन तैयार करना पड़ रहा है एवं जान बचाने हेतु आँक्सीजन को खरीदना पड़ रहा है, फिर जान नहीं बच रही है। वनों के विनाश से हमारा पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होता जा रहा है, जिसका परिणाम हमें विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं एवं ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के रूप में झेलना पड़ रहा है, जिससे जल स्रोत, कृषि एवं हमारा स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है एवं जीवन दुष्कर होता जा रहा है। अब से भी हमें चेतना होगा, हमें प्रकृति की भरपाई पेड़-पौधौं को लगाकर करनी होगी।
बलिया में दो प्रतिशत से भी कम भूमि पर है वृक्षावरण-
जहाँ तक बलिया की बात है तो बलिया जिला में कुल भूमि का दो प्रतिशत भी वृक्ष नहीं हैं, जबकि पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखने हेतु तैंतीस प्रतिशत भूमि पर वनों का होना आवश्यक है।
बलिया जनपद में मात्र 81 हेक्टेयर भूमि पर वनों का विस्तार है, जबकि प्राकृतिक एवं रोपितवृक्षावरण (झाड़ियों सहित) मात्र 4601 हेक्टेयर भूमि पर है, जो बलिया जनपद के कुल प्रतिवेदन भूमि का मात्र 1.54 प्रतिशत अर्थात दो प्रतिशत से भी कम है। ऐसी स्थिति में बलिया का पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र कैसे संतुलित रह सकता है?
यदि हम बलिया जनपद में वृक्षारोपण की बात करें तो वर्ष 2019, 2020 एवं 2021 में क्रमश: 35.18, 31.00 एवं 23.98 लाख वृक्ष लगाए गए थे, जिनमें से इन वर्षों में क्रमश: 5, 10 एवं 12 प्रतिशत वृक्ष सूख गए। वर्ष 2022 में बलिया जनपद में 43.16 लाख वृक्षों को लगाने का लक्ष्य रखा गया था। यद्यपि कि इस वृक्षारोपण अभियान में विभिन्न विभागों सहित स्वयंसेवी संस्थाएं भी बढ़-चढ़ कर भाग ले रही हैं, किंतु फिर भी अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है, कारण कि वृक्षारोपण के पश्चात पौधों को बचाया नहीं जा रहा है। निश्चित तौर पर वृक्षारोपण का कार्यक्रम किसी एक विभाग का नहीं है, बल्कि हम सबका है, जन-जन का है और हम सबको मिलकर लक्ष्य को पूरा करना है। अगर हम मनोयोग से वृक्षारोपण करते हैं और लगाए हुए वृक्षों को बचाकर उन्हें बड़ा कर देते हैं तो निश्चित ही हमें इस लक्ष्य की तरफ ध्यान रखना होगा कि आगामी कुछ वर्षों में हम बलिया की कुल भूमि के 33 प्रतिशत भाग पर वृक्षारोपण कर पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की दृष्टि से बलिया जनपद को सुरक्षित एवं संरक्षित कर सकें।
अगर अभी से भी नहीं चेते तो वर्तमान को देखते हुए हम कह सकते हैं कि भविष्य बहुत अंधकारमय दिख रहा है। यदि वृक्ष नहीं, तो जल एवं वायु नहीं और जल तथा वायु नहीं तो जीवन नहीं।
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