आधुनिक भारत के राष्ट्र नायक बाबा साहब भीमराव रामजी अंबेडकर को सलाम


आज भारत को आजाद हुए लगभग 75 वर्ष हो चुके हैं इन वर्षों में भारत में राजनीतिक परिपेक्ष में कई फेरबदल उतार-चढ़ाव नियामक सक्रियता और असक्रियता रही। 

बारीकियों से इन तथ्यों पर विचार किया जाए तो 1757 के बाद 1773 में आई रेगुलेटिंग एक्ट ने भारत की नियामक प्रणालियों को पूर्ण तरीके से बदल कर रख दिया, बंगाल का गवर्नर जनरल अब तीनों प्रेसिडेंसी का अधिकार प्राप्त कर चुका था।

ठीक वैसे ही जैसे एक विस्तार वादी सोच विचारों में बैठकर किसी देश को चालती हैं। धीरे-धीरे अंग्रेज 1857 के युद्ध को पार करते हुए अपनी पकड़ सीधे महारानी के हाथ में देकर यह सिद्ध कर दिया की विस्तार के लिए सबसे पहले एक सोच उसके साथ साथ अनुपालन की भी सख्त आवश्यकता होती है।

1947 में आजाद हुआ भारत जो 565 छोटी छोटी रियासतों में बड़ा हुआ था, लॉर्ड माउंटबेटन के दरबार में पेश हुआ, फैसला किया गया कि इन रियासतों को "ट्रीटी आफ एनेक्सेशन" के तहत एक करके भारत में संघ की स्थापना की जाए।

स्वाधीनता सेनानियों का सपना आखिरकार पूर्ण हुआ भारत स्वतंत्र हुआ लेकिन किसी राष्ट्र को चलाने के लिए सबसे पहले किसी नियम कानून की आवश्यकता पड़ती है और यह उतना ही जरूरी और आवश्यक है जैसे किसी शरीर को हवा और पानी की जरूरत है।

स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे "बाबा साहब डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर" जिनको कॉन्स्टिट्यूशन मेकर या संविधान निर्माण की ड्राफ्टिंग कमिटी का चेयरमैन नियुक्त किया गया था।

एक दलित परिवार में जन्मे अंबेडकर ने समाज में छुआछूत के दंश को झेलकर कर अपनी इच्छा शक्ति से आगे बढ़ते हुए पढ़ाई की और वह मुकाम हासिल किया जहां पर 1947 में वह आजादी के स्वाधीनता सेनानियों के समकक्ष खड़े थे।

 दलितों और वंचितों में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले बाबा साहब ने गांधी इरविन समझौता और गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी के साथ प्रमुख भूमिका निभाई।

यह वही अंबेडकर थे जिन्होंने जिन्ना के "डुअल स्टेट पॉलिसी" और अंग्रेजों की "धार्मिक कूटनीति" का जवाब देते हुए कहा था कि "हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं"

आज उस महानायक का जन्म दिवस है और भारत उस राष्ट्र के सपूत को सलाम करता है।

उनकी सच्ची सलामी की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब समाज में समान रूप से अधिकार बटे होंगे, जो उन्होंने संविधान निर्माण के समय फंडामेंटल राइट्स को संविधान की आत्मा कहा था।

संविधान को मूल रूप देने में बाबा साहब अंबेडकर की प्रमुख भूमिका रही खास तौर पर "राज्य के नीति निदेशक तत्व" जो गांधी जी के विचारों और आदर्शों पर निहित है को उन्होंने संविधान मे रखने का प्रस्ताव किया और यहां तक की उसे एक संवैधानिक रूप दिया, जिससे समाज के हर वर्ग को न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका पर पूर्ण विश्वास हो सके।

संविधान में प्रियम्बल को स्थापित करके "हम भारत के लोग" का विचार देना एक भारत के राज्य संघ के लिए कितना महत्वपूर्ण है। यह सोच दर्शाती है कि बाबा साहब भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए कितना सशक्त थे। उन्होंने भारतीय संविधान के जरिए एक आत्मनिर्भर एवं आधुनिक भारत की नींव रखी। उन्होंने आर्थिक रूप से संपन्न एवं शिक्षित भारत का सपना देखा था। वह समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार देने के पक्षधर रहे।शिक्षा को वह सामाजिक परिवर्तन के एक बड़े एवं प्रभावी 'हथियार' के रूप में देखते थे। वह कहते थे कि सामाजिक गुलामी से अगर व्यक्ति को मुक्त होना है तो उसे शिक्षित होना होगा। समाज के वंचित एवं हाशिये के लोगों में शिक्षा से ही जागृति पैदा होगी। शिक्षा से ही समाजिक हैसियत, आर्थिक संपन्नता एवं राजनीतिक आजादी पाई जा सकती है। दलित समाज को जागृत करने के लिए उन्होंने काफी प्रयास किया राजनीतिक दल भी बनाए उनको संगठित भी किया और शिक्षा की तरफ प्रेरित भी किया आज इस सदी के महानायक को हर भारतवासी सलाम करता है और अपेक्षा करता है कि अंबेडकर के विचारों पर भारत अग्रसर हो संगठित हो सुसज्जित हो एवं प्रगतिशील बने।


आलोक प्रताप सिंह

विकास अधिकारी

एकीकृत सहकारी विकास परियोजना 

जनपद अंबेडकर नगर।


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