(विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष लेख)
(1) पृथ्वी के बिना हम जीवन की परिकल्पना भी नहीं कर सकते :- पृथ्वी के बिना हम जीवन की परिकल्पना भी नहीं कर सकते। पृथ्वी पर ही हमें जीवित रहने के लिए अन्न, जल इत्यादि मिलता है। वास्तव में सौर मंडल के नौ ग्रहों में से, पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां जीवन है एवं अखंड जैव विविधता है। लेकिन आज हमारे अंधाधुध पर्यावरण का दोहन करने के कारण पृथ्वी का अस्तिव खतरे में आ गया है। जिसे बचाने के महान उद्देश्य के साथ ही 1970 में अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के द्वारा पृथ्वी दिवस की स्थापना की गयी थी। इस प्रकार साल 1970 से प्रारम्भ हुए विश्व पृथ्वी दिवस को 22 अप्रैल को दुनिया के 192 से अधिक देशों में प्रतिवर्ष विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है।
(2) यह धरती सभी की है :- संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के अनुसार पृथ्वी की 90 प्रतिशत से अधिक मिट्टी 2050 तक खराब हो सकती है। इसके चलते दुनिया भर में भोजन और पानी की कमी, सूखा और अकाल, प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन, बड़े पैमाने पर पलायन और विनाशकारी संकट पैदा हो सकते हैं। प्रजातियां विलुप्त हो सकती है। वास्तव में पृथ्वी दिवस हमें पृथ्वी पर अन्य जीवित प्राणियों के प्रति हमारे कर्तव्य की याद दिलाता है, क्योंकि केवल हम ही इस धरती पर जीवित नही रहे हैं। यह धरती सभी की है। मनुष्य पॉच तत्वों जल, अग्नि, आकाश, पृथ्वी और वायु से मिलकर बना है। अथर्ववेद में लिखा है ‘‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्या।’’ अर्थात वंसुधरा जननी है, हम सब उसके पुत्र हैं।
(3) अगले 60 वर्षों में दुनिया की सारी ऊपरी मिट्टी का विनाश हो सकता है :- मिट्टी को रेत बनने से रोकने के लिए बनाए गए संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएनसीसीडी) ने भविष्यवाणी की है कि अगर इसी तेज़ी के साथ मिट्टी की क्वालिटी ख़राब होती रही, तो मिट्टी का विनाश एक सच्चाई बन सकता है। इसके अलावा, एफएओ का अनुमान है कि अगले 60 वर्षों में दुनिया की सारी ऊपरी मिट्टी का विनाश हो सकता है। 2045 तक, भोजन का उत्पादन 40 प्रतिशत तक गिर सकता है, और जनसंख्या 930 करोड़ को पार कर जाएगी। मिट्टी के विनाश से दुनिया भर में भयंकर संकट पैदा हो सकते हैं, जिसमें भोजन और पानी की कमी, सूखा और अकाल, नुकसानदायक जलवायु बदलाव, बड़े पैमाने पर लोगों का दूसरी जगहों पर पलायन, और पशु-पक्षियों की प्रजातियों का ज़बरदस्त तेज़ी से विनाश होना शामिल है।
(4) हमें प्रकृति के साथ शांति स्थापित करनी होगी :- अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम, उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्। हम सभी तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक हमारा पर्यावरण सुरक्षित है। इसलिए हमें प्रकृति के साथ शांति स्थापित करनी होगी। वास्तव में अपनी धरती, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति समन्वय बनाये रखना हम सबका नैतिक कर्तव्य भी है और सामाजिक उत्तरदायित्व भी। ऐसे में हमें अपनी इस पीढ़ी को सीमित पर्यावरणीय संसाधनों के संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाने की जिम्मेदारी है, ताकि इस पीढ़ी का प्रत्येक बच्चा इस धरती को बचाने और उसे सुन्दर बनाये रखने में व्यक्तिगत रूप से अपना योगदान देता रहे।
(5) सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) की प्राप्ति एक साझा वैश्विक जिम्मेदारी :- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से 17 सतत् विकास लक्ष्यों की ऐतिहासिक योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक अधिक संपन्न, अधिक समतावादी और अधिक संरक्षित विश्व की रचना करना है। हमारे प्रधानमंत्री जी का कहना है कि “एजेंडा 2030 के पीछे की हमारी सोच जितनी ऊँची है हमारे लक्ष्य भी उतने ही समग्र हैं। इनमें उन समस्याओं को प्राथमिकता दी गई है, जो पिछले कई दशकों से अनसुलझी हैं और इन लक्ष्यों से हमारे जीवन को निर्धारित करने वाले सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं के बारे में हमारे विकसित होती समझ की झलक मिलती है। मानवता के 1/6 हिस्से के सतत् विकास का विश्व और हमारे सुंदर पृथ्वी के लिए बहुत गहरा असर होगा ।”
(6) हमें विरासत में मिली दुनिया से बेहतर दुनिया आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़नी होगी :- धर्मगुरू और पर्यावरणविद् सदगुरू जग्गी वासुदेव ने 21 मार्च को लंदन से अपनी यात्रा ‘टू सेव सॉइल’ (मिट्टी बचाओं जागरूकता अभियान) की शुरूआत की है। वह इसके तहत 100 दिनों की मोटर साइकिल यात्रा पर निकले हैं। इन 100 दिनों में वे 27 देशों और 30 हजार किलोमीटर की यात्रा करेंगे। 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर भारत के कावेरी बेसिन में यह अभियान खत्म होगा। अभियान के बारे में बोलते हुए जग्गी वासुदेव जी ने कहा कि यह आंदोलन 192 देशों में एक नीति लाने का प्रयास है कि यदि आपके पास कृषि भूमि है, तो कम से कम 3-6 प्रतिशत जैविक सामग्री (मिट्टी में) होनी चाहिए। यह आने वाली पीढ़ी के लिए हमारी जिम्मेदारी है। वास्तव में मिट्टी की जैविक सामग्री को बहाल करने के लिए तुरन्त एक्शन लेने की जरूरत है।
(7) पूरे ग्रह का भविष्य दांव पर लगा है :- स्विटजरलैण्ड के दावोस शहर में विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वैश्विक समुदाय से अपील की है कि जलवायु परिवर्तन के लिये समझदारी भरे निर्णयों की जरूरत है, क्योंकि पूरे ग्रह का भविष्य दांव पर लगा है और कोई भी अकेला देश जलवायु परिवर्तन को रोक नहीं सकता। इसलिए इसके लिये पूरी दुनियाँ को मिलकर प्रयास करना होगा, जिसके लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति और कायापलट कर देने वाली नीतियों की जरूरत है। इसके लिए विश्व के सारे देशों को ठोस पहल करने के लिए एक मंच पर आकर तत्काल विश्व संसद, विश्व सरकार और विश्व न्यायालय के गठन पर सर्वसम्मति से निर्णय लेना चाहिए, अन्यथा बदलता जलवायु, गर्माती धरती और पिघलते ग्लेशियर पृथ्वी के अस्तित्व को ही संकट में डाल देंगे।
डॉ. जगदीश गाँधी
प्रख्यात शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ।
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